Tuesday 10 January 2023

जोशीमठ : अनदेखी का नतीज़ा


 गेटवे ऑफ हिमालय के नाम से मशहूर जोशीमठ जो बद्रीनाथ, केदारनाथ, हेमकुंठ साहिब जैसे तीर्थ स्थल का प्रवेशद्वार भी है  , पर आए आपदा एक गम्भीर चिंता का विषय है। जोशीमठ नगर क्षेत्र में भू धंसाव के कारणों की जांच की जा रही है और समस्या का आंकलन किया जा रहा है लेकिन इसके पीछे प्रकृति से छेड़छाड़ और चेतावनियों की अनदेखी से इंकार नहीं किया जा सकता। अगर चेतावनियों की अनदेखी नहीं की गई होती विकास के नाम पर चकाचौंध खड़ी करने की कवायद जारी नही रखी गईं होती। आज हालात बिगड़ने पर एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, की टीम बचाव एवं राहत कार्य के लिए पहुंची है एवं एनआईडीएम जीएसओआई एवं सीबीआरआई जैसे संस्थानों को मौजूदा हालात का जायजा एवं अध्ययन कर सरकार को सुझाव देने के लिए कहा गया है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आखिर यह नौबत क्यों आईं ?

जोशीमठ के लोग इस आपदा की वजह सरकार की लापरवाही को ही मानती है। कहते हैं जोशीमठ तब से धंस रहा जब ये यूपी का हिस्सा हुआ करता था। उस समय गढ़वाल के आयुक्त रहे एम सी मिश्रा की अध्यक्षता में एक 18 सदस्यीय समिति की गठित की गई थी। इसे मिश्रा समिति नाम दिया गया था जिसने इस बात की पुष्टि की थी कि जो जोशीमठ धीरे धीरे धंस रहा है। समिति ने भू धंसाव वाले क्षेत्रों की ठीक कराकर वृक्षारोपण लगाने की सलाह दी थी। उस समिति में सेना, आईटीपी, बीकेटीसी और स्थानीय जनप्रतिनिधि शामिल थे। यही नही करीब पांच बार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसका सर्वेक्षण किया गया जिसमें पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट आदि ने  इसमें अहम भूमिका निभाई लेकिन रिपोर्टों की अनदेखी की गई। इसके अलावा नवीन जुयाल की रिर्पोट और सरकारी आपदा प्रबन्धन की रिर्पोट में भी बताया गया था कि जोशीमठ बहुत ही कमजोर बुनियाद पर टिका हुआ है और यहां किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य कराने में खतरा है।

2021 की ऋषि गंगा की बाढ़ और अक्टूबर मे हुई भीषण बारिश के बाद यहां भू धसाओं तेजी से देखने को मिल रहा है जो चिंता का सबब है। ऋषि गंगा की बाढ़ के चलते आए भारी मलवे से अलकनंदा के बहाव में बदलाव आया जिससे जोशीमठ के निचले इलाकों में हो रहे भू कटाव में बढ़ोतरी हुई। अक्टूबर में हुई भीषण बारिश से रवि ग्राम बनाउ गंगा नाला क्षेत्र में बढ़े भू कटाव से जोशीमठ में भू धसाओं की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई। इधर सरकार को इस इलाके में जल विद्युत परियोजनाओं की मंजूरी नहीं देनी चाहिए थी जिनके लिए निर्माण कंपनियों ने सुरंग बनाने के लिए विस्फोट किए गए। नतीजन पहाड़ छलनी छलनी हो गए। इससे जोशीमठ ही नही समूचे उत्तराखंड में जहां जहां पनबिजली परियोजनाओं पर काम हो रहा है वहां यही स्थिति है। इस बाबत पर्यावरणविद, विशेषज्ञ इसके लिए बराबर सचेत करते रहे थे। सभी की यह राय थी कि जल विद्युत परियोजनाएं इस इलाके के हित में नहीं है। लेकिन इस अनदेखी ने उत्तराखंड को संकट एवं विनाश के मार्ग पर लाकर खड़ा खड़ा कर दिया है।

इससे यह साफ है कि जोशीमठ भावी आपदा का संकेत है जिसका कारण मानव खुद है। इसके पीछे आबादी और बुनियादी ढांचे में कई गुणा हुई अनियंत्रित बढ़ोतरी की भूमिका अहम है। दरारों का दायरा ज्योतिमठ और शहर के बाजारों तक पहुंच गया है। यह संकेत है कि यह थमने वाला नही है और भीषण आपदा को निमंत्रण दे रहा है।

इन ज़िम्मेदार सरकार के साथ साथ स्थानीय लोग भी है जिन्होंने वहां मकान, होटल बगैरह बनाए। स्थानीय प्रशासन भी दोषी है जिन्होंने निर्माण कार्य को नही रोका। 

इसमें दो राय नहीं है कि बांध, पनबिजली परियोजनाऐं, रेलमार्ग भी ज़रुरी है लेकिन ऐसे निर्माण हमें वहां की परिस्थिति, पर्यावरण और प्रकृति को ध्यान में रखकर करनी चाहिए तभी उसके सार्थक परिणाम की आशा की जा सकती है। अन्यथा केदारनाथ, जोशीमठ जैसी घटनाएं होती रहेंगी।

Wednesday 26 January 2022

Republic day special

 This is the glorious historical day of 26 January when India passed the Indian Constitution in our Parliament on this day after almost 2 years 11 months 18 days of independence. With the declaration of itself as a sovereign, democratic republic, 26 January was celebrated as Republic Day by the people of India
‌But even today our republic seems to be trapped in so many thorn bushes.Unintentionally our attention towards republic from the inception of "What is found, what is lost" starts pulling towards the account. Only with constant awareness of duty, we will be able to celebrate the festival of republic in a meaningful way, keeping our rights safely Only then will our resolve to preserve democracy and the Constitution be realized
It is often heard from some people that even after so many years of independence, we did not get anything from the country, whereas in countries like Europe, America and Australia, citizens get many facilities. But do people think what they have given to the country? If all the people leave the plea and do their duty towards the country, then no one can stop the progress of the country.
The author of the Constitution was a visionary. Fundamental rights were included in the text of the constitution, but there should also be fundamental duties of citizens, this was either ignored or was not considered necessary. Perhaps they thought that the people of India and their leaders elected from among them would remain Indians, but this concept turned out to be erroneous. After almost two and a half decades, through the 42nd Amendment, Part 4 (A), Article 51A had to be included in the Constitution, in which the fundamental duties of the citizens of independent India have been mentioned. Article 51A every citizen of an independent country 's code of conduct.
Usually we have expectations from the country but we do not have any expectations from ourselves, knowing that the country is made by us. We do nothing for the country, do not contribute to its economic, cultural, prosperity and expect the country to do it for us. The country is made by us. With our actions, the country will go on the path of progress.
Patriotism towards the country starts getting exposed. Patriotic songs in radio, television encourage us for our duties for some time.But after some time our mind also gets entangled in other things. Actually one lives on five levels. on economic, physical, mental, intellectual and spiritual levels. The country has a major role in every level. The country owes all of us. The country has given so much in our bag, yet we keep our demands in front of the country. There is a saying that you become what you think. Your thoughts make you. We have to broaden our thinking. If you think small, you will remain small.When we give to the country, the country gives us its reward. We should have the spirit of giving and not just taking. Simply paying taxes only is not service to the nation.
Even after more than half a century of independence, our steps are faltering. We have distanced ourselves from Satyamev Jayate. Evil has been replaced by good and immorality has been substituted for morality. Honesty has been reduced to paper only and the whole society has been benefited by corruption. Corruption, anarchy, inflation, intolerance, unemployment and inequality are increasing in the country.
The time has come for the countrymen to wake up. It is necessary for the general public to be aware of corruption and to punish the people who take the society on the wrong path for their wrong actions. To protect the future generation, one has to improve oneself first. The republic will be useful only when everyone gets work and plenty of food.
If we follow our duties which have been fixed in the constitution, then only our country will become great. The constitution was made so that law and order should be maintained. May all live in peace and tranquility in independent India. For this it is necessary that we follow the rules given in our constitution. Above all, recognize your fundamental rights as well as discharge your fundamental duties.
The feeling of patriotism does not require any occasion. It should be a permanent feeling within us. Patriotism does not mean the expectation from the country, but the tendency to do something for the country.



Tuesday 25 January 2022

गणतंत्र दिवस पर विशेष : अपना कर्तव्य करें तभी देश बनेगा।


यही वह 26 जनवरी का गौरवशाली ऐतिहासिक दिन है जब भारत ने आज़ादी के लगभग 2 साल 11 महीने 18 दिनों के बाद इसी दिन हमारी संसद में भारतीय संविधान को पास किया था। ख़ुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के लोगों द्वारा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। लेकिन आज भी हमारा गणतंत्र कितनी कंटीली झाड़ियों में फंसा प्रतीत होता है। अनायास ही हमारा ध्यान गणतंत्र की स्थापना से लेकर ” क्या पाया , क्या खोया ” के लेखा जोखा की तरफ खींचने लगता है। कर्तव्य पालन के प्रति सतत् जागरूकता से ही हम अपने अधिकारों को निरापद रखने वाले गणतंत्र का पर्व सार्थक रूप मे मना सकेंगे। तभी लोकतन्त्र और संविधान को बचाए रखने का हमारा संकल्प साकार होगा।

प्रायः कुछ लोगों से सुना जाता है कि स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी हमे देश से कुछ नहीं मिला जबकि यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में नागरिकों को बहुत सुविधाएं मिलती हैं। लेकिन क्या लोग यह सोचते हैं कि उन्होने देश को क्या दिया ? यदि सभी लोग याचना छोड़ कर देश के प्रति अपने कर्तव्य निभाएं तो देश की उन्नति को कोई नहीं रोक सकता।

संविधान के रचियता दूरदृष्टी संपन्न थे। संविधान के पाठ में मूल अधिकारों में समावेश तो किया गया किन्तु नागरिकों के मूल कर्तव्य भी होने चाहिए, इसपर या तो किसी का ध्यान नहीं गया था या इसे आवश्यक नहीं समझा गया था। कदाचित उन्होंने सोचा था कि भारत के लोग और उन्हीं में से चुने गए उनके नेता भारतीय तो बने रहेंगे पर यह अवधारणा भ्रांत निकली। लगभग ढाई दशक के उपरांत 42वें संशोधन के माध्यम से सविधान में भाग 4 (क) , अनुच्छेद 51 क का समावेश करना ही पड़ा जिसमें स्वतंत्र भारत के नागरिकों के मूल कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 51क का स्वतंत्र देश के प्रत्येक नागरिक की आचार संहिता है।

आमतौर हम देश से अपेक्षाएं रखते हैं लेकिन खुद से कोई अपेक्षा नहीं रखते हैं ये जानते हुए भी हमसे ही बनता है देश। हम देश के लिए कुछ नही करते उसकी आर्थिक, सांस्कृतिक, समृद्धि में योगदान नही करते और देश से अपेक्षा करते हैं कि वह हमारे लिए करे। हमसे ही देश बनता है। हमारे कार्यों से देश प्रगति के रास्ते पर जाएगा।गणतंत्र दिवस के समय जरूर हमलोगों में देश के प्रति देश भक्ति उजागर होने लगती है। रेडियो, टेलीविजन में देशभक्ति के गाने हमें कुछ समय के लिए अपने कर्तव्यों के लिए प्रोत्साहित करते हैं। परन्तु कुछ समय के बाद हमारा मन भी और चीज़ों में उलझ जाता है।

दरअसल व्यक्ति पांच स्तरों पर जीता है। आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा अद्ध्यात्मिक स्तरों पर। हर स्तर मे देश की एक प्रमुख भूमिका होती है। हम सब पर देश का उधार है। देश ने हमारी झोली में इतना कुछ दिया है फिर भी हम देश के सामने अपनी मांग ही रखते हैं। एक कहावत है जैसा आप सोचते हैं वैसा ही आप हो जाते हैं। आपकी सोच ही आपको बनाती हैं। हमें अपनी सोच को व्यापक बनाना होगा। छोटा सोचेंगे तो छोटा ही रह जाएंगे। हमारे मन में देने का भाव होना चाहिए न कि सिर्फ़ लेने का। देश को जब हम देते हैं उसी का प्रतिफल देश हमें देता है। सिर्फ़ कर देना देश सेवा नहीं होता।

आजादी की आधी से अधिक सदी बीतने के बाद भी हमारे कदम लड़खड़ा रहे हैं। सत्यमेव जयते से हमने किनारा कर लिया है। अच्छाई का स्थान बुराई ने ले लिया है और नैतिकता पर अनैतिकता प्रतिस्थापित हो गई है। ईमानदारी केवल कागजों में सिमट गई है और भ्रष्टाचार से पूरा समाज अच्छादित हो गया है। देश में भ्रष्टाचार, अराजकता, महंगाई, असहिष्णुता , बेरोजगारी और असमानता बढ़ता जा रहा है।

देशवासियों को जागने का समय आ गया है। भ्रष्टाचार और समाज को गलत राह पर ले जाने वाले लोगों को उनके गलत कार्यों की सजा देने के लिए आमजन को जागरूक होना जरूरी है। भावी पीढ़ी को संवारने के लिए पहले खुद को सुधारना होगा। गणतंत्र की साथर्कता तभी होगी जब हरेक व्यक्ति को काम और भरपेट भोजन मिले।

संविधान में जो हमारे कर्तव्य तय किए गए हैं उसका हम सही ढंग से पालन करें तभी हमारा देश महान बनेगा। संविधान का निर्माण इसलिए किया गया जिससे कानून व्यवस्था बनी रहे। सभी स्वतंत्र भारत में अमन और चैन से रह सके। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने संविधान में दिए गए नियमों का पालन करें। सबसे बड़ी बात अपने मौलिक अधिकारों को तो पहचाने ही साथ ही अपने मौलिक कर्तव्यों का भी निर्वहन करें।

देश भक्ति का भाव किसी अवसर का मोहताज नहीं होता। यह हमारे भीतर का स्थाई भाव होना चाहिए। देश भक्ति का मतलब देश से अपेक्षा नहीं , बल्कि देश के लिए कुछ करने की प्रवृति पैदा होना है।

Friday 30 July 2021

महान लेखक मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उन्हे श्रद्धांजली



आज करोना काल में दुनिया जितनी विचारवान है मेरी जानकारी में पहले कभी नहीं थी। राजनैतिक,सामाजिक एवं आर्थिक सबकुछ इस करोना ने बदल दिया है।
वर्तमान समय हमारे सामने बहुत सी  समस्याएं लेकर आई है। सारी दुनिया के लेखकों, कवियों को आगे आना चाहिए क्योंकि सभी लोग एक दूसरे की समस्याओं से परिचित हैं। कहानी और कविताओं के जरिए लोगों में हिम्मत, आत्मविश्वास एवं नई चेतनाओं को जगाने की जरूरत है। आज लेखक एवं कवि की जिम्मेदारी बढ़ गई है क्योंकि लेखक और कवियों ने हमेशा अपने कलम से समाज में चेतना को जगाया है। इसलिए आज विज्ञान और राजनीति से मायूस दुनिया की नज़रें लेखक और कवि की तरफ है।

आज मुंशी प्रेमचंद की जयंती है।  ईदगाह, शतरंज के खिलाड़ी, नमक का दारोगा, कर्मभूमि जैसे उपन्यास लिखने वाले प्रेमचंद जी आज २१ वीं शताब्दी में भी लोगों के दिल में बसते हैं।  प्रेमचंद, दिनकर जैसे लोगों ने अपने कलम से समाज को बदल दिया। वर्तमान परिस्थिति में लोगों में स्फूर्ति,साहस, विश्वास को जगाना ही प्रेमचंद जी को सच्ची श्रद्धांजली होगी।

Wednesday 28 July 2021

विश्व प्राकृति संरक्षण दिवस

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस इस बात के लिए जागरूक करता है कि एक स्वस्थ पर्यावरण एक स्थिर और स्वस्थ मानव समाज की नींव है. यह हर साल 28 जुलाई को मनाया जाता है.
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य उन जानवरों और पेड़ों का संरक्षण करना है जो पृथ्वी के प्राकृतिक पर्यावरण से विलुप्त होने के कगार पर हैं. हमारी धरती मां की रक्षा में संसाधनों के संरक्षण की अहम भूमिका है.

कहीं आग लगती है तो मुहल्ले के सभी लोग दौड़ते है। कोई बालटियों में पानी लेकर दौड़ता है तो कोई धूल मिट्टी फेंकता है।सभी लोग कुछ न कुछ करते हैं जिससे आग पर जल्द से जल्द क़ाबू की जाए।ऐसा तो नहीं होता कि सभी हाँथों को बाँध कर फ़ायर ब्रिगेड की इंतज़ार करते हैं।
इसी प्रकार पर्यावरण को बचाने के लिए हम सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों के ही भरोसे कैसे रह सकते हैं। जलवायु बदल रही है तो इसमें हम क्या करें,  हमने थोड़े ही न तापमान बढ़ाया है। ये सब तो सरकारों का काम है। पूरे दूनिया में तापमान बढ़ रहा है मेरे सिर्फ़ अकेले से क्या होगा ? ऐसे सोच से बचना चाहिए। स्वार्थपूर्ण प्रवृति वाले ये बोल अक्सर सुनने को मिलता है लेकिन यह नुक़सानदेह है। एक एक व्यक्ति को पर्यावरण बचाने के लिए आगे आना चाहिए। हमें यह समझना ज़रूरी है कि सब कुछ सरकारें नहीं कर सकतीं हमारी भी ज़िम्मेवारी बनती है।
बारिश की बूँदों को संजोकर रखना, नदी, समुद्र में पौलिथिन, प्लास्टिक को नहीं फेंकना, सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करना, पेड़ों को लगाना, सिंगल यूज़ प्लास्टिक को इस्तेमाल नहीं करना इत्यादि काम प्रत्येक व्यक्ति का है। गाँव ख़ाली हो रहे हैं और शहरों में रहने की जगह नहीं है। यह असंतुलन हमलोग ख़ुद बढ़ा रहे हैं। अतः सभी को असंतुलन से पैदा ऊँच नीच का ज्ञान आवश्यक है। प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक, आदि समस्याओं का संरक्षण तभी संभव होगा जब पर्यावरण सम्बन्धी जनचेतना होगी। अशुद्ध वातावरण से मानव का विनाश अवश्यमभावी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि शीघ्र ही यदि प्रकृति का संतुलन क़ायम न किया गया तो हमें औक्सीजन गैस के सिलिंडर साथ लेकर जीवन के लिए भटकना होगा। मानव को जितनी औक्सीजन की आवश्यकता होती है उसका लगभग आधा भाग सूर्य से प्राप्त होता है। किंतु प्रकृति के असंतुलन के फलस्वरूप हमें वह लाभ नहीं मिल पा रहा है। गाड़ियों और अन्य प्रकार के ध्वनि प्रदूषण से दिल की रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। रासायनिक खाद व अन्य रासायनिक तत्वों के पानी में घुलमिल जाने से जल हानिकारक होता जा रहा है। व्यक्ति के चारों ओर जो कुछ भी है पर्यावरण के अंतर्गत है। इस पर्यावरण ने सारी सृष्टि को सदियों से बचाए रखा है। यदि हम स्वयं  को या समस्त सृष्टि को बचाए रखना चाहते हैं तो पर्यावरण को सरकार के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए। भारत सरकार ने क्लायीमेट  चेंज की चुनौतियों को प्राथमिकता दी है। पिछले पाँच साल में भारत ने 38 मिलियन कार्बन उत्सर्जन कम किया है। सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का अभियान चलाया गया है। फिर भी अभी सरकार के सामने बहुत से पर्यावरण सम्बन्धी चुनौतियाँ हैं जिसे करना बाक़ी है। बरहाल जो काम सरकारों का है वह करती रहेगी लेकिन यह धरती हमारी है इसे बचाना हमारी ज़िम्मेवारी है। ज़रूरी है कि हम भी अपनी सामुदायिक व व्यक्तिगत भूमिका का आँकलन करें और उन्हें अपनी आदत बनाए। हमें पूरी ईमानदारी से पर्यावरण के सुधार में जुट जाना चाहिए जिससे क़ुदरत के घरौंदे बच जाए। पर्यावरण के लिए मूलमंत्र एक ही है “ क़ुदरत से जितना और जैसे लें उसे कम से कम उतना और वैसा लौटाएँ “।
चित्र : सौजन्य गूगल

Saturday 24 July 2021

on the Occasion of Guru Purnima

Guru Purnima is a festival of reverence and dedication to the Guru (Teacher ). This festival is a festival of salute and respect to the Guru.
It is celebrated on the full moon day known as Purnima as per the Hindu Calendar of Asardh Month.
Sri Sathya Sai Baba says " A true Guru destroys illusion and shed light. His presence is cool and comforting ".
An able Guru could guide a seeker to find this tranquilling by sharing knowledge of the inner life to complete worldly knowledge imparted by regular teachers. 
A Guru directs your gaze inwards and reveals to you to you the light of your own self. It is journey from self to Self. The Guru simply sheds light on this truth and facilitates the quest for self Realisation. 

Wednesday 7 July 2021

एक दूजे के लिए

मां_ पापा एक दुसरे के सपोर्ट सिस्टम के रूप में थे। पापा का कान खराब हुआ तो मां पापा के कान बन गई। पापा मां के विद्यालय के हर काम में सहयोग करते थे। दोनों एक दूसरे के बिना एक पल भी नही रहते थे। पापा के जाने के बाद टूट गईं थीं। तभी तो मेरे लाख कहने के बावजूद अपने घर में पापा के कमरे में ही रहने की जिद्द करती रहीं और पापा के ईश्वर के चरण में तीन साल भी नहीं हुए थे कि वह भी ईश्वर के चरण में उनके पास चली गईं।  
कैसे भुल सकता हुं वह घटना। पापा को hospital के  operation theatre से जब कमरे मे shift किया गया तो सिर्फ मैं कमरे में था । मां अस्वस्थता के कारण उस वक्त घर पर ही थीं। होश में आने के बाद सबसे पहले पापा ने मां के बारे में पूछा। उसके बाद हर दस मिनट के बाद मां के बारे मे पूछते रहे। कभी खिड़की से सड़क के तरफ़ झांकते तो कभी अपनी " मुनमुन " ( मेरी मां ) के बारे में नर्स और डाक्टर से पूछते और उन्हें बुलाने के लिए आग्रह करते। अंततः डाक्टर को मूझसे बोलना पड़ा कि मां को घर से बुलाना ही बेहतर होगा। मां अस्वस्थता की स्थिति में भी भागी हुई hospital आई। तब जा कर पापा के चेहरे पर मुस्कान और शकुन की झलक दिखा था।
सुनता आया हुं कि जब पति_पत्नी का चित्त एक दुसरे के लिए गति करता है तो वे एक दुसरे के प्रति प्रेम और अनुराग से भर जाते है तब वे इस जन्म में क्या अगले जन्म में भी अलग होना संभव नहीं होता। चित्त की वह गति ही पुनः एक कर देती है। यह सभी प्रकृति प्रदत्त ही होती है।
भगवान शिव अपनी पत्नी सती से इतना प्रेम करते थे कि उनके बगैर एक पल भी अलग नही रह सकते थे। इसी प्रकार माता सती भी अपने पति शिव से इतना प्रेम से भरी थीं कि अपने पिता के यज्ञ में 
अपने पति की अपमान सह नहीं सकी और आत्मदाह कर लिया। यह उनका प्रेम था जो फिर से पार्वती के रूप में शिव जी के पास आ गई। 
आज सात जुलाई  मेरे माता पिता की सालगिरह है। बेशक आज दोनों इस दुनिया में नही है लेकिन जो प्रेम और समर्पण मेरे माता पिता मे दिखा वह बहुत कम दिखने को मिलते है। उन्हें नमन 🙏🙏