प्रशांत ब्लॉग
Wednesday, 5 June 2024
Need solutions rather than pretend to be aware of the Environment
Thursday, 30 May 2024
Economics is important for Sustainable development
Tuesday, 10 January 2023
जोशीमठ : अनदेखी का नतीज़ा
गेटवे ऑफ हिमालय के नाम से मशहूर जोशीमठ जो बद्रीनाथ, केदारनाथ, हेमकुंठ साहिब जैसे तीर्थ स्थल का प्रवेशद्वार भी है , पर आए आपदा एक गम्भीर चिंता का विषय है। जोशीमठ नगर क्षेत्र में भू धंसाव के कारणों की जांच की जा रही है और समस्या का आंकलन किया जा रहा है लेकिन इसके पीछे प्रकृति से छेड़छाड़ और चेतावनियों की अनदेखी से इंकार नहीं किया जा सकता। अगर चेतावनियों की अनदेखी नहीं की गई होती विकास के नाम पर चकाचौंध खड़ी करने की कवायद जारी नही रखी गईं होती। आज हालात बिगड़ने पर एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, की टीम बचाव एवं राहत कार्य के लिए पहुंची है एवं एनआईडीएम जीएसओआई एवं सीबीआरआई जैसे संस्थानों को मौजूदा हालात का जायजा एवं अध्ययन कर सरकार को सुझाव देने के लिए कहा गया है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आखिर यह नौबत क्यों आईं ?
जोशीमठ के लोग इस आपदा की वजह सरकार की लापरवाही को ही मानती है। कहते हैं जोशीमठ तब से धंस रहा जब ये यूपी का हिस्सा हुआ करता था। उस समय गढ़वाल के आयुक्त रहे एम सी मिश्रा की अध्यक्षता में एक 18 सदस्यीय समिति की गठित की गई थी। इसे मिश्रा समिति नाम दिया गया था जिसने इस बात की पुष्टि की थी कि जो जोशीमठ धीरे धीरे धंस रहा है। समिति ने भू धंसाव वाले क्षेत्रों की ठीक कराकर वृक्षारोपण लगाने की सलाह दी थी। उस समिति में सेना, आईटीपी, बीकेटीसी और स्थानीय जनप्रतिनिधि शामिल थे। यही नही करीब पांच बार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसका सर्वेक्षण किया गया जिसमें पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट आदि ने इसमें अहम भूमिका निभाई लेकिन रिपोर्टों की अनदेखी की गई। इसके अलावा नवीन जुयाल की रिर्पोट और सरकारी आपदा प्रबन्धन की रिर्पोट में भी बताया गया था कि जोशीमठ बहुत ही कमजोर बुनियाद पर टिका हुआ है और यहां किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य कराने में खतरा है।
2021 की ऋषि गंगा की बाढ़ और अक्टूबर मे हुई भीषण बारिश के बाद यहां भू धसाओं तेजी से देखने को मिल रहा है जो चिंता का सबब है। ऋषि गंगा की बाढ़ के चलते आए भारी मलवे से अलकनंदा के बहाव में बदलाव आया जिससे जोशीमठ के निचले इलाकों में हो रहे भू कटाव में बढ़ोतरी हुई। अक्टूबर में हुई भीषण बारिश से रवि ग्राम बनाउ गंगा नाला क्षेत्र में बढ़े भू कटाव से जोशीमठ में भू धसाओं की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई। इधर सरकार को इस इलाके में जल विद्युत परियोजनाओं की मंजूरी नहीं देनी चाहिए थी जिनके लिए निर्माण कंपनियों ने सुरंग बनाने के लिए विस्फोट किए गए। नतीजन पहाड़ छलनी छलनी हो गए। इससे जोशीमठ ही नही समूचे उत्तराखंड में जहां जहां पनबिजली परियोजनाओं पर काम हो रहा है वहां यही स्थिति है। इस बाबत पर्यावरणविद, विशेषज्ञ इसके लिए बराबर सचेत करते रहे थे। सभी की यह राय थी कि जल विद्युत परियोजनाएं इस इलाके के हित में नहीं है। लेकिन इस अनदेखी ने उत्तराखंड को संकट एवं विनाश के मार्ग पर लाकर खड़ा खड़ा कर दिया है।
इससे यह साफ है कि जोशीमठ भावी आपदा का संकेत है जिसका कारण मानव खुद है। इसके पीछे आबादी और बुनियादी ढांचे में कई गुणा हुई अनियंत्रित बढ़ोतरी की भूमिका अहम है। दरारों का दायरा ज्योतिमठ और शहर के बाजारों तक पहुंच गया है। यह संकेत है कि यह थमने वाला नही है और भीषण आपदा को निमंत्रण दे रहा है।
इन ज़िम्मेदार सरकार के साथ साथ स्थानीय लोग भी है जिन्होंने वहां मकान, होटल बगैरह बनाए। स्थानीय प्रशासन भी दोषी है जिन्होंने निर्माण कार्य को नही रोका।
इसमें दो राय नहीं है कि बांध, पनबिजली परियोजनाऐं, रेलमार्ग भी ज़रुरी है लेकिन ऐसे निर्माण हमें वहां की परिस्थिति, पर्यावरण और प्रकृति को ध्यान में रखकर करनी चाहिए तभी उसके सार्थक परिणाम की आशा की जा सकती है। अन्यथा केदारनाथ, जोशीमठ जैसी घटनाएं होती रहेंगी।
Wednesday, 26 January 2022
Republic day special
Tuesday, 25 January 2022
गणतंत्र दिवस पर विशेष : अपना कर्तव्य करें तभी देश बनेगा।
यही वह 26 जनवरी का गौरवशाली ऐतिहासिक दिन है जब भारत ने आज़ादी के लगभग 2 साल 11 महीने 18 दिनों के बाद इसी दिन हमारी संसद में भारतीय संविधान को पास किया था। ख़ुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के लोगों द्वारा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। लेकिन आज भी हमारा गणतंत्र कितनी कंटीली झाड़ियों में फंसा प्रतीत होता है। अनायास ही हमारा ध्यान गणतंत्र की स्थापना से लेकर ” क्या पाया , क्या खोया ” के लेखा जोखा की तरफ खींचने लगता है। कर्तव्य पालन के प्रति सतत् जागरूकता से ही हम अपने अधिकारों को निरापद रखने वाले गणतंत्र का पर्व सार्थक रूप मे मना सकेंगे। तभी लोकतन्त्र और संविधान को बचाए रखने का हमारा संकल्प साकार होगा।
प्रायः कुछ लोगों से सुना जाता है कि स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी हमे देश से कुछ नहीं मिला जबकि यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में नागरिकों को बहुत सुविधाएं मिलती हैं। लेकिन क्या लोग यह सोचते हैं कि उन्होने देश को क्या दिया ? यदि सभी लोग याचना छोड़ कर देश के प्रति अपने कर्तव्य निभाएं तो देश की उन्नति को कोई नहीं रोक सकता।
संविधान के रचियता दूरदृष्टी संपन्न थे। संविधान के पाठ में मूल अधिकारों में समावेश तो किया गया किन्तु नागरिकों के मूल कर्तव्य भी होने चाहिए, इसपर या तो किसी का ध्यान नहीं गया था या इसे आवश्यक नहीं समझा गया था। कदाचित उन्होंने सोचा था कि भारत के लोग और उन्हीं में से चुने गए उनके नेता भारतीय तो बने रहेंगे पर यह अवधारणा भ्रांत निकली। लगभग ढाई दशक के उपरांत 42वें संशोधन के माध्यम से सविधान में भाग 4 (क) , अनुच्छेद 51 क का समावेश करना ही पड़ा जिसमें स्वतंत्र भारत के नागरिकों के मूल कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 51क का स्वतंत्र देश के प्रत्येक नागरिक की आचार संहिता है।
आमतौर हम देश से अपेक्षाएं रखते हैं लेकिन खुद से कोई अपेक्षा नहीं रखते हैं ये जानते हुए भी हमसे ही बनता है देश। हम देश के लिए कुछ नही करते उसकी आर्थिक, सांस्कृतिक, समृद्धि में योगदान नही करते और देश से अपेक्षा करते हैं कि वह हमारे लिए करे। हमसे ही देश बनता है। हमारे कार्यों से देश प्रगति के रास्ते पर जाएगा।गणतंत्र दिवस के समय जरूर हमलोगों में देश के प्रति देश भक्ति उजागर होने लगती है। रेडियो, टेलीविजन में देशभक्ति के गाने हमें कुछ समय के लिए अपने कर्तव्यों के लिए प्रोत्साहित करते हैं। परन्तु कुछ समय के बाद हमारा मन भी और चीज़ों में उलझ जाता है।
दरअसल व्यक्ति पांच स्तरों पर जीता है। आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा अद्ध्यात्मिक स्तरों पर। हर स्तर मे देश की एक प्रमुख भूमिका होती है। हम सब पर देश का उधार है। देश ने हमारी झोली में इतना कुछ दिया है फिर भी हम देश के सामने अपनी मांग ही रखते हैं। एक कहावत है जैसा आप सोचते हैं वैसा ही आप हो जाते हैं। आपकी सोच ही आपको बनाती हैं। हमें अपनी सोच को व्यापक बनाना होगा। छोटा सोचेंगे तो छोटा ही रह जाएंगे। हमारे मन में देने का भाव होना चाहिए न कि सिर्फ़ लेने का। देश को जब हम देते हैं उसी का प्रतिफल देश हमें देता है। सिर्फ़ कर देना देश सेवा नहीं होता।
आजादी की आधी से अधिक सदी बीतने के बाद भी हमारे कदम लड़खड़ा रहे हैं। सत्यमेव जयते से हमने किनारा कर लिया है। अच्छाई का स्थान बुराई ने ले लिया है और नैतिकता पर अनैतिकता प्रतिस्थापित हो गई है। ईमानदारी केवल कागजों में सिमट गई है और भ्रष्टाचार से पूरा समाज अच्छादित हो गया है। देश में भ्रष्टाचार, अराजकता, महंगाई, असहिष्णुता , बेरोजगारी और असमानता बढ़ता जा रहा है।
देशवासियों को जागने का समय आ गया है। भ्रष्टाचार और समाज को गलत राह पर ले जाने वाले लोगों को उनके गलत कार्यों की सजा देने के लिए आमजन को जागरूक होना जरूरी है। भावी पीढ़ी को संवारने के लिए पहले खुद को सुधारना होगा। गणतंत्र की साथर्कता तभी होगी जब हरेक व्यक्ति को काम और भरपेट भोजन मिले।
संविधान में जो हमारे कर्तव्य तय किए गए हैं उसका हम सही ढंग से पालन करें तभी हमारा देश महान बनेगा। संविधान का निर्माण इसलिए किया गया जिससे कानून व्यवस्था बनी रहे। सभी स्वतंत्र भारत में अमन और चैन से रह सके। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने संविधान में दिए गए नियमों का पालन करें। सबसे बड़ी बात अपने मौलिक अधिकारों को तो पहचाने ही साथ ही अपने मौलिक कर्तव्यों का भी निर्वहन करें।
देश भक्ति का भाव किसी अवसर का मोहताज नहीं होता। यह हमारे भीतर का स्थाई भाव होना चाहिए। देश भक्ति का मतलब देश से अपेक्षा नहीं , बल्कि देश के लिए कुछ करने की प्रवृति पैदा होना है।