Saturday 25 April 2020

संकट के समय बैंक और बैंक कर्मी हमेशा देश के साथ !!

करोना वायरस के इस वैश्विक संकट के दौर में जब दुनिया एक अदृश्य दुश्मन से लड़ रही है। ऐसे में देशवासियों की सुरक्षा के लिए के स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी, सफ़ाईकर्मी और मीडिया कर्मी प्रथम पंक्ति में मुकाबला कर ही रहे है, पर देश में कुछ और भी लोग है जो इस मुश्किल घड़ी में बिना शोर किये देश सेवा में कृत संकल्पित है और सजग प्रहरी के रूप में अपनी सेवाओं के माध्यम से 130 करोड़ देशवासियों की सेवा कर रहा है। ये कोई और नही आपके बैंककर्मी है। जो लगातार जनता के साथ सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करते हुए बैंकिंग सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं। 

करोना महामारी को ध्यान में रखते हुए जनता को पूर्ण सहयोग कर रहे हैं जिससे उन्हें बैंकिंग सेवाओं सम्बंधित किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हो।

इस वैश्विक महामारी के संकट भरे दौर में बैंक कर्मी अपनी सेवा के माध्यम से करोड़ो लोगों का दिल जीत रहे है। संकट के इस दौर में सबसे निचले तबके के लोगों को सरकार की ओर से जन धन खातों से मिली राहत को समय पर बैंक कर्मी उनतक पहुंचा रहे है। साथ ही वरीय नागरिकों, पेंशनर और अन्य लोगों को पैसे सही समय पर मिले इसके लिए प्रयत्नशील है।

बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध कराना विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में हमेशा से चुनौती रही है।सरकारी बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण अंग के रूप कार्य कर रही है। बैंक ग्रामीण भारत और शहरी भारत के आर्थिक स्थिति के अंतर को कम करने का प्रयास कर रही है।जिस गाँव में स्थिति बहुत ख़राब होती है वहाँ भी इनका प्रयास अच्छी से अच्छी सेवा देना होता है। इसके अतिरिक्त सरकारी अनुदान और सामाजिक सुरक्षा लाभ को लाभार्थी के खाते में प्रत्यक्ष रूप से पहुँचाया जाता है जिससे वह अपने ही गाँव में भुगतान प्राप्त कर सके।किसानों को कम दर पर ऋण उपलब्ध कराते हैं जिससे किसान साहूकार के शोषण से दूर रहें। सरकार इसके लिए दायित्वों और समझदारी के साथ पूरा करने का दवाब भी डालती है। 

बावजूद इतनी कर्मठता के सरकार किसी की भी आए लेकिन बैंककर्मियों के प्रति सहानुभूति नहीं होती। नेताओं के शह पर बड़े बड़े उद्योगपति जानबूझकर बैंक की रक़म नहीं चुकाते जिससे एन पी ए खातों से काफ़ी नुक़सान होता है। सरकारों की ज़िम्मेदारी बनती है कि ऐसे लोगों पर रिपोर्ट दर्ज कर उनसे वसूली की कारवाई करे लेकिन इसके उलट  बैंककर्मी पर ही कारवाई होती है।   कर्मचारियों पर काम के अत्याधिक बोझ होने से स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। 

विमुद्रीकरण अभियान ( Demonitization ) में बैंककर्मीयों की अहम भूमिका थी जिन्होंने रात दिन एक कर के देश और देशवासियों की सेवा की थी। ये अलग बात है कि कुछ खादीधारियों के कारण भ्रष्टचार मुक्त सुविधा के इस महा अभियान में भी उन्हें बदनामी हाथ लगी। जनधन खाते खुलवाने में लम्बी लगी क़तारें को उन्होंने बख़ूबी सम्भाला। जो आज सरकार के लिए जरूरतमंद लोगों तक सहायता राशि सीधे पहुंचाने में सहायक सिद्ध हुई है। 

आए दिन लोग बैंककर्मी की शिकायत करते हैं। जिससे उनके काम पड़ असर पड़ता है। जाली नोट मिलने से उन्हें अपने पास से भुगतान करना पड़ता है जिससे उन्हें नुक़सान होता है। कभी कभी ग्राहक कम नोट देकर चले जाते हैं इसका भी भुगतान उन्हे ही करना पड़ता है।

एक जमाने में बैंक कर्मी की तूती बोलती थी। बैंक की नौकरी सम्मानजनक मानी जाती थी। लेकिन कुछ वर्षों से हाशिए पर चले गए। बैंकिंग उद्योग का वर्तमान परिवेश दिनों दिन चुनौती पूर्ण होता जा रहा है। देश की अर्थवयवस्था में मंदी आने से गुणवत्ता की चुनौतियां बनी हुई है।बैंकों का विलय हो चुका है जिसका परिणाम कुछ वर्षों बाद ही मालूम पड़ेगा।

इस चुनौतीपूर्ण परिवेश में ये ग्राहक सेवा को उन्नत स्तर पर के जाने की कोशिश कर रहे हैं। बैंक को इस  संकट में सिर्फ़ उनके वेंडर ही मदद करते हैं। 

माइक्रोकाउंट्स की पूरी टीम  नोट गिनने की मशीन और नोट सॉर्टिंग मशीन की देखरेख में लगे रहते हैं जिससे बैंक का काम नहीं रुके। इसी प्रकार ए टी एम वेंडर भी सेवाएँ दे रहें हैं।

सरकार बैंक कर्मियों व अधिकारियों की मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करें। ग्राहकों को भी  सहयोग करना चाहिए। बैंक के उच्च अधिकारियों को भी अपने शाखाओं को वह सारी  टेक्नोलॉजी मुहैया कराना चाहिए जिससे उनका काम आसान हो। 
प्रधान मंत्री के 5 Trillion economy के सपनों को साकार करने में हमारे बैंककर्मी का economy soldiers के रूप में बहुत बड़ी भूमिका होगी।
Salute to bankers !!

Wednesday 22 April 2020

पृथ्वी दिवस ( Earth Day ) के अवसर पर पर्यावरण को बचाने का संकल्प लें।

 हर साल 22 April को दुनिया में 193 देशों मे पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है जिसकी शुुुुरुआत 1970 में  अमेरिका में हुआ था। मगर  इस वर्ष खास बात है कि इस वर्ष इसकी पचासवीं वर्षगांठ है। दूसरी खास बात है कि  इस वर्ष पूूरी दुनिया में वैश्विक महामारी फैली हुई है ऐसे में पर्यावरण में हमारी गलतियों से हुई बदलाव से सभी  अचंभित है।  प्रदूषण के स्तर में गिरावट और वायु की स्वच्छता को देखते हुए हमे समझना चाहिए कि मानव ने किस हद तक प्राकृतिक संतुलन को हानि पहुंचाया है।
महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लागू किए गए लॉक डाउन से प्रकृति को भी फायदा हुआ है।जैसे गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी एवं यमुना के पानी में भी थोड़ा सुधार हुआ है। हवा सांस लेने के लायक हुई। ओजोन परत में सुधार हुआ। पृथ्वी के कम्पन में भी कमी आईं है।

लोग विकास की धुन में लगे हुए थे किन्तु विकास एवं  विनाश समानांतर रूप से होता है फिर ऐसा विकास क्यों और किसके लिए ? अपनी भावी पीढ़ी को विरासत में क्या देंगे जब पर्यावरण बचेगा ही नहीं ।अतः मानव को विवेक एवं बुद्धि से सचेत होकर विनाश रहित विकास करना चाहिए अन्यथा विकास की कीमत विश्व के विनाश से चुकानी पड़ेगी।


सर्वोदय दर्शन का मूलमंत्र है " सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यं तू मा कश्चित दूखभाग भवेत्"। तात्पर्य है कि सभी जनसमुदाय सुखी रहें, सभी निरोग रहें, सभी पारस्परिक कल्याण का प्रयास करें तथा किसी को किसी प्रकार का दूख न हो। यदि हम सर्वोदय दर्शन के इस प्रमुख अवधारणा को भारतीय परिवेश में क्रियान्वित करने का काम करें तो हमें सबसे पहले पर्यावरणीय प्रदूषण से विमुक्त होने का प्रयास करना पड़ेगा।
प्रकृति ने मानव को अन्य जीवों की अपेक्षा एक विलक्षण वस्तु " मस्तिष्क" प्रदान किया है जिसका दुरुपयोग किया गया।उसने अपने जैविक और भौतिकवाद के चक्कर में पड़कर एवं स्वार्थ में पड़कर प्रकृति और पर्यावरण संकलन को क्षत विक्षत कर दिया। विज्ञान की निरंतर भाग दौड़ तथा मानव द्वारा भौतिकवाद प्राकृतिक संसाधनों को तीव्रता से नष्ट किया जा रहा है। हमारा भरा पूरा संसार प्रदूषण के मायाजाल में फंसकर विनाश की ओर जा रहा है।हमे उससे मुक्ति पाना असम्भव तो नहीं है यह हमे करोना के कारण लॉक डाउन ने सीखा दिया।प्रदूषण की लपेट में धरती, आकाश,जल एवं वायु आ चुका है।इस चुनौती को सामना करने के लिए हमे तुरंत प्रभावी कदम उठाने होंगे।भविष्य में संसाधन और पर्यावरण संतुलन आदि सब खत्म हो जाएंगे तो हम हम भावी पीढ़ी को क्या देंगे।
लोगों को उपभोक्तावादी जीवन शैली को बदलने और विकास की अवधारणाओं को पुनर्विचार करने की जरूरत है। पर्यावरण के अनुकूल नीति अपना कर ही हमारा भविष्य प्रकृति सम्मत विकास पर निर्भर करेगा। ज़रूरी है कि हम ग्रीन बिल्डिंग, प्रदूषण मुक्त स्वच्छ टेक्नोलॉजी और इलेक्ट्रिक वाहन की ओर अग्रसर हो।
करोना वायरस महामारी के बाद हमे अपने विकास और आर्थिक नीतियों की नए सिरे से दोबारा समीक्षा करना चाहिए।
सभी लोग संकल्प के साथ धरती को बचाने के लिए आगे आएं और मिलजुल कर इसे खूबसूरत बनाएं ।



Monday 13 April 2020

कुछ सीखा कर ये दौर गुजर जाएगा, फिर हर इंसान मुस्कुराएगा.........

करोना वायरस की वजह से पूरे देश में लॉक डाउन हो गया है, औद्योगिक गतिविधियां ठप्प हो गईं हैं।सड़कों पर गाडियां नहीं दौड़ रहीं हैं। भवन निर्माण बंद है।इस वजह से पर्यावरण को लाभ मिला है। पृथ्वी पर हमारी रक्षा कर रही ओजोन परत को प्रदूषण से नुकसान पहुंच रहा था उसमे भी कमी आने से ओजोन परत में सुधार दिख रहा है।एक शोध के अनुसार जो रासायनिक तत्व ओजोन परत के नुकसान में जिम्मेदार थी उसके उत्सर्जन में कमी होने के कारण यह सुधार हो रहा है। इसी ओजोन परत से निकली पराबैगनी किरण से कैंसर जैसी बीमारी होती है।
सार्वजनिक और निजी यातायात बंद होने से वाहनों से निकलने वाला कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में काम हो गया है।ऐसे में प्रदूषण का स्तर खास कर महानगरों में दिखना शुरू हो गया है। गंगा यमुना का जल स्वच्छ हो गया है।गंगा के स्वच्छ होने का कारण ५००% टी डी एस की कमी बताया जा रहा है। आसमान नीला दिखना शुरू हो गया है। हवा में ताजगी महसूस हो रहा है। अब लोगों को महसूस हो रहा है कि प्रकृति से कितनी छेड़ छाड़ की गई है।हमें प्रकृति से क्षमा मांगना चाहिए।हमने प्रकृति कि मर्म को नहीं समझा।लालच, दंभ, अज्ञानता से विनाश करते गए।
जो करोड़ों खर्च कर के भी नहीं किया जा सका वह एक वायरस एवं लॉक डाउन ने पर्यावरण को स्वच्छ कर दिया।यह कोई चमत्कार नहीं है।यह सिर्फ दर्शाता है कि हमने प्रकृति को बचाने के लिए कुछ नहीं किया। हमने सिर्फ पैसे एवं जुबानी खर्च किए ।
देश में लॉक डाउन के दौरान प्रदूषण की गिरावट एवं नदियों कि स्वच्छता एवं निर्मलता ने लोगों का ध्यान खींचना शुरू किया है। आशा है कि लॉक डाउन की अवधि और बढ़ने से वायु एवं नदियों में प्रदूषण और भी कम हो सकता है। यह एक तथ्य है कि पिछले कई वर्षों से देश के कई अन्य शहरों में वायु एवं नदियों के जल की गुणवत्ता में लगातार गिरावट आती जा रही है। यह एक स्थाई समस्या बन चुकी है। प्रदूषण की जिम्मेदारी किसी एक संस्था या व्यक्ति की नहीं है बल्कि पूरे समाज की है। हम सिर्फ सरकार के भरोसे  रहते हैं। अपनी जिम्मेदारी से भागते हैं।
यह सही है कि नदियों कि सफाई एवं प्रदूषण सम्बंधित नीति निर्माण सरकार का काम है। क्योंकि ऐसे विस्तृत और बहुआयामी कार्य को संभालना किसी व्यक्ति या समूह की बात नहीं है। चुकी इसमें गंगा के उदगम से लेकर समुद्र में समाहित होने तक की व्यापक कार्य योजना की जरूरत होती है और केंद्र एवं राज्य सरकारे मिलकर यह कार्यान्वित करते हैं इसलिए किसी व्यक्ति विशेष या समूह यह कार्य नहीं कर सकते। फैक्ट्रियों का नदियों के पास से हस्तांतरण,सीवेज को नदियों मै गिरने से रोकना,फैक्ट्रियों के निकलती धुएं को प्रदूषण रहित कराना इत्यादि सरकार का काम है।लेकिन क्या नागरिकों को अपने देश के प्रति और अपने प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है ? लेकिन नागरिकों में सबकुछ सरकार के भरोसे छोड़ने की मानसिकता बन गई है।
करोना से बीमारी बढ़ रही थी इसलिए सरकार एवं नागरिक तुरंत सचेत हो गए एवं सरकार द्वारा लॉक डाउन जैसे उपाय किए गए और जनता डर से सरकार के सुझाव को मानने पर विवश हुई। किन्तु दूषित पर्यावरण एवं  नदियों ने तुरंत सेहत पर असर नहीं डालते इसलिए सरकार एवं नागरिक गंभीरता से नहीं लेते। जबकि इस वजह से कैंसर एवं फ्लोरोसिस जैसी बीमारियां बढ़ रही है। सरकारों को आधे अधूरे उपाय से बचना चाहिए जिससे उनकी इच्छा शक्ति की कमी को प्रकट करे।राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार को यह समझने की सख्त जरूरत है कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए उनकी ओर से बहुत कुछ किया जाना शेष है।सरकार एवं नागरिक को प्रदूषण को रोकने के लिए अपनी सक्रियता बढ़ानी होगी। ये भी सच है कि सरकार की ज्यादा सक्रियता के कारण नागरिक अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटने लगते हैं।ज्यादातर नागरिकों को देश के पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी का तनिक भी एहसास नहीं है ।पर्यावरण बचाओ के नारे तो अनेक लोग लगाते हैं,खास मौकों पर रस्म अदायगी भी करते हैं लेकिन कुछ लोग ही होते हैं जो बिना दिखावे के अपनी जिम्मेदारी निभाते रहते हैं।हर नागरिक को वृक्ष लगाने की आश्यकता है।लोगों को निजी वाहन उतरकर बस एवं मेट्रो का रुख करना होगा।सरकार को भी हर व्यक्ति तक शहर के हर हिस्से में सार्वजनिक परिवहन की सुविधा उपलब्ध करानी होगी।पर्यटकों को पहाड़ों एवं समुद्र किनारे कचड़े नहीं फैलाना चाहिए।प्लास्टिक एवं पॉलीथिन का इस्तेमाल बिलकुल नहीं करना चाहिए।पॉलीथिन और प्लास्टिक समुद्र एवं मिट्ट में जाकर पर्यावरण को विनाश कर रहा है। हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि धरती के पर्यावरण को अब हम प्रदूषित नहीं करेंगे।
वास्तव में यह बुनियादी बात सभी को समझना ही होगा कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार का काम नहीं है इसमें हर व्यक्ति का योगदान चाहिए।
' कुछ सीखाकर ये दौर गुजर जाएगा ,फिर हर इंसान मुस्कुराएगा.........'

Wednesday 8 April 2020

पानी का व्यावसायीकरण

पानी का व्यावसायीकरण और निजीकरण 
———————————————-
दिल्ली मेट्रो स्टेशन के बाहर वॉटर डिस्पेंसर लग रहे हैं।एक छोटे से गिलास में १रु में पानी बेचा जा रहा है।सोचने पर मज़बूर हुआ कि पानी कैसे बिक सकता है।अगर इसी तरह पानी बिकना आरम्भ होता है तो ये ग़रीब इंसान ,पशु-पक्षी , पेड़ - पौधे कैसे पानी ख़रीद पाएँगे ? देश की सरकारों ने जिस प्रकार सरकारी  विद्यालय,अस्पताल कॉलेज को धीरे धीरे ख़त्म के कगार पर ला दिया उसी प्रकार हवा,पानी आदि प्राकृतिक संसाधनों को भी उस अवस्था में न ले आए ।एक योजनाबद्ध तरीक़े से सभी सार्वजनिक स्थानों से प्याऊ,नल, हैंडपम्प,आदि हटा दिए गए।ऐसा क्या हुआ की पिछले १०-१५ वर्षों से पानी का बिकना आरम्भ हो गया। सरकारों ने पानी बेचना शुरू कर दिया जैसे रेल नीर आदि।
हमारे सविंधान के “आर्टिकल २१ - जीवन के अधिकार “ से भी यह स्पष्ट होता है कि सरकार को शुद्ध पानी की व्यवस्था करना चाहिए।कोई भी जनकल्याणकारी सरकार देश के नागरिकों को उनकी मूलभूत आवश्यकताएँ उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है।
अब तो पानी के व्यवसायिकरण के साथ साथ निजीकरण की सरकारी मुहिम अचानक जोड़ पकड़ने लगी है।बिजली की निजीकरण का फल लोग भुगत रहे हैं।पावर सप्लाई के तर्ज़ पर वॉटर सप्लाई की निजीकरण का शोर है।जहाँ पर पानी की कमी है वहाँ हफ़्ते में वॉटर सप्लाई के ज़रिए पानी दिया जाता है।ऐसे में प्राईवेट लोग मनमानी करते हैं।लगभग १०,००० करोड़ डॉलर का पानी का वैश्विक कारोबार है।भारत बोतल बंद पानी का दसवाँ बड़ा उपभोक्ता है।जल के व्यावसायिकरण से ग़रीब और कमज़ोर लोग जो इसके लिए उतना मूल्य देने में सक्षम नहीं हैं जितना धनी लोग दे सकते हैं उनकी पहुँच से पानी दूर हो जाएगा।जल के निजीकरण के लिए सबसे बड़ी वजह निजी क्षेत्र का व्यावसायिक प्रभाव ही है।
प्रकृति ने हमें पानी प्रचूर मात्रा में दिया है।प्रकृति का यह उपहार स्वतंत्र रूप से बिना किसी विषमता के सब के लिए समान रूप से उपलब्ध होना चाहिए।यह क़ानून के द्वारा  सरकार को सुनिस्चित करना चाहिए की इन संसाधनों का बचाव किया जाए और इसका किसी तरह का व्यावशायिकरण या निजीकरण न हो।नागरिकों की भी ज़िम्मेवारी बनती है कि पानी की बर्बादी नहीं करें एवं सरकार का प्रबंधन में सहयोग करें।
पीने योग्य पानी सभी सार्वजनिक रूप से मुफ़्त मिले यही हम सब का प्रयास होना चाहिए।

Tuesday 7 April 2020

करोना और अर्थव्यवस्था

करोना ने पूरे विश्व में उथल पथल मचा दिया।इसकी वजह से लाखों लोगों की मौत का अनुमान है।पूरा विश्व समुदाय परस्पर एक दूसरे के सहयोग कर संभवतः काबू पा लेंगे।
इस महामारी के कारण कई छोटे बड़े देशों ने लॉक डाउन कर दिया है जिससे तेज़ी से दौड़ती हुई अर्थव्यवस्था का पहिया रुक गया। फैक्ट्रिया बंद हो गई,उत्पादन रुक गया।बाज़ार बंद हैं , उपभोक्ता नदारद हैं।फसल कटने को तैयार हैं लेकिन काटने वाला मजदूर नहीं है। आयात निर्यात बंद है। देश विदेश के पर्यटक नदारद हैं एवं होटलों में ताले लगे हैं।
पूरे विश्व में करीब करीब मंदी आ गई। यू एस ए एवं यूरोप के देशों को भी इससे जूझना पड़ रहा है। भारत में भी करोना से राष्ट्रीय संकट आ गई है।एक तरफ स्वास्थ संकट तो दूसरी तरफ आर्थिक संकट।
भारत को आने वाली आर्थिक मंदी से निपटने की चुनौती होगी।बेरोज़गारी की समस्या का सामना करना होगा। यू एस ए जैसे देश में बेरोज़गारी के क्लेम आ रहे हैं।भारत में अनुमान है कि कुल ४६ करोड़ नौकरियां में से करीब १३ करोड़ नौकरियां जाएंगी।
इस संक्रमण पर काबू करने के बाद भारत की सबसे बड़ी चुनौती होगी अर्थव्यवस्था को कैसे ट्रैक पर लाया जाय।
आने वाली आर्थिक मंदी से निपटने के लिए सरकार को पूरा जोर उन उद्योगों को उबारने के इर्द गिर्द केंद्रित होना चाहिए जो बड़े पैमाने पर रोज़गार पैदा करते हैं।मंदी के शिकंजे से बाहर निकलने के लिए प्रत्येक क्षेत्र की मदद के लिए प्रभावी उपाय करने होंगे।कृषि,पर्यटन, वाहन, एवं आभूषण जैसे क्षेत्रों की वृद्धि से लाखों अवसर सृजित होंगे।इससे मांग में व्यापक रूप से इजाफा होगा।
सरकार को विपक्षी दलों के साथ विचार विमर्श कर साहसिक फैसले लेने होंगे।इसके लिए ढांचागत सुधारों के साथ कुछ तत्कालिक कदम उठाने होंगे। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने यही सलाह दी है। हालांकि देश के रिजर्व बैंक ने कुछ रियायतें दी है जैसे लोन की किश्तों पर ३महीने की छूट, सी आर आर में १% की कमी, रिवर्स रेपो रेट में भी कमी की है। बैंकों को अपनी मार्जिन कम करने को कहा है। लेकिन ये नाकाफी है। सरकार को सिस्टम में लिक्वडिती बढ़ाने की जरूरत है।लोगों की जेब में पैसे डालना है होगा तभी मांग बढ़ेगी।सरकार को जीडीपी का न्यूनतम १०% का खर्च करना ही होगा। ज़ाहिर सी बात है समाज का बड़ा हिस्सा बड़ा हिस्सा ऐसे अनिश्चितता के दौड़ में पैसा खर्च करना कम कर देता है। इससे अर्थव्यवस्था के लिए संकट खड़ा हो जाता है। इस कारण पूरी आबादी की आय प्रभावित होती है।इसमें बड़े कारोबारियों से लेकर छोटे किराने की दुकान चलाने वाले व्यापारियों तक सभी शामिल रहते हैं।इससे उत्पादन में कमी आती है और लोगों को नौकरियों से निकालने लगते है।ऐसी स्थिति में किफायत के विरोधाभास का तोड़ना बहुत ज़रूरी होता है।यह तभी हो सकता है जब सरकार अपनी तरफ से ज्यादा पैसा खर्च करे।इस खर्च से लोगों की आय बढ़ेगी और लोग उस पैसे को खर्च करेंगे।
सरकार को कृषि पर ध्यान देना अति आवश्यक है।फसल कटने के लिए तैयार है किन्तु फसल काटने की मशीन उपलब्ध नहीं है। अगर मशीनों की उपलब्धता हो भी जाती है तो उसे चलाने के लिए मजदूर नहीं है।सरकार को इसके लिए जल्दी कोई कदम उठाने होंगे।
इस बीच अच्छी खबर यह है कि इस वर्ष अच्छी फसल होने की उम्मीद है।

Monday 6 April 2020

करोना महामारी प्रकृति की मारी

ईश्वर ने कितनी खूबसूरत दुनिया बनाई है लेकिन इंसान इसे बदसूरत बनाने में लगा हुआ है।विकास के नाम पर विनाश करता जा रहा है।बुलंदियों को छूने एवं प्रतिस्पर्धा की प्रवृत्ति ने विश्व को खतरे में डालता जा रहा है। प्रकृति ने मानव को अन्य जीवों की अपेक्षा एक विलक्षण वस्तु मस्तिष्क प्रदान किया जिसका उसने दुरुपयोग करना शुरू कर दिया।उसने जैविक और भौतिकवाद के चक्कर में पड़ कर उसने प्रकृति को क्षत्ती पहुंचाना शुरू कर दिया।उसका ही परिणाम है करोना वायरस।यह वायरस लैब में तैयार किए जाने की आशंका जताई जा रही है। करोना वायरस एक संक्रामक रोग है।यह एक नए तरह के वायरस की वजह से होता है। 2003 में सार्स अर्थात सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम और 2012 में मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम भी करोना वायरस के प्रकोप का नतीजा था लेकिन इसे वैश्विक महामारी घोषित नहीं किया गया। करोना वायरस चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ और तीन महीने के अंदर 40 देशों में फ़ैल गया।कुछ लोगों का यह भी कहना है चीन में चमगादड़ों में सार्स से सम्बंधित करोना वायरस पाए गए हैं।चीन में लोग चमगादड़ों की शिकार करते हैं। उनके संपर्क में आने से ही  यह बीमारी फैला है।चीन में इस प्रकोप के बाद पूरे देश में वन्य जीवन के व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। विश्व को प्रतिस्पर्धा छोड़ कर एक जुट हो कर परस्पर सहयोग से कार्य करना होगा। चुकी भारत का प्रकृति के साथ जुड़ाव है और प्राकृतिक आरोग्य रक्षण की पद्धति में विश्वास रखता है तो संभवतः यहां मृत्यु दर दूसरे देशों से कम होने की संभावना है ।भारत की भौगोलिक स्थिति के कारण मानवीय हानि चीन यूरोप जैसी नहीं हो पाएगी लेकिन आर्थिक और भौतिक हानि की संभावना ज्यादा है।  #करोना #कोरोना वायरस से जंग
HD में देखने के लिए यहाँ क्लिक करें !
क्या आप रिकमेंडेड कंटेंट से संतुष्ट हैं?
हां
नहीं

Thursday 2 April 2020

लॉक डाउन और पर्यावरण

करोना बेशक एक महामारी के रूप में विश्व में फ़ैल गया जिससे जानमाल का बहुत नुकसान हुआ।यकीनन इंसान इस महामारी पर विजय भी पा जाएगा।
इस महामारी के कारण कई देशों ने लंबी लॉक डाउन किया। इससे एक फायदा हुआ प्रदूषण में भारी कमी।एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा नदी का जल भी स्वच्छ होने लगा है।निर्माण कार्य बंद होने के कारण वातावरण से धूल मिट्टी लगभग गायब है।पंजाब के जालंधर शहर से हिमाचल के बर्फ से ढके पहाड़ दिखने लगे हैं, पक्षियों की चाचाहट जिसे शहरों के बच्चों ने शायद ही सुनी होगी वह चारों तरफ सुनाई दे रही है।नोएडा में नील गाय,चंडीगढ़ में तेंदूआ, तो कहीं हिरण जैसे वन्य जीव शहरों के सड़कों पर देखने को मिल रहे हैं। नीला आसमान और टिमटिमाते तारों को देखकर बच्चे गदगद हैं।
ये सारे परिवर्तन क्यों और कैसे हुए ?
ये परिवर्तन लॉक डाउन के कारण हुआ। लॉक डाउन के कारण सारे फैक्टरियां बंद हो गईं, सड़कों पर दौड़ती लाखों गाडियां एवं हवाई जहाजों के बंद होने के कारण हुआ।ये फैक्ट्रियों,गाड़ियों एवं लोगों के शोरगुल बंद होने के कारण हुआ। इंसानों ने वायु,ऊर्जा,ध्वनि,मिट्टी,जल प्रदूषण को चरम सीमा पर पहुंचा दिया।प्राकृतिक संतुलन एवं पर्यावरण संतुलन को लगभग नष्ट कर दिया है।विकास के नाम पर प्रकृति एवं पर्यावरण के साथ बहुत दिनों से छेड़ छाड़ कर रहे हैं। विज्ञान की निरंतर भाग दौड़ तथा मानव का भौतिकवाद, लोभ,संसार को नष्ट करता जा रहा है।
इस लॉक डाउन से हमें सबक मिला है कि कठोर कदम उठाने से हम अपने पर्यावरण को बचा सकते हैं ज़रूरत है इच्छा शक्ति की। समस्त विश्व को एकजुट होकर परस्पर सहयोग से कार्य करना होगा। पर्यावरण जैसी चुनौती के लिए हमें तुरंत प्रभावी कदम उठाने होंगे।हमें पर्यावरणीय प्रदूषण से विमुक्त होने का प्रयास करना होगा।सम्पूर्ण मानव जाति को गंभीरता से इस पर चिंतन करने की जरूरत है।
मेरा मानव जाति के लिए एक संदेश !!!
"लौट आओ प्रकृति की ममता की गोद में।इसी में सभी का कल्याण है।"
अपना और अपने आगे आने वाली संतानों के लिए विकास अवश्य करो किन्तु विनाश नहीं।ईश्वर ने कितनी खूबसूरत दुनिया बनाई है ये लॉक डाउन के बाद एहसास हुआ। मुफ्त में मिली हुई अनमोल उपहार की कद्र करने कि ज़रूरत है।