Tuesday 10 January 2023

जोशीमठ : अनदेखी का नतीज़ा


 गेटवे ऑफ हिमालय के नाम से मशहूर जोशीमठ जो बद्रीनाथ, केदारनाथ, हेमकुंठ साहिब जैसे तीर्थ स्थल का प्रवेशद्वार भी है  , पर आए आपदा एक गम्भीर चिंता का विषय है। जोशीमठ नगर क्षेत्र में भू धंसाव के कारणों की जांच की जा रही है और समस्या का आंकलन किया जा रहा है लेकिन इसके पीछे प्रकृति से छेड़छाड़ और चेतावनियों की अनदेखी से इंकार नहीं किया जा सकता। अगर चेतावनियों की अनदेखी नहीं की गई होती विकास के नाम पर चकाचौंध खड़ी करने की कवायद जारी नही रखी गईं होती। आज हालात बिगड़ने पर एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, की टीम बचाव एवं राहत कार्य के लिए पहुंची है एवं एनआईडीएम जीएसओआई एवं सीबीआरआई जैसे संस्थानों को मौजूदा हालात का जायजा एवं अध्ययन कर सरकार को सुझाव देने के लिए कहा गया है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आखिर यह नौबत क्यों आईं ?

जोशीमठ के लोग इस आपदा की वजह सरकार की लापरवाही को ही मानती है। कहते हैं जोशीमठ तब से धंस रहा जब ये यूपी का हिस्सा हुआ करता था। उस समय गढ़वाल के आयुक्त रहे एम सी मिश्रा की अध्यक्षता में एक 18 सदस्यीय समिति की गठित की गई थी। इसे मिश्रा समिति नाम दिया गया था जिसने इस बात की पुष्टि की थी कि जो जोशीमठ धीरे धीरे धंस रहा है। समिति ने भू धंसाव वाले क्षेत्रों की ठीक कराकर वृक्षारोपण लगाने की सलाह दी थी। उस समिति में सेना, आईटीपी, बीकेटीसी और स्थानीय जनप्रतिनिधि शामिल थे। यही नही करीब पांच बार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसका सर्वेक्षण किया गया जिसमें पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट आदि ने  इसमें अहम भूमिका निभाई लेकिन रिपोर्टों की अनदेखी की गई। इसके अलावा नवीन जुयाल की रिर्पोट और सरकारी आपदा प्रबन्धन की रिर्पोट में भी बताया गया था कि जोशीमठ बहुत ही कमजोर बुनियाद पर टिका हुआ है और यहां किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य कराने में खतरा है।

2021 की ऋषि गंगा की बाढ़ और अक्टूबर मे हुई भीषण बारिश के बाद यहां भू धसाओं तेजी से देखने को मिल रहा है जो चिंता का सबब है। ऋषि गंगा की बाढ़ के चलते आए भारी मलवे से अलकनंदा के बहाव में बदलाव आया जिससे जोशीमठ के निचले इलाकों में हो रहे भू कटाव में बढ़ोतरी हुई। अक्टूबर में हुई भीषण बारिश से रवि ग्राम बनाउ गंगा नाला क्षेत्र में बढ़े भू कटाव से जोशीमठ में भू धसाओं की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई। इधर सरकार को इस इलाके में जल विद्युत परियोजनाओं की मंजूरी नहीं देनी चाहिए थी जिनके लिए निर्माण कंपनियों ने सुरंग बनाने के लिए विस्फोट किए गए। नतीजन पहाड़ छलनी छलनी हो गए। इससे जोशीमठ ही नही समूचे उत्तराखंड में जहां जहां पनबिजली परियोजनाओं पर काम हो रहा है वहां यही स्थिति है। इस बाबत पर्यावरणविद, विशेषज्ञ इसके लिए बराबर सचेत करते रहे थे। सभी की यह राय थी कि जल विद्युत परियोजनाएं इस इलाके के हित में नहीं है। लेकिन इस अनदेखी ने उत्तराखंड को संकट एवं विनाश के मार्ग पर लाकर खड़ा खड़ा कर दिया है।

इससे यह साफ है कि जोशीमठ भावी आपदा का संकेत है जिसका कारण मानव खुद है। इसके पीछे आबादी और बुनियादी ढांचे में कई गुणा हुई अनियंत्रित बढ़ोतरी की भूमिका अहम है। दरारों का दायरा ज्योतिमठ और शहर के बाजारों तक पहुंच गया है। यह संकेत है कि यह थमने वाला नही है और भीषण आपदा को निमंत्रण दे रहा है।

इन ज़िम्मेदार सरकार के साथ साथ स्थानीय लोग भी है जिन्होंने वहां मकान, होटल बगैरह बनाए। स्थानीय प्रशासन भी दोषी है जिन्होंने निर्माण कार्य को नही रोका। 

इसमें दो राय नहीं है कि बांध, पनबिजली परियोजनाऐं, रेलमार्ग भी ज़रुरी है लेकिन ऐसे निर्माण हमें वहां की परिस्थिति, पर्यावरण और प्रकृति को ध्यान में रखकर करनी चाहिए तभी उसके सार्थक परिणाम की आशा की जा सकती है। अन्यथा केदारनाथ, जोशीमठ जैसी घटनाएं होती रहेंगी।