Friday 30 July 2021

महान लेखक मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उन्हे श्रद्धांजली



आज करोना काल में दुनिया जितनी विचारवान है मेरी जानकारी में पहले कभी नहीं थी। राजनैतिक,सामाजिक एवं आर्थिक सबकुछ इस करोना ने बदल दिया है।
वर्तमान समय हमारे सामने बहुत सी  समस्याएं लेकर आई है। सारी दुनिया के लेखकों, कवियों को आगे आना चाहिए क्योंकि सभी लोग एक दूसरे की समस्याओं से परिचित हैं। कहानी और कविताओं के जरिए लोगों में हिम्मत, आत्मविश्वास एवं नई चेतनाओं को जगाने की जरूरत है। आज लेखक एवं कवि की जिम्मेदारी बढ़ गई है क्योंकि लेखक और कवियों ने हमेशा अपने कलम से समाज में चेतना को जगाया है। इसलिए आज विज्ञान और राजनीति से मायूस दुनिया की नज़रें लेखक और कवि की तरफ है।

आज मुंशी प्रेमचंद की जयंती है।  ईदगाह, शतरंज के खिलाड़ी, नमक का दारोगा, कर्मभूमि जैसे उपन्यास लिखने वाले प्रेमचंद जी आज २१ वीं शताब्दी में भी लोगों के दिल में बसते हैं।  प्रेमचंद, दिनकर जैसे लोगों ने अपने कलम से समाज को बदल दिया। वर्तमान परिस्थिति में लोगों में स्फूर्ति,साहस, विश्वास को जगाना ही प्रेमचंद जी को सच्ची श्रद्धांजली होगी।

Wednesday 28 July 2021

विश्व प्राकृति संरक्षण दिवस

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस इस बात के लिए जागरूक करता है कि एक स्वस्थ पर्यावरण एक स्थिर और स्वस्थ मानव समाज की नींव है. यह हर साल 28 जुलाई को मनाया जाता है.
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य उन जानवरों और पेड़ों का संरक्षण करना है जो पृथ्वी के प्राकृतिक पर्यावरण से विलुप्त होने के कगार पर हैं. हमारी धरती मां की रक्षा में संसाधनों के संरक्षण की अहम भूमिका है.

कहीं आग लगती है तो मुहल्ले के सभी लोग दौड़ते है। कोई बालटियों में पानी लेकर दौड़ता है तो कोई धूल मिट्टी फेंकता है।सभी लोग कुछ न कुछ करते हैं जिससे आग पर जल्द से जल्द क़ाबू की जाए।ऐसा तो नहीं होता कि सभी हाँथों को बाँध कर फ़ायर ब्रिगेड की इंतज़ार करते हैं।
इसी प्रकार पर्यावरण को बचाने के लिए हम सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों के ही भरोसे कैसे रह सकते हैं। जलवायु बदल रही है तो इसमें हम क्या करें,  हमने थोड़े ही न तापमान बढ़ाया है। ये सब तो सरकारों का काम है। पूरे दूनिया में तापमान बढ़ रहा है मेरे सिर्फ़ अकेले से क्या होगा ? ऐसे सोच से बचना चाहिए। स्वार्थपूर्ण प्रवृति वाले ये बोल अक्सर सुनने को मिलता है लेकिन यह नुक़सानदेह है। एक एक व्यक्ति को पर्यावरण बचाने के लिए आगे आना चाहिए। हमें यह समझना ज़रूरी है कि सब कुछ सरकारें नहीं कर सकतीं हमारी भी ज़िम्मेवारी बनती है।
बारिश की बूँदों को संजोकर रखना, नदी, समुद्र में पौलिथिन, प्लास्टिक को नहीं फेंकना, सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करना, पेड़ों को लगाना, सिंगल यूज़ प्लास्टिक को इस्तेमाल नहीं करना इत्यादि काम प्रत्येक व्यक्ति का है। गाँव ख़ाली हो रहे हैं और शहरों में रहने की जगह नहीं है। यह असंतुलन हमलोग ख़ुद बढ़ा रहे हैं। अतः सभी को असंतुलन से पैदा ऊँच नीच का ज्ञान आवश्यक है। प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक, आदि समस्याओं का संरक्षण तभी संभव होगा जब पर्यावरण सम्बन्धी जनचेतना होगी। अशुद्ध वातावरण से मानव का विनाश अवश्यमभावी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि शीघ्र ही यदि प्रकृति का संतुलन क़ायम न किया गया तो हमें औक्सीजन गैस के सिलिंडर साथ लेकर जीवन के लिए भटकना होगा। मानव को जितनी औक्सीजन की आवश्यकता होती है उसका लगभग आधा भाग सूर्य से प्राप्त होता है। किंतु प्रकृति के असंतुलन के फलस्वरूप हमें वह लाभ नहीं मिल पा रहा है। गाड़ियों और अन्य प्रकार के ध्वनि प्रदूषण से दिल की रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। रासायनिक खाद व अन्य रासायनिक तत्वों के पानी में घुलमिल जाने से जल हानिकारक होता जा रहा है। व्यक्ति के चारों ओर जो कुछ भी है पर्यावरण के अंतर्गत है। इस पर्यावरण ने सारी सृष्टि को सदियों से बचाए रखा है। यदि हम स्वयं  को या समस्त सृष्टि को बचाए रखना चाहते हैं तो पर्यावरण को सरकार के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए। भारत सरकार ने क्लायीमेट  चेंज की चुनौतियों को प्राथमिकता दी है। पिछले पाँच साल में भारत ने 38 मिलियन कार्बन उत्सर्जन कम किया है। सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का अभियान चलाया गया है। फिर भी अभी सरकार के सामने बहुत से पर्यावरण सम्बन्धी चुनौतियाँ हैं जिसे करना बाक़ी है। बरहाल जो काम सरकारों का है वह करती रहेगी लेकिन यह धरती हमारी है इसे बचाना हमारी ज़िम्मेवारी है। ज़रूरी है कि हम भी अपनी सामुदायिक व व्यक्तिगत भूमिका का आँकलन करें और उन्हें अपनी आदत बनाए। हमें पूरी ईमानदारी से पर्यावरण के सुधार में जुट जाना चाहिए जिससे क़ुदरत के घरौंदे बच जाए। पर्यावरण के लिए मूलमंत्र एक ही है “ क़ुदरत से जितना और जैसे लें उसे कम से कम उतना और वैसा लौटाएँ “।
चित्र : सौजन्य गूगल

Saturday 24 July 2021

on the Occasion of Guru Purnima

Guru Purnima is a festival of reverence and dedication to the Guru (Teacher ). This festival is a festival of salute and respect to the Guru.
It is celebrated on the full moon day known as Purnima as per the Hindu Calendar of Asardh Month.
Sri Sathya Sai Baba says " A true Guru destroys illusion and shed light. His presence is cool and comforting ".
An able Guru could guide a seeker to find this tranquilling by sharing knowledge of the inner life to complete worldly knowledge imparted by regular teachers. 
A Guru directs your gaze inwards and reveals to you to you the light of your own self. It is journey from self to Self. The Guru simply sheds light on this truth and facilitates the quest for self Realisation. 

Wednesday 7 July 2021

एक दूजे के लिए

मां_ पापा एक दुसरे के सपोर्ट सिस्टम के रूप में थे। पापा का कान खराब हुआ तो मां पापा के कान बन गई। पापा मां के विद्यालय के हर काम में सहयोग करते थे। दोनों एक दूसरे के बिना एक पल भी नही रहते थे। पापा के जाने के बाद टूट गईं थीं। तभी तो मेरे लाख कहने के बावजूद अपने घर में पापा के कमरे में ही रहने की जिद्द करती रहीं और पापा के ईश्वर के चरण में तीन साल भी नहीं हुए थे कि वह भी ईश्वर के चरण में उनके पास चली गईं।  
कैसे भुल सकता हुं वह घटना। पापा को hospital के  operation theatre से जब कमरे मे shift किया गया तो सिर्फ मैं कमरे में था । मां अस्वस्थता के कारण उस वक्त घर पर ही थीं। होश में आने के बाद सबसे पहले पापा ने मां के बारे में पूछा। उसके बाद हर दस मिनट के बाद मां के बारे मे पूछते रहे। कभी खिड़की से सड़क के तरफ़ झांकते तो कभी अपनी " मुनमुन " ( मेरी मां ) के बारे में नर्स और डाक्टर से पूछते और उन्हें बुलाने के लिए आग्रह करते। अंततः डाक्टर को मूझसे बोलना पड़ा कि मां को घर से बुलाना ही बेहतर होगा। मां अस्वस्थता की स्थिति में भी भागी हुई hospital आई। तब जा कर पापा के चेहरे पर मुस्कान और शकुन की झलक दिखा था।
सुनता आया हुं कि जब पति_पत्नी का चित्त एक दुसरे के लिए गति करता है तो वे एक दुसरे के प्रति प्रेम और अनुराग से भर जाते है तब वे इस जन्म में क्या अगले जन्म में भी अलग होना संभव नहीं होता। चित्त की वह गति ही पुनः एक कर देती है। यह सभी प्रकृति प्रदत्त ही होती है।
भगवान शिव अपनी पत्नी सती से इतना प्रेम करते थे कि उनके बगैर एक पल भी अलग नही रह सकते थे। इसी प्रकार माता सती भी अपने पति शिव से इतना प्रेम से भरी थीं कि अपने पिता के यज्ञ में 
अपने पति की अपमान सह नहीं सकी और आत्मदाह कर लिया। यह उनका प्रेम था जो फिर से पार्वती के रूप में शिव जी के पास आ गई। 
आज सात जुलाई  मेरे माता पिता की सालगिरह है। बेशक आज दोनों इस दुनिया में नही है लेकिन जो प्रेम और समर्पण मेरे माता पिता मे दिखा वह बहुत कम दिखने को मिलते है। उन्हें नमन 🙏🙏