Saturday 31 October 2020

सरदार पटेल और राष्ट्रीय एकता दिवस

भारत के प्रथम उप प्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल के जन्म दिवस 31 अक्टूबर को " राष्ट्रीय एकता दिवस " के रूप में मनाया जा रहा है। वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने इसकी घोषणा की थी। इसी दिन राष्ट्रीय स्तर पर  " रन फॉर यूनिटी " का आयोजन किया जाता है। विश्व की सबसे ऊंची सरदार पटेल की  प्रतिमा  " स्टैचू ऑफ यूनिटी के रूप में गुजरात के केवाड़िया में स्थापित किया गया। 

31 अक्टूबर 1875 को जन्मे सरदार पटेल को नए भारत का शिल्पकार कहा जाता है। आज़ादी के बाद टुकड़ों में बटी  565 रियासतों का विलय करके सरदार पटेल ने अखंड भारत का निर्माण किया था।

आज़ाद भारत के शासन तंत्र को वैधता प्रदान करने में गांधी, नेहरू, और पटेल की त्रिमूर्ति की बहुत भूमिका रही थी। लेकिन शासन तंत्र भारतीय इतिहास में गांधी और नेहरू के योगदान को तो स्वीकार करता है  लेकिन पटेल की चर्चा कम की गई। पटेल यथार्थवादी थे तभी वे सभी काम बेहतर ढंग से कर सके। 

बल्लभ भाई पटेल को " सरदार " उपनाम गुजरात के बारडोली की महिलाओं ने दिया था। पटेल ने गुजरात के किसानों को साथ लेकर ब्रिटिश सरकार द्वारा 22 प्रतिशत का लगान लगाने के विरोध में आंदोलन कर सरकार को  झुकाया था जिससे लगान दर घटा कर 6.03 प्रतिशत कर दिया गया था। 

भारतीय संघ में रियासतों का विलय करवाने में पटेल ने कभी कभी  सख्ती से काम लिया जिसके उदाहरण हैदराबाद और जूनागढ़ का भारत संघ में विलय है। पाकिस्तान की धमकी एवं तब के भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष जेनरल रॉबर्ट बुचर के नहीं राजी होने के बावजूद उन्होंने सख्त फैसला लेते हुए सैन्य हस्तक्षेप कर हैदराबाद को भारत में विलय करा दिया था। जूनागढ़ के नवाब तो उनके डर से भागकर पाकिस्तान चला गया।

देसी रियासतों को स्वतंत्र भारत की विलय पहली उपलब्धि थी और इसका पूरा योगदान सरदार पटेल का था। इसी  नीतिगत दृढ़ता के लिए गांधी जी ने उन्हें " लौह पुरुष " की उपाधि दी थी।

एक रूसी प्रधान मंत्री ने कहा था कि राजाओं को समाप्त किए बिना राजवाड़ों को समाप्त कर देना पटेल ही जानते है। उनके निर्णय लेने की क्षमता पर पूर्व उप सेनाध्यक्ष, नेपाल में रहे राजदूत, जम्मु- काश्मीर के राज्यपाल जेनरल एस के सिन्हा के अनुसार एक बार हैदराबाद के विषय पर विचार विमर्श के लिए पटेल ने जेनरल करियप्पा को बुलाया। करियप्पा के पहुंचने पर उन्होंने उनसे पूछा कि क्या हम हैदराबाद पर सैनिक करवाई के लिए तैयार है ?  करियप्पा के हां कहते ही मीटिंग समाप्त हो गई और करियप्पा पांच मिनट बाद ही कमरे से बाहर आ गए। 

15 दिसंबर 1950 में सरदार पटेल की एक लंबी बीमारी के बड़ मृत्यु हो गई। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उनकी मृत्यु पर कहा था " सरदार पटेल के शरीर को अग्नि जला तो रही है लेकिन उनकी प्रसिद्धि को दुनिया की कोई अग्नि नहीं जला सकती।
राजमोहन गांधी ने अपनी किताब पटेल ने  लिखा है " 1947 में अगर पटेल 10 या 20 साल उम्र में छोटे हुए होते तो शायद बहुत बेहतर प्रधान मंत्री साबित हुए होते।  गौरव मतलब है कि देश आज़ाद होने के बाद प्रधान मंत्री के लिए नेहरू के अलावा पटेल का भी नाम लिया गया था लेकिन गांधी जी के कहने पर पटेल पीछे हट गए थे।
सरदार पटेल को 1991 में भारत रत्न मरणोपरांत दिया गया।

Tuesday 6 October 2020

पासवान की 2005 की पुनरावृत्ति

बिहार का चुनाव का शंखनाद हो चुका है और सभी दल के सुप्रीमो खुद को मुख्य मंत्री के रूप में पेश करेंगे।
बिहार विधान सभा चुनाव में लोजपा एनडीए से बाहर आ हो गई है। चिराग पासवान नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे।  चिराग एक तरफ जदयू के खिलाफ मजबूती से लड़ना चाहते हैं तो दूसरी तरफ भाजपा के उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे।

भाजपा ने भी संभवतः बिहार विधान सभा चुनाव के लिए  सर्वेक्षण कराया  होगा। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकता कि बिहार में पंद्रह साल से सत्ता के शीर्ष पर बैठे मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ Anti Incumbancy factor काफी अधिक है। दरअसल भाजपा को छोड़ कर राजद के
साथ जाने और फिर राजद को छोड़कर भाजपा के साथ आने के नीतीश कुमार के फैसले के बाद उनकी विश्वसनीयता पर लोग संदेह करने लगे है।

राम विलास पासवान जिन्हें सियासी गलियारे में  मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है ने भी  अपने पुत्र चिराग पासवान के सभी राजनैतिक फैसलों को समर्थन कर उन्हें बिना विचलित हुए आगे बढ़ने का संदेश दे दिया है। बिहार की मौजूदा राजनीति की सबसे अनुभवी नेता ने अगर चिराग पासवान  को अपना समर्थन दिया है तो यह बिहार विधान सभा चुनाव के लिए बहुत अहम है।  चिराग पासवान की 143 सीटों पर चुनाव लडने के फैसले ने जदयू से निर्णायक लड़ाई छेड़ दी है। चिराग पासवान की आत्मविश्वास का कोई  कारण नहीं दिखता क्योंकि अगर पहले के चुनाव के वोट प्रतिशत को देखते हैं तो लोजपा का वोट प्रतिशत लगातार घट रहा है। राम विलास पासवान  की गैरमौजूदगी का भी फर्क पड़ सकता है। 

यह हमें पंद्रह साल पहले की घटना याद दिलाती है। फरवरी 2005 के बिहार विधान सभा चुनाव में राम विलास पासवान ने यूपीए में रहते हुए भी लालू यादव के खिलाफ चुनाव लडा था। उन्होंने कांग्रेस से समझौता किया  लेकिन राजद के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे जिसकी वजह से लालू के केवल 75 विधायक ही जीते और राजद को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। इसी प्रकार क्या चिराग नीतीश का खेल बिगाड़ना चाहते हैं । क्या नीतीश सरकार पर नाकामियों का इल्ज़ाम इसी नीति का हिस्सा है ? 2005 में लालू - राबड़ी का शासन 15 वर्षों का था तो 2020 में नीतीश के 15 वर्ष हो  गए।  शायद चिराग इसमें कोई समीकरण ढूंढ रहे हैं। 

Thursday 1 October 2020

गांधी को जिसने नहीं पढ़ा उसने गांधी को नहीं समझा

मै गांधी जी का कभी विरोधी नहीं रहा लेकिन पक्षधर भी नहीं रहा। गांधी पर  बहस करते वक़्त उनके विरोध में भी यदा कदा बोला करता था। किन्तु लॉक डाउन के दौरान घर में रहने के कारण गांधी जी पर कुछ पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिला। तभी मै गांधी जी को समझ पाया। अब मेरा मानना है जिसने गांधी को नहीं पढ़ा वह गांधी को नहीं समझा। एक गाल पर चांटा पड़ने पर दूसरे गाल को आगे बढ़ाने का फिलॉस्फी समझना आसान नहीं है। ज़रूरत है कि आने वाली पीढ़ी को गांधी के विचारों से अवगत कराएं।
2 अक्टूबर को भारत में राष्ट्र पिता महात्मा गांधी का जन्म दिवस " गांधी जयंती " के रूप में मनाया जाता है। महात्मा गांधी द्वारा अहिंसा आंदोलन चलाए जाने के कारण विश्व स्तर पर उनके प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए इस दिन को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

इतिहास में साधारण से असाधारण हो जाने वाले व्यक्तित्वों की सूची बड़ी है, लेकिन साधारण से सर्वोत्तम साधारण होने का उदाहरण केवल गांधी जी है। वे राजनीति कार्यकर्ता थे। वे आंदोलनकारी थे। 

गांधी एक बड़े मनोवैज्ञानिक भी थे। दूसरे इंसान को समझने की शक्ति असाधारण थी। उन्होंने अपने प्रेम से भारत के हृदय पर अधिकार कर लिया। गृहस्थ जीवन बिताते हुए उन्होंने न सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया, बल्कि पत्नी , बच्चों के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए उन्होंने असंख्य लोगों को स्वयं से जोड़कर परिवार को बड़ा किया। गांधी का मौन व्रत तथा आधार साधु संतों के समान था। उनके वस्त्र श्रमिकों की तरह थे। गांधी की हिन्दू धर्म में गहरी आस्था थी लेकिन हर धर्म के मर्म को समझा था।  गांधी जी  सेवा को ही सच्ची पूजा मानते थे। उन्होंने कभी भी कोई तप- यज्ञ या अनुष्ठान नहीं किया। सभी धर्मों के ज्ञान का निचोड़ उन्होंने यह निकाला कि धर्म में परिभाषाएं अलग अलग होती है लेकिन उनका मर्म मानव की क्षमता के अनुसार निस्वार्थ सेवा पर ही केन्द्रित होता है। वे स्त्री को शक्ति स्वरूपा मानते थे, इसलिए स्वतंत्रता संघर्ष से उन्होंने स्त्रियों को जोड़ा। उनका उपवास शारीरिक बलिदान भी उनकी आत्मा की आहुति था। अणु बम से भी ज्यादा शक्तिशाली था उनका उपवास।
गांधी विश्व इतिहास का आश्चर्य है। लगभग एक सदी पहले से ही सारा विश्व सत्य और सत्याग्रह पर आधारित गांधी की अवधारणा को ध्यान पूर्वक देखता रहा। मार्टिन लूथर  किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे शख्सियत ने अन्याय  और शोषण तथा अपमानजनक स्थितियों से छुटकारा पाने गांधी जी के विचारों और उनकी सार्थकता को न केवल समझा बल्कि उनसे प्रेरणा लेकर अनुसरण किया और उसमे सफलता पाई। गांधी को पूरे विश्व ने सराहा है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी गांधी के प्रशंसक हैं।
गांधी सबकी समृद्धि चाहते थे। उन्होंने भौतिक साधन को स्टेटस सिंबल न बना कर आत्म संयम को स्टेटस सिंबल बनाया। खादी, चरखा, और त्याग गांधी समर्थक की पहचान बनी।
उनकी कुछ बातें मेरे जहन में बैठ गई हैं। उनका कहना था कि मनुष्य की कमजोरी का अनुकरण नहीं बल्कि उसके गुणों का अनुकरण करना चाहिए। वे कहा करते थे कि मै अपने को तब अधिक बलवान महसूस करता हूं जब अपनी गलती स्वीकार कर लेता हूं जिस प्रकार झाड़ू गंदगी को हटाकर जमीन को पहले से भी अधिक साफ कर देती है उसी प्रकार गलती को स्वीकार करने से हृदय हल्का और साफ हो जाता है। 
उन्होंने आत्मा से लेकर शौचालय तक साफ रखने का संदेश दिया। वे कहता थे ईश्वर भी सफाई पसंद हैं।इसलिए न सिर्फ मन के विकार बल्कि आस पास की गंदगी को भी दूर करें।इसी से प्रेरणा लेकर प्रधान मंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2014 में लाल किले से गांधी जी के जन्म के 150 वर्ष पूरे होने पर देश की ओर से उन्हें स्वच्छ भारत की सौगात देने का संकल्प लिया था। आज इतने वर्षों बाद लोगों ने स्वच्छता के महत्व को समझा। बड़े उत्साह से शौचालयों के निर्माण का कार्य सारे देश में हुआ। आशा है बहुत जल्द देश खुले शौच से मुक्त हो जाएगा।
आज भी देश में बहुत से लोग राष्ट्र के कार्य में इस आशा के साथ जुड़े हैं कि यह देश गांधी के मूल्यों से स्वयं को कभी अलग नहीं कर पाएगा। प्रधान मंत्री मोदी की स्वच्छता की सोच उसी का उदाहरण है।
भारत में गांधी जी के द्वारा अपनाए गए शाश्वत मूल्यों की पुनर्स्थापना ही विकल्प है।