Tuesday 30 June 2020

भारत चीन विवाद में दलाई लामा खामोश क्यों ?

प्रशांत सिन्हा तिब्बत के निर्वासित प्रधान मंत्री श्री लोबसांग सांगे के साथ
भारत-चीन सीमा पर तनाव है। भारत और चीन के सैनिक आमने सामने आने वाले हैं। दोनो देशों की सरकारें अपने अपने सैनिकों को युद्ध की तैयारियाँ करने के लिए कहा है। चीन की सेना भारत की सीमा के अंदर आने के बाद बातचीत के बावजूद वापस नहीं जा रही है। चीन को भारत द्वारा बनाए गए अपनी ही सीमा के अंदर डोकलाम में बने सड़क से ऐतराज़ है। डोकलाम के पास चीन, भूटान, और सिक्किम की सीमाएँ मिलती हैं। इसलिए चीन इस स्थान को अपने लिए महत्वपूर्ण मानता है। लेकिन चीन भूल गया है कि आज का भारत 1962 वाला भारत नहीं है। भारत अपनी ज़मीन का एक इंच हिस्सा भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। 
भारत का साथ दूसरे देश भी दे रहे हैं किंतु हैरानी की बात है कि चीन की रवैए पर तिब्बत के आध्यात्मिक नेता श्री दलाई लामा ने कोई भी वक्तव्य नहीं दिया। देश के हर हिस्से में चीन का विरोध हो रहा है लेकिन दलाई लामा एवं भारत में बड़ी संख्या में रहने वाले तिब्बती समुदाय के लोग न चीन का विरोध कर रहे हैं और न कुछ बोल रहे हैं।
मुझे पूरी उम्मीद थी कि तिब्बती समुदाय के लोग भारतियों के साथ मिलकर विरोध करेंगे। लाखों तिब्बती पिछले साठ से भी अधिक वर्षों से भारत में रहते आ रहे हैं। क़रीब चार साल पहले मेरी मुलाक़ात तिब्बत के निर्वासित सरकार के प्रधान मंत्री लोबसांग साँगे से दिल्ली के गांधी शान्ति प्रतिष्ठान में एक कार्यक्रम के दौरान हुई। वहाँ उन्होंने कहा था कि तिब्बत की मुक्ति न केवल तिब्बत के हित में है बल्कि भारत और दूनिया के हित में भी है। तिब्बत के प्रति दूनिया भर के नेताओं से समर्थन भी मिल रहा है। साँगे मानते हैं कि तिब्बत से हज़ारों मील दूर होने के बावजूद तिब्बती संस्कृति, परम्पराएँ और और विरासत आज भी क़ायम है तो इसके पीछे भारत का बहुत बड़ा योगदान है।दलाई लामा समेत तिब्बती समुदाय के लाखों लोगों को भारत ने जिस तरह अपने यहाँ शरण, सुरक्षा और सम्मान दिया है वह अतुलनीय है। भारत में रह रहे अधिकतर तिब्बती तिब्बत की आज़ादी के संघर्ष से जुड़ रहे हैं। उन्होंने हम भारतीयों से “ मुक्त तिब्बत “ के आंदोलन को और तेज़ करने का आग्रह किया था। आज जब भारत चीन के बीच सीमा विवाद पर टकराव हो रहा है तो दलाई लामा चुप क्यों हैं ? इस मसले के बीच तिब्बत का मसला भी आता है। दलाई लामा को अंतराष्ट्रीय मंच पर भारत के पक्ष में और चीन की विस्तारवादी नीतियों को दूनिया के सामने रखना चाहिए था। शान्ति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा को सारी दूनिया सम्मान की नज़र से देखती है पर उनके नहीं बोलने से निराशा हुई।
ज्ञात रहे 1959 से दलाई लामा एवं उनके साथ भारी संख्या में तिब्बती भारत में रह रहे हैं। चीन को भारत में दलाई लामा का शरण मिलना अच्छा नहीं लगा था। भारत चीन मैत्री में दरार आने का एक कारण यह भी रहा है। दलाई लामा ने चीन द्वारा अपनी मृत्यु कराने की शंका के कारण बड़ी संख्या में अपने अनुयायियों के साथ भारत में शरण ले लिया था। तिब्बती समुदाय के लोग भारत के दिल्ली, देहरादून, धर्मशाला, और सिक्किम में लाखों की संख्या में फैले हुए हैं। जब चीन १ अक्टूबर को अपना राष्ट्रीय दिवस मनाता है तब ये तिब्बती लोग चीन के दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हैं । तो आख़िर क्या कारण है कि आज इन चीनी हरकतों का विरोध इन्होंने नहीं किया ? दलाई लामा द्वारा दिए गए गए बयान कि “ चीन से आज़ादी नहीं स्वायत्ता चाहते हैं “ के कारण विरोध नहीं किया जा रहा है या कहीं इसलिए ख़ामोशी तो नहीं कि दलाई लामा की उम्र बढ़ रही है ऐसे में बहुत से तिब्बतियों को डर है कि चीन की सरकार उनकी जगह अपनी पसंदीदा व्यक्ति को नियुक्त कर देगी। 
ख़ुद को महाशक्ति की तरह पेश करता चीन छोटी छोटी बातों से डरता है। चीन में रहने वाले 60 लाख से ज़्यादा तिब्बतियों में ज़्यादातर अब भी दलाई लामा का बहुत सम्मान करते हैं। दलाई लामा को दूनिया के दूसरे देशों से भी समर्थन मिलता है। फिर ऐसी क्या राजनीतिक मजबूरियाँ हो सकती हैं ? अगर उनका बयान आता और भारत  के साथ दूसरे देशों में बसे तिब्बतियों द्वारा भारत के पक्ष में चीन का विरोध होता तो सम्भवतः चीन पर ज़्यादा दवाब पड़ता।

Monday 29 June 2020

Coal block auction: Vision of Atmnirbhar ?

In line with the vision of  "Atmnirbhar Bharat " the launch of the auction process for commercial mining of 41 coal mines is certainly historic and it will not only make India self-reliant in the energy  sector but will also create lakhs of jobs and massive revenue for states by creating huge capital investments.

The virtual auction process of 41 coal blocks for commercial coal mining expecting to attract Rs.33,000 crore investments over 5-7 years and technology from Indian and global miners and are likely to ceate about 2.8 lakhs jobs with an annual revenue of Rs.20,000 crores for the governments.

India proposes to reduce its dependence on coal import as the coal import bill is around 1.7 lakh crore. Against a domestic production of 730 million tonnes, India imported 240 million tonnes of coal, mainly for the Steel plants. India has the fourth largest reserves in the world. India is the second largest producer and importer of coal in the world.

We really need to increase our domestic production even more as even though we are moving towards renewable sources of energy - solar, wind, Hydel, Neuclear etc. as coal is used for gas, fertilizer making etc.
The blocks are spread over five states have total geological mines of 26,979 million tonnes per annum
Here we are emphasizing on the use of better technology so that the empact on the environment is minimum as the Climate change is one of the greatest challenges before the world. Also mines lead to the displacement of people. So, we have to ensure that if because of these mining activities people are supposed to be relocated then they must be resettled properly and well compensated. This will certainly help India accelerate it's journey of becoming an inclusive self reliant, technologically advanced, prosperous and a very strong country or a True  " Atmnirbhar Bharat " 


Monday 15 June 2020

मानसिक अवसाद ( ) से मुक्त होने के उपाय - स्वयं ही समाधान

बॉलीवुड कलाकार सुशांत सिंह राजपूत ने कथित रूप से अपने जीवन का अंत कर लिया। इतनी छोटी उम्र में बड़ी कामयाबी पाने वाला कलाकार किसी समस्या के दवाब में आकर इस प्रकार का कदम लेगा ये किसी को समझ में नहीं आ रहा है। उन्हें चाहने वाले सदमे में में है। निराश होकर जीवन का अंत करने की घटना आजकल अक्सर सुनने को मिलता है। समस्याओं से आज़ादी पाने का यह कोई मुकम्मल समाधान नहीं है। समस्याओं से समाधान यदि हम चाहते हैं तो उससे डरने या किसी दवाब में आने की बजाय उसे सकारात्मक ढंग से सोच विचार करें। उन समस्याओं से लडने का स्वयं में साहस पैदा करें। विचार हमेशा अच्छे होना चाहिए क्योंकि अक्सर देखने में आता है कि बुरे विचारों से घिर कर मनुष्य असहाय होकर अवसाद की स्थिति में पहुंचकर आत्महत्या कर लेता है।जीवन में परिवर्तन का क्रम चलता रहता है। अगर एक जैसी परिस्थितियां बार बार हो रही है तो कभी यह नहीं समझना चाहिए कि अब जीवन में सब कुछ समाप्त हो गया है और मेरे लिए कुछ नहीं बचा है। संघर्ष करने वाले व्यक्ति को एक बार पुनः उसी जोश व उत्साह के साथ नए सिरे से प्रयास में जुट जाना चाहिए।
समस्याओं का समाधान हमारे अपनों में ही मिल जाते हैं इसलिए ज़रूरी है अपने दोस्तों, परिवारवालों के साथ मिलकर चर्चा करें। अकेला बैठने से बचें, गाने सुने, किताबें पढ़ें। अपने शौक को ज़िंदा रखें। चिंता नहीं चिंतन करें क्योंकि चिंता चिता से भी बुरी होती है। समाज में सभी को एक दूसरे के प्रति संवदनशील होकर इस समस्या से लड़ना होगा। सभी को एक दूसरे का ख्याल रखने की जरूरत है। कभी भी किसी समस्या से परेशान होकर हताश होने लगे या टूटने लगे तो उसी समय से अपने आप पर ध्यान देने या अपनी देखभाल स्वयं करने की शुरुआत कर दें।किसी रचनात्मक कार्य से जुड़ जाएं जो आपके लिए मलहम का काम करें। स्वामी विवकानन्द के अनुसार जीवन एक युद्ध के समान है जिसमें योद्धा की तरह व्यक्ति को हर पल विषम परिस्थितियों में मुकाबला करने के लिए तैयार रहना पड़ता है।उसे विफलता के अंधेरे को भगाकर दृढ़ता का दीपक जलाना पड़ता है।
आज विश्व में विपत्ति आयी हुई है। भारत इससे अछूता नहीं है। एक तरफ करोना तो दूसरी तरफ तूफान, भूकंप के झटके और आर्थिक मंदी। व्यवसाय बंद हो रहे हैं, नौकरियां जा रही हैं। ये समस्याएं मानसिक अवसाद की और ले जा रही है। इससे संभालना ज़रूरी है। आत्महत्या कर अपने जीवन को बर्बाद करना उचित नहीं। किसानों द्वारा आत्महत्या या बाराबंकी की उत्तर प्रदेश में एक ही परिवार के पांच लोगों की आत्महत्या सोचने पर विवश करती है।ये मामले और और अधिक बढ़ने कि आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
रोम के महान दार्शनिक सेनेका कहते हैं कि कठिन रास्ते भी हमे ऊंचाइयों तक ले जाते हैं। अनिश्चितताएं हमारी शत्रु नहीं है। कुछ स्थायी नहीं होता बताता है कि कोई भी जीवन की असीमित संभावनाओं को जान नहीं सकते। कभी आप अनिश्चितताओं की तरफ बढ़ते हैं तो कभी वह आपको ढूंढ लेती है। यही जीवन है। हर रात के बाद सवेरा आता है। और यह भी सत्य है कि रात जितनी काली और भयावह होगी सुबह उतनी ही प्रकाशमान और सुहावने होंगी।



 

Tuesday 9 June 2020

गर्भवती हथिनी की हत्या: मानवता को शर्मसार

केरल के साइलेंट वैली में घटी घटना मन को विचलित कर दिया। एक हथिनी जो भूखी और गर्भिणी थी इंसानों की बस्ती में पहुँच गयी शायद यह सोच कर कि उसकी क्षुधा शांत हो जाएगी। लेकिन शायद उसे यह नहीं मालूम था कि इंसान हैवान होते जा रहे हैं। किसी ने अनानास में पटाखे भरकर खिला दिया। हथिनीऔर उसके गर्व में पल रहे बच्चों ने प्राण त्याग दिया। यह मात्र हत्या नहीं हत्याएँ थीं। हत्या पशु, माँ, शिशु, विश्वास, और इंसानियत की हुई।

इसके ठीक  दो दिनों के बाद बिलासपुर ( हिमाचल प्रदेश ) में एक गाय के साथ ऐसी ही घटना घटी। किसी ने गर्भिणी गाय को विस्फोटक से घायल कर दिया। लेकिन वक़्त पर उपचार होने से गाय और बछड़े दोनो को बचा लिया गया।
यह तो हैवानियत की दृढ़ हो गयी। मानव की मानवता कहाँ खोती जा रही है। पशु पक्षी का उत्पीड़न जिस प्रकार से किया जा रहा है उसे देखकर हृदय दुखित होता है। पशुओं पर होने वाले अत्याचार सारे मानव जाति पर कलंक है।
एक तरफ़ मानव अमानवीय कार्य में लगे हैं तो दूसरी तरफ़ जानवर मनुष्य को जीवन का एक बड़ा संदेश दे जाते हैं । अभी हाल में एक वीडीयो आया था जिसमें मगरमच्छ एक मादा हिरण  को पकड़ लेता है। कुछ देर दबोचने के बाद मगरमच्छ को एहसास होता है कि मादा हिरण गर्भवती है तो उसने अपने जबड़े खोलकर उस मादा हिरण को आज़ाद कर देता है।
इसी प्रकार दक्षिण अफ़्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क की घटना है। एक शेरनी अपने बच्चे को लेकर जा रही थी और एक वाइल्ड लाइफ़ फ़ोटोग्राफ़र तस्वीर के लिए उसका पीछा कर रहा था। कड़ी धूप में चलते चलते शेरनी थक रही थी।
अचानक एक हाथी मामला भाँप कर उसने शेरनी की मदद करनी चाही। हाथी ने जैसे ही अपनी सूँड़ नीचे झुका कर पालना जैसा बनाया शेरनी का बच्चा उस पर जा बैठा।तीनों आगे की ओर निकल लिए।

मानव पूरे प्राणी जगत में सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है। प्रकृति ने मानव को अन्य जीवों के अपेक्षा एक विलक्षण वस्तु ‘ मस्तिष्क ‘ प्रदान किया है जिसका उसने दुरुपयोग किया। उसने अपने जैविक और भौतिक वाद के चक्कर में पड़कर और स्वार्थ के कारण सम्पूर्ण प्रकृति, पर्यावरण एवं जीव जंतु को क्षत-विक्षत कर दिया। पशुओं के प्रति होती आयी मानवीय क्रूरता आज कोई नई बात नहीं है। नि:संदेह इस घटना ने पशुओं के प्रति अमानवीय व्यवहार पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। महावीर ने जीवों पर अत्याचार होते देखा तो उनकी रह काँप उठी और उन्होंने समझाया कि जीव हत्या मत करो क्योंकि उन्हें भी वैसी ही पीड़ा होती है जैसी तुम्हें।
हमारी संस्कृति का एक ‘ मूल मंत्र ‘ अहिंसा परमो धर्म ‘ भी मानव की बलि चढ़ गया। यह मंत्र केवल हमारे लिए नहीं था, बल्कि सम्पूर्ण विश्व और चल-अचल जगत सभी के जीवन को ख़ुशहाली का धोत्तक है। प्राकृतिक जीवन, वन एवं जीव जंतु मानव जीवन को एक निश्चित दिशा प्रदान करते हैं। मानव का असंतुष्ट लोभ प्राकृतिक  संकलनों -संसाधनों जीव जंतुओं को तीव्रता से नष्ट करता जा रहा है। इंसानों ने सम्पूर्ण धरती पर जंगलों को ख़त्म कर दिया है।हाथियों को बड़े पौधों के बीज को एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रसारित करने में सहायक माना जाता है। यानि इनकी उपस्थिति से पर्यावरण में बड़े वृक्षों की संख्या बढ़ती है।  जिस जंगल में बाघ,चीता, भेड़िया जैसे होंगे वहाँ पर शाकाहारी पशुओं का संतुलन बना रहेगा और हरे भरे पेड़-पौधे की सुरक्षा भी रहेगी। वनस्पति अधिक मात्रा में उगेगी और इस तरह सामान्य पर्यावरण बना रहेगा। इस प्रकार प्राकृतिक संतुलन भी बना रहेगा। हमें अपनी मानवता को भी बचाना है क्योंकि जब मानवता ख़त्म हो जाती है तो इंसान भी ख़त्म हो जाता है। हमारा आपका अस्तित्व ही नष्ट न हो जाए, इसलिए मानवीय बने रहने में भलाई है।किसी का जीवन छीन लेना ज़िंदगी नहीं है बल्कि किसी को जीवन देना ज़िंदगी है।
इस चुनौती का सामना करने के लिए हमें तुरंत प्रभावी क़दम उठाने होंगे अन्यथा आगे आने वाले समय में जानवर के साथ प्राकृतिक संतुलन आदि सभी लुफ़्त हो जाएँगे और चारों ओर त्राहि त्राहि मच जाएगी।

Friday 5 June 2020

लोगों में पर्यावरण चेतना ज़रूरी ( विश्व पर्यावरण दिवस २०२०)

वर्ष 2020 का विश्व पर्यावरण दिवस पिछले सभी वर्षों से भिन्न है क्योंकि पूरी दुनिया करोना वायरस की सामना कर रही है जिसकी वजह से विश्व के लगभग सभी देशों में लॉकडाउन है। सड़कों पर गाड़ियाँ नहीं चल रही हैं, रेल और हवाई जहाज़ों का आवागमन ठप्प है, फ़ैक्टरीयाँ बंद हैं ।इस महामारी से जान और माल का तो काफ़ी नुक़सान हुआ लेकिन पर्यावरण पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा। वायु प्रदूषण में काफ़ी कमी आयी है। शहर जो गैस चेम्बर बन गए थे वहाँ के हवा में सुधार हुआ है। हवा में कार्बन डायआक्सायड की काफ़ी कमी आयी है। वायु प्रदूषण की तरह जल प्रदूषण में भी सुधार हुआ है। नदियाँ स्वच्छ एवं निर्मल हो गयी हैं। गंगा के जल में 500 प्रतिशत टी डी एस कम हुई है और ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ी है जिससे गंगा का पानी वर्षों बाद पीने योग्य हो गया है।आसमान नीला और रात्रि में अनगिनत तारे दिखने लगे हैं। ओज़ोन परत जिसके लिए पूरा विश्व चिंतित था उसमें भी सुधार आया है।इस बदलाव से पूरा विश्व अचंभित है। आज देश “ विश्व पर्यावरण दिवस “ मना रहा है । इस अवसर पर फिर से गहन चिंतन की आवश्यकता है किस हद तक इंसानों ने प्राकृतिक संतुलन को हानि पहुँचाया है। 
कोई भी देश अपने स्तर पर प्रकृति की रक्षा का कार्य सम्पन्न नहीं कर सकता है।कभी कभी लोग अपने छोटे से काम के लिए पर्यावरण से छेड़ छाड़ कर बैठते हैं जो कालांतर में उसके व्यक्तिगत जीवन के लिए समस्याएँ पैदा करती हैं। अतः लोगों को अनेक असंतुलनों से पैदा ऊँच नीच का ज्ञान देना आवश्यक है। प्राकृतिक,सामाजिक,सांस्कृतिक और आर्थिक आदि का संरक्षण तभी सम्भव होगा जब पर्यावरण सम्बंधी जन चेतना होगी। 
प्रकृति के दोहन से मानव लाभान्वित हो सकता है किंतु उसका विनाश अपने विनाश को निमंत्रण देने जैसा होगा। प्राचीन काल से इंसान की सेवा करती आयी इस प्रकृति में संतुलन बनाए रखने से ही इसका लाभ हम सभी को आगे भी मिलता रहेगा। शुद्ध पर्यावरण ने सदियों से सारी सृष्टि को बचा कर रखा है। आज भी हमारा जीवन इसी पर्यावरण की ही देन है। यदि भविष्य में हम इसे ऐसा ही बनाए रखेंगे तभी हमारी अस्तित्व की आशा की जा सकती है। इस प्रकार पर्यावरण का प्रभाव भूत, वर्तमान, और भविष्य तीनों कालों में समान रूप से जुड़ा है। प्राकृतिक संतुलन के इस अभियान राष्ट्रीय अभियान के रूप में प्रत्येक व्यक्ति और सामाजिक समूहों द्वारा अपनाने की ज़रूरत है। इससे वास्तविक जीवन से पर्यावरण का सदैव सह सम्बंध स्थापित करते हुए इस समस्या के समाधान में हम महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकें।

हमें अपने आस पास जो कुछ भी दिखायी देता है अथवा जिन तत्वों का नित्य जीवन में हम अनुभव करते हैं जैसे भूमि,जल, वायु, जीव-जंतु और पेड़ पौधे। ये सभी सम्मिलित रूप से पर्यावरण की रचना करते हैं। भूमि, जल,वायु, और पेड़ पौधे का भी प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है इसलिए ये भी पर्यावरण के अंग हैं। व्यक्ति जिस परिवेश में जन्म लेता है फलता फूलता है और जिस वातावरण में उसका पालन पोषण होता है उस वातावरण की जानकारी मनुष्य के विकास के लिए अति आवश्यक है। व्यक्ति के चारों ओर आस पास जो कुछ भी है पर्यावरण के अंतर्गत है। इस पर्यावरण सारी सृष्टि को सदियों से बचा कर रखा है। यदि हमें स्वयं को या समस्त सृष्टि को बचाए रखना है तो पर्यावरण को एकदम से नष्ट नहीं करना चाहिए। वातावरण का भूत, वर्तमान और भविष्य से गहरा सम्बंध है। यदि इस सम्बंध में गम्भीरता से विचार नहीं किया जाए तो संसार का वर्तमान और भविष्य एकदम नष्ट हो जाएगा जिसके लिए हमारी आने वाली पीढ़ी कभी माफ़ नहीं करेगी।

 संसार के सभी समुदाय प्रकृति, पर्यावरण और प्रदूषण के विषय में पिछले कुछ दशकों से गम्भीरता से विचार कर रहे हैं और जन साधारण के लिए तरह तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं। इस विषय में जन साधारण की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण और सार्थक होगी।

Thursday 4 June 2020

लोक शक्ति से ही संभव होगी सम्पूर्ण क्रांति

मेरे पिताजी अक्सर जयप्रकाश आंदोलन की चर्चा अपने मित्रों से करते थे और मैं उनके पास बैठ कर उनकी बातें सुना करता था। मेरा विद्यालय जयप्रकाश बाबू के घर के ठीक सामने था। मैं हमेशा उन्हें धूप में किताबें पढ़ते हुए देखा करता था। शिक्षकगण भी उनके विषय में चर्चा किया करते थे। 
जयप्रकाश बाबू के घर पर देश विदेश के गणमान्य लोगों का आना जाना लगा रहता था। इससे अनजाने में ही जयप्रकाश बाबू में लगाव हो गया। उनके विषय में कहीं भी चर्चा होती थी मैं ध्यान से सुना करता था। उनके व्यक्तित्व और उनके द्वारा दिए गए नारा “ सम्पूर्ण क्रांति “ से मैं बहुत प्रभावित हुआ। मैं राजनीति में नहीं हूँ लेकिन अछूता भी नहीं हूँ क्योंकि पटना या बिहार की राजनीति का तापमान हमेशा ऊँचा रहता है। बिहार में राजनीतिक जागरूकता देश के दूसरे राज्यों से ज़्यादा है।ये सभी को मालूम है जयप्रकाश बाबू चिंतक भी थे और सामाजिक आंदोलन के ऐसे पुरोधा भी थे कि इन्दिरा गांधी की सत्ता हिली ही नहीं वे ख़ुद भी हार गयीं। यह कोई मामूली घटना नहीं थी। जयप्रकाश बाबू को विश्व के कोने कोने के लोग जानते थे।अपनी अपनी तरह से विचारकों ने उनका मूल्याँकन भी किया था। भारत में स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर सम्पूर्ण आंदोलन तक का जेपी का योगदान जगज़ाहिर है।

राजनीति एवं सत्ता दोनो अलग अलग है ये मैंने जयप्रकाश बाबू को थोड़ा जानने के बाद जाना। अधिकांश लोग राजनीति और सत्ता को एक मानते हैं। लोग राजनीति में आते हैं और सत्ता दौड़ में शामिल हो जाते हैं। जयप्रकाश नारायण ने इस नियम को तोड़ा। वे अपनी ज़िंदगी के आख़िरी क्षण तक राजनीति में रहें लेकिन सत्ता को ठुकराया। वे चाहते तो सत्ता के शिखर तक आसानी से पहुँच जाते। भारत के राजनीतिक आकाश पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण ध्रुवतारे की तरह बने रहेंगे। 
लोगों ने पूरे मन से उन्हें “लोकनायक” की उपाधि दी। वह ऐतिहासिक क्षण थी - 5 जून 1975 । जगह - पटना का गांधी मैदान । यह मैदान अनेक घटनाओं का जीता जागता गवाह है। पूरे बिहार से लोग विधान सभा भंग करने की माँग को लेकर पटना में जुटे थे। जेपी उस जुलूस की अगुवाई कर रहे थे। दस लाख से भी ज़्यादा लोगों की जुलूस थी। उस भीड़ से गांधी मैदान छोटा पड़ गया था। गांधी मैदान की सभा में उनके सिर पर लोगों ने “लोक नायक “ का ताज रख दिया जो हमेशा लगा रहा। यहाँ पर जयप्रकाश नारायण ने भी लोगों से अपील की। उन्होंने कहा था “ दोस्तों , ये संघर्ष सीमित उद्देश्यों के लिए नहीं हो रहा है। इसके उद्देश्य दूरगामी है। भारतीय लोकतंत्र को वास्तविक और सूधृढ़ बनाना और जनता का सच्चा राज क़ायम करना है। एक नैतिक, सांस्कृतिक, तथा शैक्षणिक क्रांति करना, नया बिहार बनाना और नया भारत बनाना है। यह सम्पूर्ण क्रांति है - टोटल रेवलूशन ( total revolution ) उसके बाद यह नारा निकला 
 “सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है ।

सम्पूर्ण क्रांति का अर्थ प्रत्येक दिशा में सतत विकाश ही समग्र क्रांति है।आचार परिवर्तन, विचार परिवर्तन, व्यवस्था परिवर्तन, एवं शिक्षा में परिवर्तन कर के उन्हें जीवनपयोगि बनाने की आवश्यकता है। ग्राम स्तर से राष्ट्र स्तर तक जनसमिति एवं छात्र समिति बना कर छात्र जन-समस्याओं का निराकरण करते हुए तथा स्वच्छ छवि वाले जनप्रतिनिधियों को भेजना सुनिश्चित करना होगा।जन विरुद्ध कार्य करने पर प्रतिनिधि वापसी का अधिकार का उपयोग करते हुए उन्हें पदच्युत करना ताकि जनजीवन उन्नत एवं सरस बनाया जा सके।जयप्रकाश जी ने सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन में अंतर्जातिय विवाह और जनेउ तोड़ने का कार्यक्रम अपनाया था। इसके साथ ही उन्होंने जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में काम करने के लिए लोगों को युवकों एवं युवतियों को संगठित करना शुरू कर दिया था।साथ ही बिना तिलक दहेज के सादगी के साथ शादी विवाह का कार्यक्रम भी शुरू कर दिया था।
जयप्रकाश नारायण की दृष्टि में सम्पूर्ण क्रांति का अर्थ : सम्पूर्ण क्रांति का मतलब समाज में परिवर्तन हो - सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक,और नैतिक परिवर्तन।सामाजिक परिवर्तन ऐसा हो कि सामाजिक कुरीतियाँ दूर हो। इसमें से नया समाज निकले जिसमें सभी सुखी हों।अमीर ग़रीब का जो आकाश पाताल का भेद है वह नहीं रहे। शोषण न हो इंसाफ़ हो।आर्थिक परिवर्तन ऐसा हो कि जो सबसे नीचे के लोग हैं जो सबसे ग़रीब हैं - चाहे वे किसी जाति या धर्म के हों ऊपर उठे।सांस्कृतिक परिवर्तन है - समाज में त्याग, बलिदान,प्रेम, अहिंसा, भाई चारा आदि सदगुणों का विकास करना।

जयप्रकाश शुरू से ही युवा हृदय सम्राट के रूप में विख्यात थे। नौजवानों की उनके ऊपर अटूट आस्था थी। इसी आस्था और प्यार के चलते अपने जीवन के चौथेपन में भी करोड़ों युवक, किशोरों का नेतृतव कर सके।आज के युवकों को लोक नायक जयप्रकाश की सम्पूर्ण क्रांति “ को समझने की आवश्यकता है ।

Wednesday 3 June 2020

हिलती हुई धरती दे रही है चेतावनी

तीन जून की रात को नॉएडा में भूकम्प 3.2 की तीव्रता से आया। उसी दिन सुबह ही बंगलादेश में भी भूकम्प का झटका आया। कुछ दिनों से कई बार दिल्ली- एन सी आर और देश के कई हिस्से में कई बार भूकम्प के झटके महसूस किए गए हैं। जब से लॉक डाउन शुरू हुआ है तब से अब तक ये आँठवा भूकम्प के झटके हैं। 12 अप्रैल, 13 अप्रैल, 3 मई, 10 मई,15 मई , 28 मई, 29 मई को धरती हीली। मुझे नहीं लगता कि इस तरह इतनी बार शायद ही कभी भी दिल्ली में भूकम्प के झटके आए होंगे।हालाँकि भूकम्प की तीव्रता कम रही। भूकम्प का केंद्र सतह से 3.5 km की गहरायी में स्थित रहा इसलिए जान माल का कोई नुक़सान नहीं हुआ। NCS के एक अधिकारी के अनुसार धरातल के नीचे छोटे मोटे adjustment होते रहते हैं जिससे झटके महसूस होते हैं।उन्हें लगता है कि भूकम्प fault line pressure के कारण नहीं आए हैं।हिंदूकश से हिमालय बड़े भूकम्प बड़े भूकम्प fault line के किनारे लगते हैं। भूकम्प के मामले में दिल्ली और आस पास के क्षेत्रों को zone-4 में रखा गया है जहाँ 7.9 तीव्रता तक के भूकम्प आ सकते हैं। हालाँकि हाल ही में आई आई टी कानपुर के अध्ययन में चेतावनी दी गयी थी कि दिल्ली से बिहार के बीच में बड़ा भूकम्प आ सकता है जिसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.5 से 8.5 के बीच होने की सम्भावना है। मध्य हिमालय क्षेत्र में भूकम्प आता है तो दिल्ली- एन सी आर,आगरा,कानपुर, लखनऊ,एवं पटना तक का क्षेत्र प्रवाहित हो सकता है। भूकम्प से निपटने के लिए किसी भी स्तर पर कोई भी काम होता नहीं दिख रहा है।2001 में गुजरात में आए भयावह भूकम्प से किसी ने कोई सबक़ नहीं लिया। दिल्ली की इमारतें 6.6 की तीव्रता को सह सकती है वहीं पुरानी इमारतें 5.5 की तीव्रता को झेल सकतीं हैं। वैसे आपदा विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिकों ने बड़े भूकम्प ( जिसकी तीव्रता 8.5 तक हो सकती है) की जानकारी दी है। नेपाल में आए 2008 और 2015 में आए भूकम्प से दिल्ली थोड़ी सबक़ लेते हुए कुछ सरकारी इमारतों को मज़बूत की गयी थीं। सन 1315-1440 के बीच इस क्षेत्र में बड़ा भूकम्प आया था। तभी से यह हिमालय का क्षेत्र शांत है लेकिन इस पर दवाब बढ़ रहा है इसलिए भूकम्प आने की सम्भावना है।जैसे सभी को ज्ञात है कि भूकम्प को आने से नहीं रोका जा सकता है लेकिन जापान की तर्ज़ पर बचने की प्रयास तो किया जा सकता है।हमें और हमारी सरकार को देरी से जागने की आदत है। National Institute of Disaster Management की तरफ़ से भूकम्प से बचाव के प्रस्ताव कई संस्थाओं को दी गयीं हैं लेकिन इस पर शायद ही कोई अमल हुआ होगा। हमारी ज़्यादातर इमारतें भूकम्प रोधी तकनीक से नहीं बनाए गए हैं।इसलिए अगर भूकम्प आता है तो ईमारतें कमज़ोर या भूकम्प रोधी तकनीक नहीं लगने से गिरतीं हैं।इसलिए पुराने मकानों को मज़बूत एवं नए मकानों को सुरक्षित करने के लिए सख़्त नियमों का होना आवश्यक है। भवन निर्माता को नियमों का पालन ईमानदारी से करने की ज़रूरत है। नगर निगम, नगर प्राधिकरण एवं दूसरी सरकारी एजेन्सीयों को ऐसे मौक़ों पर सुरक्षा से समझौता नहीं करना चाहिए। अगर कोई भी समझौता करता है तो सेवानिवृत के बाद भी सज़ा का प्रावधान रखने की ज़रूरत है।जिस प्रकार करोना वाएरस से लोगों को बचाने के लिए सरकार एवं सम्बंधित विभाग द्वारा प्रयास किए गए उसी प्रकार भूकम्प से बचाने के लिए लोगों को गम्भीरता से प्रयास करना चाहिए।