Monday 30 November 2020

कार्तिक पुर्णिमा, देव दीपावली, गुरुनानक जयंती और प्रकाश पर्व

कार्तिक पूर्णिमा,  देवदीपावली, गुरुनानक जयंती और प्रकाश पर्व पर संदेश। 
आज के दिन का विशेष महत्व।

आज देश में  कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली और गुरुनानक देव की जयंती मनाई जा रही है। गुरुपर्व का सिख धर्म में बहुत महत्व है। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के दिन गुरुनानक जयंती मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा का हिन्दू ओर सिख धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन को गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है तो वहीं इस दिन ही प्रकाश पर्व भी मनाया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गंगा में डुबकी लगाने के बाद दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है एवं  पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली भी मनाई जाती है। मान्यता है कि भगवान शिव ने इस दिन देवलोक पर हाहाकार मचाने वाले त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का संहार किया था और उसके वध के खुशी में देवताओं ने इस दिन दीपावली मनाई थी। 
त्योहारों, उत्सवों के माह कार्तिक की अंतिम तिथि देव दीपावली है। कार्तिक माह के प्रारंभ से ही दीप दान एवं आकाशदीप प्रज्वलित करने की व्यवस्था के पीछे गायत्री मंत्र में आवाहित प्रकाश से धरती को आलोकित करने का भाव रहा है क्योंकि शरद ऋतु से भगवान भास्कर की गति में परिवर्तन होता है। इसके चलते दिन छोटा होने लगता है और रात बड़ी यानी अंधेरे का प्रभाव बढ़ने लगता है। इसलिए इससे लड़ने का उद्दम भी है दीप जलाना।

सिख पंथ के संस्थापक गुरुनानक देव की जयंती पर सभाओं का आयोजन किया जाता है और इन सभाओं में गुरुनानक देव के द्वारा दी गई शिक्षाओं के बारे में बताया जाता है। इस दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है और लंगर का आयोजन किया जाता है। श्री गुरु नानक जी ने सम्पूर्ण विश्व का अन्याय, अत्याचार एवं शोषण के विरूद्ध एक जुट होने का मार्ग दिखाया है। गुरु नानक जी ने " किरत करो, वंड छको " जैसे उपदेश देकर समाज को स्वाभिमान के साथ अपने पैरों पर खड़ा होने में समर्थ किया। गुरुनानक जी ने  स्वयं खेती कर युवाओं को बहुत बड़ा संदेश दिया था सामाजिक सरसता के लिए गुरु जी का जाति धर्म की संकुचित दीवारें तोड़ने के लिए संगत पंगत का आह्वान, काम की प्रतिष्ठा बढ़ाने और बांट कर खाने का सिद्धांत अत्यंत प्रासंगिक है। गुरुनानक जी का जीवन, चिंतन व दर्शन काल की सीमा से परे है। 
प्रकाश पर्व अंधकार से लड़ने का संदेश देता है लेकिन केवल अंधेरे से नहीं बल्कि उस तमस से भी जो हमारे मन मस्तिष्क में घर लेता है। कोई भी समाज हो उसे भौतिक समृद्धि के साथ आत्मिक शान्ति भी चाहिए होती है। इसकी प्राप्ति तब होती है जब मन के कलुष को दूर करने की चेष्टा की जाती है। हमें अपने सामाजिक परिवेश की भी चिंता  करनी है और बिगड़ते हुए पर्यावरण की भी। वास्तव में पर्यावरण को बचाकर ही हम देव दीपावली को ऋतु परिवर्तन के पर्व के रूप में मनाते रह सकते हैं।








 


 
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Friday 20 November 2020

छठ व्रत और मां

भारत के त्योहारों की विशेषता यह है कि यह सामाजिक एवं पारिवारिक एकता  के अनुपम आदर्श है। इसी भाव के साथ प्राचीन काल से पर्व मनाते चले आ रहे हैं।
विशेषकर छठ पर्व परिवार और समाज के एकीकरण का  त्योहार है । हमारे परिवार में भी छठ पर्व धूमधाम से मनाया जाता था। मेरी मां ने पच्चीस से भी ज्यादा वर्षों तक छठ व्रत करती रही थी लेकिन गठिया जैसी बीमारी ने उन्हें आगे के वर्षों में व्रत रखने से वंचित कर दिया था। 
मां का कहना था कि यह पर्व जीवन को खुशहाल व रिश्तों को मजबूत बनाने में अटूट कड़ी  की भूमिका निभाता है। हमारे ददिहाल और ननिहाल दोनों तरफ के परिवार मिलजुल कर यह त्योहार मनाते थे ।
मां छठ के एक हफ्ते पहले से तैयारियां शुरू कर देती थीं। पापा के साथ व्रत से संबंधित सारी खरीदारियों खुद करती थीं।  नहाय खाए के दिन गंगा नदी जा कर पानी और मिट्टी लाती और उस कमरे को उनसे साफ करतीं । छठ के पहले दिन नहाय खाय में चावल दाल और लौकी की सब्जी मिट्टी की चूल्हे पर बनता था। उस खाना को प्रसाद के रुप में ग्रहण करना होता है । छठ पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। मां कमरे में जमीन पर सोया करती थीं। व्रत से संबंधित सारे काम नहाने धोने के बाद ही करना होता है।
परिवार की महिलाएं प्रसाद बनाती थीं एवं पुरुष मंडी से फल सब्जियां लाते थे। छठ का दूसरा दिन खरना का होता है। उस दिन खीर पूरी प्रसाद के रूप में चांद को देखने के बाद मिलता है। खर्णा वाले दिन हमारे मित्र एवं रिश्तेदार दूर दूर से प्रसाद खाने आते थे। कुल मिला कर यूं कहें कि माहौल उत्साह और उल्लास का होता था।जीवन को नई ताजगी मिलती थी जिससे जीने का हौसला दुगुना हो जाता था। 
तीसरे दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य देने के बाद खाना पीना होता था। सभी भाई बहन के साथ हंसी मज़ाक होता था। पापा अपने भाइयों के साथ त्यौहार का आनंद लेते थे। उस रात मात्र दो तीन घंटे सोने के बाद सुबह के अर्घ्य की तैयारी शुरू होती थी। सुबह वाले अर्घ्य के बाद ठेकुआ प्रसाद में मिलता था। इसके साथ चार दिनों तक चलने वाले पवित्र , ऊर्जावान और उल्लास वाला त्योहार समाप्त होता था। 
आज मां हमारे बीच नहीं है लेकिन छठ जितने तन्मयता से करती थी उसे शायद ही कोई भूल पाएगा।
   बीते पलों को याद कर रहा हूं मां,
   कुछ लिखने में दिल लगा रहा हूं
   मगर सच तो यह है
   दिल नहीं लग रहा है तुम्हारे बिना मां !!

Saturday 14 November 2020

Deepawali celebrates the light of Knowledge

Deepavali,  the festival of lights, is reach in symbolism. Celebrated on the darkest of nights, it indicates that for those who light the lamp of knowledge in the darkness of life , there is luminosity, both within and without. For those who don't, the mind abides in darkness because the outer light is temporary.
The festival of Deepawali starts from the dhanteras and is celebrated over five days culminating in the day of Bhaidooj. These are extremely potent days for manifestation and sidhhis.
Rituals associated with Diwali have deep spiritual significance. Before Deepawali people clean and decorate their homes and workplaces. On Deepawali night they light lamps in their homes and offer prayers invoking Lakshmi goddess of wealth. These practices are refualised expressions of rejuvenation of human soul in its journey through time.
The cleaning before Dipavali symbolises cleansing thar the soul must undergo to be able to receive and retain the wisdom and virtues that God gives. It is believed that Goddess Lakshmi does not enter homes that are not clean, and make sure that every corner of their dwelling is clean before Diwali. We should keep our mind pure. The cleaner the mind the more one is attracted to all that is good and noble, and such a mind seeks enlightenment. Happiness is the fruit of good actions, which in turn flow from pure thoughts and feelings. Noble thoughts will come
Deepawali in the true sense celebrates the rooting out darkness from the mind by lighting the lamp of dhyana jnana.