Monday 28 December 2020

अरुण जेटली के जयंती पर विशेष

वकील से एक सफल राजनेता तक का सफर करने वाले अरुण जेटली जी की आज जयंती है।
अरुण जेटली संवाद के कुशल खिलाड़ी थे। एक बार अरुण जेटली से पूछा गया था कि अच्छा अर्थशास्त्री और चतुर राजनीतिज्ञ के बीच क्या चुनना चाहिए ? तब उन्होन
 बताया था कि यह विकल्प अनुचित है क्योंकि किसी भी सरकार को बने रहने और प्रदर्शन के लिए दोनों की आवश्यकता है। 
वह राजनीति के चाणक्य थे। जेटली प्रखर बौद्धिक क्षमता वाला, भारत के संविधान, इतिहास और प्रशासन में गहरी जानकारी वाले नेता थे।
                               राजनीति में आने से पहले वह सर्वोच्च   
न्यायलय में प्रैक्टिस करते थे। उन्होंने1975 में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जय प्रकाश आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। उस समय वह युवा मोर्चा के संयोजक थे। उस दौरान जेल भी गए। वाजपेई सरकार के दौरान कैबिनेट मंत्री थे। भारतीय संसद के राज्य सभा में विपक्ष के नेता भी रहे। 
उनके मित्र हर दल में थे। प्रतिदिन पार्क में सैर करने करने के बाद लोगों के साथ बैठ कर देश दुनिया पर चिंतन करते थे।
उन्हें भाजपा के संकट मोचक के रूप में देखा जाता था। आज किसानों का आन्दोलन पिछले एक महीने से ज्यादा दिनों से चल रहा है। सभी मानते हैं कि अगर अरुण जेटली जीवित होते तो किसानों का आन्दोलन इतने लंबे समय तक नहीं चलता। वह कोई न कोई समाधान ज़रूर निकाल लेते। उनका स्वास्थ उनका साथ नहीं दिया। वे 66 वर्ष के उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया।
अरुण जेटली का नाम हमेशा भारतीय जनता पार्टी के स्वर्णिम इतिहास में शामिल रहेगा।



 

Thursday 24 December 2020

किसान - बंजर भूमि में बोता है आशाओं का बीज


एक ख्वाहिश,
एक सपना,
एक भूख,
एक मातृ प्रेम।
इन सब का मिला जुला रूप
किसान।
बंजर भूमि में बोता है
आशाओं का बीज।
दीमक - कांटों से बचाने को 
लाता है दवा उधार में।
उधार का पानी, उधार की खाद,
उधार की बिजली, देनदार की वसूली।
मेहनत का मूल्य 
शून्य .......।
चिड़ियों की चहकने से, उल्लू के जगने तक
लहलहाती मां का सपना लिऐ 
अनवरत कार्मशील।
प्रस्फुटन बीजों का नये उगते पत्ते।
मौसम की प्रताड़ना को निरंतर सहते हुए 
करता है मां का श्रंगार।
बीवी, बच्चों को भरपेट भोजन 
खिलाने की उम्मीद।
विवशता कर्ज़ चुकाने की ।
घर पहुंचते लिपट गए बच्चे
समझ गए दर्द किसान पिता का
बापू --
हमारा पेट रोटी नहीं मांगता।
हम धरती के , धरती हमारी मां।
चुकाते रहेंगे कर्ज़ 
अपनी मां का।
           प्रशान्त सिन्हा

Monday 30 November 2020

कार्तिक पुर्णिमा, देव दीपावली, गुरुनानक जयंती और प्रकाश पर्व

कार्तिक पूर्णिमा,  देवदीपावली, गुरुनानक जयंती और प्रकाश पर्व पर संदेश। 
आज के दिन का विशेष महत्व।

आज देश में  कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली और गुरुनानक देव की जयंती मनाई जा रही है। गुरुपर्व का सिख धर्म में बहुत महत्व है। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के दिन गुरुनानक जयंती मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा का हिन्दू ओर सिख धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन को गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है तो वहीं इस दिन ही प्रकाश पर्व भी मनाया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गंगा में डुबकी लगाने के बाद दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है एवं  पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली भी मनाई जाती है। मान्यता है कि भगवान शिव ने इस दिन देवलोक पर हाहाकार मचाने वाले त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का संहार किया था और उसके वध के खुशी में देवताओं ने इस दिन दीपावली मनाई थी। 
त्योहारों, उत्सवों के माह कार्तिक की अंतिम तिथि देव दीपावली है। कार्तिक माह के प्रारंभ से ही दीप दान एवं आकाशदीप प्रज्वलित करने की व्यवस्था के पीछे गायत्री मंत्र में आवाहित प्रकाश से धरती को आलोकित करने का भाव रहा है क्योंकि शरद ऋतु से भगवान भास्कर की गति में परिवर्तन होता है। इसके चलते दिन छोटा होने लगता है और रात बड़ी यानी अंधेरे का प्रभाव बढ़ने लगता है। इसलिए इससे लड़ने का उद्दम भी है दीप जलाना।

सिख पंथ के संस्थापक गुरुनानक देव की जयंती पर सभाओं का आयोजन किया जाता है और इन सभाओं में गुरुनानक देव के द्वारा दी गई शिक्षाओं के बारे में बताया जाता है। इस दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है और लंगर का आयोजन किया जाता है। श्री गुरु नानक जी ने सम्पूर्ण विश्व का अन्याय, अत्याचार एवं शोषण के विरूद्ध एक जुट होने का मार्ग दिखाया है। गुरु नानक जी ने " किरत करो, वंड छको " जैसे उपदेश देकर समाज को स्वाभिमान के साथ अपने पैरों पर खड़ा होने में समर्थ किया। गुरुनानक जी ने  स्वयं खेती कर युवाओं को बहुत बड़ा संदेश दिया था सामाजिक सरसता के लिए गुरु जी का जाति धर्म की संकुचित दीवारें तोड़ने के लिए संगत पंगत का आह्वान, काम की प्रतिष्ठा बढ़ाने और बांट कर खाने का सिद्धांत अत्यंत प्रासंगिक है। गुरुनानक जी का जीवन, चिंतन व दर्शन काल की सीमा से परे है। 
प्रकाश पर्व अंधकार से लड़ने का संदेश देता है लेकिन केवल अंधेरे से नहीं बल्कि उस तमस से भी जो हमारे मन मस्तिष्क में घर लेता है। कोई भी समाज हो उसे भौतिक समृद्धि के साथ आत्मिक शान्ति भी चाहिए होती है। इसकी प्राप्ति तब होती है जब मन के कलुष को दूर करने की चेष्टा की जाती है। हमें अपने सामाजिक परिवेश की भी चिंता  करनी है और बिगड़ते हुए पर्यावरण की भी। वास्तव में पर्यावरण को बचाकर ही हम देव दीपावली को ऋतु परिवर्तन के पर्व के रूप में मनाते रह सकते हैं।








 


 
था।

Friday 20 November 2020

छठ व्रत और मां

भारत के त्योहारों की विशेषता यह है कि यह सामाजिक एवं पारिवारिक एकता  के अनुपम आदर्श है। इसी भाव के साथ प्राचीन काल से पर्व मनाते चले आ रहे हैं।
विशेषकर छठ पर्व परिवार और समाज के एकीकरण का  त्योहार है । हमारे परिवार में भी छठ पर्व धूमधाम से मनाया जाता था। मेरी मां ने पच्चीस से भी ज्यादा वर्षों तक छठ व्रत करती रही थी लेकिन गठिया जैसी बीमारी ने उन्हें आगे के वर्षों में व्रत रखने से वंचित कर दिया था। 
मां का कहना था कि यह पर्व जीवन को खुशहाल व रिश्तों को मजबूत बनाने में अटूट कड़ी  की भूमिका निभाता है। हमारे ददिहाल और ननिहाल दोनों तरफ के परिवार मिलजुल कर यह त्योहार मनाते थे ।
मां छठ के एक हफ्ते पहले से तैयारियां शुरू कर देती थीं। पापा के साथ व्रत से संबंधित सारी खरीदारियों खुद करती थीं।  नहाय खाए के दिन गंगा नदी जा कर पानी और मिट्टी लाती और उस कमरे को उनसे साफ करतीं । छठ के पहले दिन नहाय खाय में चावल दाल और लौकी की सब्जी मिट्टी की चूल्हे पर बनता था। उस खाना को प्रसाद के रुप में ग्रहण करना होता है । छठ पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। मां कमरे में जमीन पर सोया करती थीं। व्रत से संबंधित सारे काम नहाने धोने के बाद ही करना होता है।
परिवार की महिलाएं प्रसाद बनाती थीं एवं पुरुष मंडी से फल सब्जियां लाते थे। छठ का दूसरा दिन खरना का होता है। उस दिन खीर पूरी प्रसाद के रूप में चांद को देखने के बाद मिलता है। खर्णा वाले दिन हमारे मित्र एवं रिश्तेदार दूर दूर से प्रसाद खाने आते थे। कुल मिला कर यूं कहें कि माहौल उत्साह और उल्लास का होता था।जीवन को नई ताजगी मिलती थी जिससे जीने का हौसला दुगुना हो जाता था। 
तीसरे दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य देने के बाद खाना पीना होता था। सभी भाई बहन के साथ हंसी मज़ाक होता था। पापा अपने भाइयों के साथ त्यौहार का आनंद लेते थे। उस रात मात्र दो तीन घंटे सोने के बाद सुबह के अर्घ्य की तैयारी शुरू होती थी। सुबह वाले अर्घ्य के बाद ठेकुआ प्रसाद में मिलता था। इसके साथ चार दिनों तक चलने वाले पवित्र , ऊर्जावान और उल्लास वाला त्योहार समाप्त होता था। 
आज मां हमारे बीच नहीं है लेकिन छठ जितने तन्मयता से करती थी उसे शायद ही कोई भूल पाएगा।
   बीते पलों को याद कर रहा हूं मां,
   कुछ लिखने में दिल लगा रहा हूं
   मगर सच तो यह है
   दिल नहीं लग रहा है तुम्हारे बिना मां !!

Saturday 14 November 2020

Deepawali celebrates the light of Knowledge

Deepavali,  the festival of lights, is reach in symbolism. Celebrated on the darkest of nights, it indicates that for those who light the lamp of knowledge in the darkness of life , there is luminosity, both within and without. For those who don't, the mind abides in darkness because the outer light is temporary.
The festival of Deepawali starts from the dhanteras and is celebrated over five days culminating in the day of Bhaidooj. These are extremely potent days for manifestation and sidhhis.
Rituals associated with Diwali have deep spiritual significance. Before Deepawali people clean and decorate their homes and workplaces. On Deepawali night they light lamps in their homes and offer prayers invoking Lakshmi goddess of wealth. These practices are refualised expressions of rejuvenation of human soul in its journey through time.
The cleaning before Dipavali symbolises cleansing thar the soul must undergo to be able to receive and retain the wisdom and virtues that God gives. It is believed that Goddess Lakshmi does not enter homes that are not clean, and make sure that every corner of their dwelling is clean before Diwali. We should keep our mind pure. The cleaner the mind the more one is attracted to all that is good and noble, and such a mind seeks enlightenment. Happiness is the fruit of good actions, which in turn flow from pure thoughts and feelings. Noble thoughts will come
Deepawali in the true sense celebrates the rooting out darkness from the mind by lighting the lamp of dhyana jnana.

Saturday 31 October 2020

सरदार पटेल और राष्ट्रीय एकता दिवस

भारत के प्रथम उप प्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल के जन्म दिवस 31 अक्टूबर को " राष्ट्रीय एकता दिवस " के रूप में मनाया जा रहा है। वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने इसकी घोषणा की थी। इसी दिन राष्ट्रीय स्तर पर  " रन फॉर यूनिटी " का आयोजन किया जाता है। विश्व की सबसे ऊंची सरदार पटेल की  प्रतिमा  " स्टैचू ऑफ यूनिटी के रूप में गुजरात के केवाड़िया में स्थापित किया गया। 

31 अक्टूबर 1875 को जन्मे सरदार पटेल को नए भारत का शिल्पकार कहा जाता है। आज़ादी के बाद टुकड़ों में बटी  565 रियासतों का विलय करके सरदार पटेल ने अखंड भारत का निर्माण किया था।

आज़ाद भारत के शासन तंत्र को वैधता प्रदान करने में गांधी, नेहरू, और पटेल की त्रिमूर्ति की बहुत भूमिका रही थी। लेकिन शासन तंत्र भारतीय इतिहास में गांधी और नेहरू के योगदान को तो स्वीकार करता है  लेकिन पटेल की चर्चा कम की गई। पटेल यथार्थवादी थे तभी वे सभी काम बेहतर ढंग से कर सके। 

बल्लभ भाई पटेल को " सरदार " उपनाम गुजरात के बारडोली की महिलाओं ने दिया था। पटेल ने गुजरात के किसानों को साथ लेकर ब्रिटिश सरकार द्वारा 22 प्रतिशत का लगान लगाने के विरोध में आंदोलन कर सरकार को  झुकाया था जिससे लगान दर घटा कर 6.03 प्रतिशत कर दिया गया था। 

भारतीय संघ में रियासतों का विलय करवाने में पटेल ने कभी कभी  सख्ती से काम लिया जिसके उदाहरण हैदराबाद और जूनागढ़ का भारत संघ में विलय है। पाकिस्तान की धमकी एवं तब के भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष जेनरल रॉबर्ट बुचर के नहीं राजी होने के बावजूद उन्होंने सख्त फैसला लेते हुए सैन्य हस्तक्षेप कर हैदराबाद को भारत में विलय करा दिया था। जूनागढ़ के नवाब तो उनके डर से भागकर पाकिस्तान चला गया।

देसी रियासतों को स्वतंत्र भारत की विलय पहली उपलब्धि थी और इसका पूरा योगदान सरदार पटेल का था। इसी  नीतिगत दृढ़ता के लिए गांधी जी ने उन्हें " लौह पुरुष " की उपाधि दी थी।

एक रूसी प्रधान मंत्री ने कहा था कि राजाओं को समाप्त किए बिना राजवाड़ों को समाप्त कर देना पटेल ही जानते है। उनके निर्णय लेने की क्षमता पर पूर्व उप सेनाध्यक्ष, नेपाल में रहे राजदूत, जम्मु- काश्मीर के राज्यपाल जेनरल एस के सिन्हा के अनुसार एक बार हैदराबाद के विषय पर विचार विमर्श के लिए पटेल ने जेनरल करियप्पा को बुलाया। करियप्पा के पहुंचने पर उन्होंने उनसे पूछा कि क्या हम हैदराबाद पर सैनिक करवाई के लिए तैयार है ?  करियप्पा के हां कहते ही मीटिंग समाप्त हो गई और करियप्पा पांच मिनट बाद ही कमरे से बाहर आ गए। 

15 दिसंबर 1950 में सरदार पटेल की एक लंबी बीमारी के बड़ मृत्यु हो गई। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उनकी मृत्यु पर कहा था " सरदार पटेल के शरीर को अग्नि जला तो रही है लेकिन उनकी प्रसिद्धि को दुनिया की कोई अग्नि नहीं जला सकती।
राजमोहन गांधी ने अपनी किताब पटेल ने  लिखा है " 1947 में अगर पटेल 10 या 20 साल उम्र में छोटे हुए होते तो शायद बहुत बेहतर प्रधान मंत्री साबित हुए होते।  गौरव मतलब है कि देश आज़ाद होने के बाद प्रधान मंत्री के लिए नेहरू के अलावा पटेल का भी नाम लिया गया था लेकिन गांधी जी के कहने पर पटेल पीछे हट गए थे।
सरदार पटेल को 1991 में भारत रत्न मरणोपरांत दिया गया।

Tuesday 6 October 2020

पासवान की 2005 की पुनरावृत्ति

बिहार का चुनाव का शंखनाद हो चुका है और सभी दल के सुप्रीमो खुद को मुख्य मंत्री के रूप में पेश करेंगे।
बिहार विधान सभा चुनाव में लोजपा एनडीए से बाहर आ हो गई है। चिराग पासवान नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे।  चिराग एक तरफ जदयू के खिलाफ मजबूती से लड़ना चाहते हैं तो दूसरी तरफ भाजपा के उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे।

भाजपा ने भी संभवतः बिहार विधान सभा चुनाव के लिए  सर्वेक्षण कराया  होगा। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकता कि बिहार में पंद्रह साल से सत्ता के शीर्ष पर बैठे मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ Anti Incumbancy factor काफी अधिक है। दरअसल भाजपा को छोड़ कर राजद के
साथ जाने और फिर राजद को छोड़कर भाजपा के साथ आने के नीतीश कुमार के फैसले के बाद उनकी विश्वसनीयता पर लोग संदेह करने लगे है।

राम विलास पासवान जिन्हें सियासी गलियारे में  मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है ने भी  अपने पुत्र चिराग पासवान के सभी राजनैतिक फैसलों को समर्थन कर उन्हें बिना विचलित हुए आगे बढ़ने का संदेश दे दिया है। बिहार की मौजूदा राजनीति की सबसे अनुभवी नेता ने अगर चिराग पासवान  को अपना समर्थन दिया है तो यह बिहार विधान सभा चुनाव के लिए बहुत अहम है।  चिराग पासवान की 143 सीटों पर चुनाव लडने के फैसले ने जदयू से निर्णायक लड़ाई छेड़ दी है। चिराग पासवान की आत्मविश्वास का कोई  कारण नहीं दिखता क्योंकि अगर पहले के चुनाव के वोट प्रतिशत को देखते हैं तो लोजपा का वोट प्रतिशत लगातार घट रहा है। राम विलास पासवान  की गैरमौजूदगी का भी फर्क पड़ सकता है। 

यह हमें पंद्रह साल पहले की घटना याद दिलाती है। फरवरी 2005 के बिहार विधान सभा चुनाव में राम विलास पासवान ने यूपीए में रहते हुए भी लालू यादव के खिलाफ चुनाव लडा था। उन्होंने कांग्रेस से समझौता किया  लेकिन राजद के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे जिसकी वजह से लालू के केवल 75 विधायक ही जीते और राजद को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। इसी प्रकार क्या चिराग नीतीश का खेल बिगाड़ना चाहते हैं । क्या नीतीश सरकार पर नाकामियों का इल्ज़ाम इसी नीति का हिस्सा है ? 2005 में लालू - राबड़ी का शासन 15 वर्षों का था तो 2020 में नीतीश के 15 वर्ष हो  गए।  शायद चिराग इसमें कोई समीकरण ढूंढ रहे हैं। 

Thursday 1 October 2020

गांधी को जिसने नहीं पढ़ा उसने गांधी को नहीं समझा

मै गांधी जी का कभी विरोधी नहीं रहा लेकिन पक्षधर भी नहीं रहा। गांधी पर  बहस करते वक़्त उनके विरोध में भी यदा कदा बोला करता था। किन्तु लॉक डाउन के दौरान घर में रहने के कारण गांधी जी पर कुछ पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिला। तभी मै गांधी जी को समझ पाया। अब मेरा मानना है जिसने गांधी को नहीं पढ़ा वह गांधी को नहीं समझा। एक गाल पर चांटा पड़ने पर दूसरे गाल को आगे बढ़ाने का फिलॉस्फी समझना आसान नहीं है। ज़रूरत है कि आने वाली पीढ़ी को गांधी के विचारों से अवगत कराएं।
2 अक्टूबर को भारत में राष्ट्र पिता महात्मा गांधी का जन्म दिवस " गांधी जयंती " के रूप में मनाया जाता है। महात्मा गांधी द्वारा अहिंसा आंदोलन चलाए जाने के कारण विश्व स्तर पर उनके प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए इस दिन को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

इतिहास में साधारण से असाधारण हो जाने वाले व्यक्तित्वों की सूची बड़ी है, लेकिन साधारण से सर्वोत्तम साधारण होने का उदाहरण केवल गांधी जी है। वे राजनीति कार्यकर्ता थे। वे आंदोलनकारी थे। 

गांधी एक बड़े मनोवैज्ञानिक भी थे। दूसरे इंसान को समझने की शक्ति असाधारण थी। उन्होंने अपने प्रेम से भारत के हृदय पर अधिकार कर लिया। गृहस्थ जीवन बिताते हुए उन्होंने न सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया, बल्कि पत्नी , बच्चों के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए उन्होंने असंख्य लोगों को स्वयं से जोड़कर परिवार को बड़ा किया। गांधी का मौन व्रत तथा आधार साधु संतों के समान था। उनके वस्त्र श्रमिकों की तरह थे। गांधी की हिन्दू धर्म में गहरी आस्था थी लेकिन हर धर्म के मर्म को समझा था।  गांधी जी  सेवा को ही सच्ची पूजा मानते थे। उन्होंने कभी भी कोई तप- यज्ञ या अनुष्ठान नहीं किया। सभी धर्मों के ज्ञान का निचोड़ उन्होंने यह निकाला कि धर्म में परिभाषाएं अलग अलग होती है लेकिन उनका मर्म मानव की क्षमता के अनुसार निस्वार्थ सेवा पर ही केन्द्रित होता है। वे स्त्री को शक्ति स्वरूपा मानते थे, इसलिए स्वतंत्रता संघर्ष से उन्होंने स्त्रियों को जोड़ा। उनका उपवास शारीरिक बलिदान भी उनकी आत्मा की आहुति था। अणु बम से भी ज्यादा शक्तिशाली था उनका उपवास।
गांधी विश्व इतिहास का आश्चर्य है। लगभग एक सदी पहले से ही सारा विश्व सत्य और सत्याग्रह पर आधारित गांधी की अवधारणा को ध्यान पूर्वक देखता रहा। मार्टिन लूथर  किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे शख्सियत ने अन्याय  और शोषण तथा अपमानजनक स्थितियों से छुटकारा पाने गांधी जी के विचारों और उनकी सार्थकता को न केवल समझा बल्कि उनसे प्रेरणा लेकर अनुसरण किया और उसमे सफलता पाई। गांधी को पूरे विश्व ने सराहा है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी गांधी के प्रशंसक हैं।
गांधी सबकी समृद्धि चाहते थे। उन्होंने भौतिक साधन को स्टेटस सिंबल न बना कर आत्म संयम को स्टेटस सिंबल बनाया। खादी, चरखा, और त्याग गांधी समर्थक की पहचान बनी।
उनकी कुछ बातें मेरे जहन में बैठ गई हैं। उनका कहना था कि मनुष्य की कमजोरी का अनुकरण नहीं बल्कि उसके गुणों का अनुकरण करना चाहिए। वे कहा करते थे कि मै अपने को तब अधिक बलवान महसूस करता हूं जब अपनी गलती स्वीकार कर लेता हूं जिस प्रकार झाड़ू गंदगी को हटाकर जमीन को पहले से भी अधिक साफ कर देती है उसी प्रकार गलती को स्वीकार करने से हृदय हल्का और साफ हो जाता है। 
उन्होंने आत्मा से लेकर शौचालय तक साफ रखने का संदेश दिया। वे कहता थे ईश्वर भी सफाई पसंद हैं।इसलिए न सिर्फ मन के विकार बल्कि आस पास की गंदगी को भी दूर करें।इसी से प्रेरणा लेकर प्रधान मंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2014 में लाल किले से गांधी जी के जन्म के 150 वर्ष पूरे होने पर देश की ओर से उन्हें स्वच्छ भारत की सौगात देने का संकल्प लिया था। आज इतने वर्षों बाद लोगों ने स्वच्छता के महत्व को समझा। बड़े उत्साह से शौचालयों के निर्माण का कार्य सारे देश में हुआ। आशा है बहुत जल्द देश खुले शौच से मुक्त हो जाएगा।
आज भी देश में बहुत से लोग राष्ट्र के कार्य में इस आशा के साथ जुड़े हैं कि यह देश गांधी के मूल्यों से स्वयं को कभी अलग नहीं कर पाएगा। प्रधान मंत्री मोदी की स्वच्छता की सोच उसी का उदाहरण है।
भारत में गांधी जी के द्वारा अपनाए गए शाश्वत मूल्यों की पुनर्स्थापना ही विकल्प है।




Sunday 27 September 2020

बिहार चुनाव 2020 और जातिवाद

बिहार विधान सभा चुनाव 2020 - जातपात
------------------------------------------
 नहीं केवल विकास
------------------------

ऐसा कहा जाता है कि  बिहार में जातिवाद पर ही चुनाव होते हैं। लालू यादव की पार्टी राजद जातिवाद पर ही आधारित है। ऐसा नहीं है कि बिहार में सिर्फ लालू ही जातिवाद करते हैं,  सारे राजनितिक दल जातिवाद के दम पर अपना चुनावी समीकरण बनाते हैं।
बिहार कि जनता को यह बखूबी मालूम है कि बिहार देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले विकास में पीछे रह गया है। इसके लिए जातिवाद कहीं न कहीं जिम्मेवार है। इसलिए शायद जातिवाद का मिथक टूट रहा है। वर्ष  2010 से ही की जनता ने जाति से सरकार चुनने की प्रथा को खत्म करने की कोशिश की है और जातीय बंधनों को तोड़कर राजनीति में नई परिभाषा को जन्म दिया जिसकी महक देश के अन्य प्रदेशों में महसूस की जा सकती है। पिछले कुछ वर्षों तक बिहार की राजनीति में लालू यादव " माय " ( मुस्लिम + यादव ) समीकरण के बलबूते पर राजनीति की वहीं रामविलास पासवान को दलित नेता कहलाने का प्रयास हमेशा रहा पर जब जब गठबंधन में चुनाव लड़े पूरी तरह पराजित हुए।

गौरव मतलब है कि नीतीश कुमार ने भी जातिवाद को बढ़ावा दिया और दलित को महादलित बना कर बिहार में जातीय राजनीति कर दी लेकिन नीतीश कुमार की मंशा उन्हें दो टुकड़ों में बांट कर उनका विकास लक्ष्य माना जाता है। 15 वीं बिहार विधान सभा के नतीजे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जाति से सरकार नहीं चुनी जाएगी। लेकिन यह निश्चित नहीं है कि जातिवाद को हमेशा के लिए अलग रखा जा सकेगा क्योंकि लालू जैसे नेता को इसी जातिवाद का सहारा है। बताया जा रहा है कि चुनाव में जहां राजद अपनी हिस्से में आने वाली ज्यादातर सीटों पर मुस्लिम यादव उम्मीदवार खड़े करेगी वहीं उसके गठबंधन के साथी कांग्रेस ने भी अपने हिस्से में आने वाली सीटों पर ज्यादातर टिकट भूमिहार ब्राह्मण को देने का मन बना लिया है । भाजपा और उसके सहयोगी भी जातिवाद पर उतरे हुए हैं । सभाओं और रैलियों में भाजपा गठबंधन के नेताओं के चेहरे को दिखाकर और और उनके नाम बताकर जनता को समझाया जा रहा है कि असली यादव तो भाजपा गठबंधन में है। मतलब साफ है जाति से जाति को काटा जा रहा है। 

बिहार में विधान सभा चुनाव का शंखनाद हो  चुका है। सारे दल के नेता जातिवाद को हवा देंगे। विकास को चुनावी मुद्दा तो ये नेता बनाएंगे लेकिन केंद में जाति होगी। अब बिहार की जनता को तय करना है कि प्रदेश को क्या देना चाहती है जातिवाद या विकास ?  क्या जातिवाद के लिए राजनेता ही जिम्मेवार हैं ? आम जनता नहीं ? अगर सच पूछा जाए तो आम जनता भी उतना ही कसूरवार है जितने राजनेता क्योंकि जनता हमेशा वैसी सरकार बनाती है  जिसमें जातीय गठजोड़ हो । वैसी सरकार  केवल अपनी सरकार बचाने में लगी रहती है और कार्यकाल निकल जाता है। कोई विकास नहीं हो पाता।

पांच साल तक लगातार उस क्षेत्र के विधायक एवं नेताओं को कोसने में नहीं थकने वाली जनता सिर्फ जाति देखकर उसे माफ कर देती है कि एक बार और मौका दे कर देखते हैं यह जनता की लाचारी मानी जाएगी या बेवकूफी ? विकास के मुद्दे पर राजनीति करने के बजाए लोग जातीय महत्व देकर नालायक एवं अयोग्य नेता चुन लेते हैं उससे जनता को ही नुकसान होता है। आखिर चुनाव के वक़्त जनता की ऐसी  हरकत हमे कैसी सरकार देती है सभी जानते हैं लेकिन ऐसा करने से क्या राज्य विकसित हो पाएगा ? 
जाति से परिवार चलता है सरकार नहीं। जनता की स्वस्थ एवं स्वच्छ सरकार चुनने के लिए लाचारी या बेवकूफी को दरकिनार करना होगा अन्यथा उनकी लाचारी या बेवकूफी राज्य को देश के पिछले पायदान पर  ही रखेगा। राजनेताओं को कोसने से कुछ नहीं मिलेगा। 

बिहार की जनता को जातिवाद से हटकर स्वच्छ छवि के समाजसेवी को अपना विधायक चुनना चाहिए। अगर इस चुनाव में बिहार की जनता ऐसा करती है तो पूरा विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि बिहार विकास के पथ पर दौड़ेगा।जब बिहार में विकास होगा तब देश में भी विकास होगा।  ये सर्वविदित है कि बिहार से उठा हुआ आंदोलन की धमक पूरे देश में सुनाई देता है।
चित्र : गूगल

Wednesday 23 September 2020

कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव


एक ख्वाहिश, एक सपना, एक भूख, एक मातृ प्रेम ,
इन सबका मिला जुला रूप है भारत का किसान।

किसान सभी लोगों के लिए खाद्द सामाग्री का उत्पादन करता  हैं इसलिए हम उसे  अन्नदाता भी कहते हैं। भारत हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है। ज़ाहिर है किसानों की दशा अच्छी रहनी चाहिए थी किन्तु ऐसा नहीं है। भारत में किसानों द्वारा आत्महत्या सबसे ज्यादा की  जाती है। हालांकि सभी सरकारें किसानों को कर्ज माफी के लिए समर्थन करती रहीं लेकिन किसानों की आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाने की नहीं सोची गई।  उन्हें आत्मनिर्भर नहीं बनाया गया। आए दिन किसानों द्वारा आंदोलन करना आम बात हो गई थी। 

जबकि कुछ विकसित देशों में किसान शब्द का उपयोग किसी व्यवसाई या पेशेवर के लिए किया जाता है जिसके पास फसल उगाने के लिए ज़मीन और रुचि तो होता ही है पर साथ ही वह लोगों को उसमे काम करने के लिए भी रखता है। भारत में कृषि सुधार के लिए एवं विकसित देशों के साथ खड़े करने के उद्देश्य से मोदी सरकार द्वारा दो महत्व पूर्ण विधेयक कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य ( संवर्धन और सरलीकरण ) विधेयक 2020 और कृषक ( सशक्तिकरण और संरक्षण ) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर विधेयक 2020 को लोक सभा एवं राज्य सभा में पारित कराया गया। यह स्वागत योग्य है।
अब देश में " एक देश एक बाज़ार " होगा जहां कोई भी व्यक्ति को किसी भी राज्य के बाज़ार में बेचने की आज़ादी होगी। व्यापारी पहले एक मंडी में काम करता था अब पूरे देश में करेगा। इसमें किसान को भुगतान तीन दिनों के भीतर हो इसका प्रावधान किया गया है। स्पष्ट है कृषि व्यापार खुल रहा है। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। छोटा व्यापारी या किसान बड़े व्यापारी के साथ कमाएंगे। ये कहा जा सकता है कि किसान मण्डी की जंजीरों से आज़ाद हुआ। बिचौलियों का खात्मा हो गया। कॉर्पोरेट फार्मिंग को बढ़ावा मिलेगा। ये विधेयक सही मायने में किसान को अपने फसल के भंडारण और बिक्री की आज़ादी देगा एवं बिचौलियों के चुंगल से उन्हें मुक्त करेगा। किसान अपनी मर्ज़ी का मालिक होगा। किसानों को उपज बेचने का विकल्प देकर उन्हें सशक्त बनाया गया है। मुझे नहीं लगता कि किसानों को सशक्त बनाने के लिए कभी इतना बड़ा सुधार ( reform ) किया गया था। 

लेकिन किसानों के हितों पर अपनी राजनीति सेंकने वाले कई विपक्षी दलों को बहुत बड़ा आघात लगा। किसानों के बहाने विपक्ष मोदी सरकार को झुकाना चाहती है। इसी कारण कृषि संबंधी विधेयक का विरोध हो रहा है। विरोध जितना किसान नहीं कर रहे हैं उससे ज्यादा विपक्षी दल कर रहे हैं।कांग्रेस तो खुद इस विधेयक को लाना चाहती थी एवं अपने कार्यकाल में ही कानून लाना चाहती थी किन्तु इच्छा शक्ति के अभाव में नहीं कर पाई। बिहार में चुनाव है और दूसरे राज्यों में जल्द होने वाले हैं ऐसे चुनावी माहौल में कांग्रेस को मोदी का  किसान प्रेम और कृषि संबंधित फैसले रास नहीं आ रही है। विपक्ष को किसानों की चिंता नहीं है। उन्हें चिंता है तो सिर्फ वोट बैंक की। क्योंकि किसान बहुत बड़ा वोट बैंक है। किसानों को भ्रमित किया जा रहा है। 

किसान संगठनों का आरोप है कि नए कानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉर्पोरेट घरानों के हांथों में चला जाएगा और उसका नुकसान किसानों को होगा। लेकिन इन किसान संगठनों को किसानों से ज्यादा चिंता है आढ़तियों की। आढ़तियों एवं एजेंटों को करीब 2.5 प्रतिशत का नुकसान होगा। 
लेकिन इन सब के बीच किसानों को समझना होगा कि ये कृषि विधेयक उन्हें बिचौलियों और आढ़तियों की मनमानी से आज़ादी दिलाएंगे और किसानों की आय को दोगुनी करने में सहायक होंगे।
ऐसा लगता है शायद सरकार विधेयकों से जुड़ी जानकारी किसानों तक नहीं पहुंचा पाई। हालाकि प्रधान मंत्री ने खुद आश्वासन दिया कि एमएसपी की व्यवस्था जारी रहेगी। मण्डी की व्यवस्था यथावत रहेगी। लेकिन शायद थोड़ा विलंब हुआ। किसानों के लिए कल्याणकारी और दूरगामी प्रभाव वाले जानकारियां किसानों तक नहीं पहुंचा पाई जिससे पंजाब एवं हरियाणा के किसानों में भ्रम पैदा हो गया। इन विधेयकों से कॉर्पोरेट घरानों को फायदा, कालाबाजारी और किसानों का शोषण जैसी अफवाहें भी उड़ाई जा रही है जिससे किसान विरोध में सड़क पर उतर आएं।सरकार को इन भ्रांतियों की स्पष्टीकरण देना चाहिए और सभी किसानों तक विधेयक से जुड़ी जानकारियां सरल भाषा में पहुंचाना चाहिए।

Monday 14 September 2020

हिंदी के विस्तार में विचारों और अन्य संस्कृतियों का समावेश ज़रूरी

आज हिंदी दिवस है।  लेकिन हिंदुस्तान में ही हिन्दी को  बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है इससे बड़ी विडंबना क्या हो  सकता है। इसका प्रचार प्रसार दूसरे देशों में कैसे हो सकता है जब एक साजिश के तहत अपने  ही देश में कुछ मुट्ठी भर लोग इसे हाशिए पर चढ़ाना चाहते हैं। हमारे देश में रोज   हिन्दी की हत्या की जा रही है। हिंदी के प्रति प्रचार प्रसार की जिम्मेवारी जिसे दी जाती है वहीं अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह नहीं निभाते। मेरे एक मित्र ने एक कहानी सुनाई थी।

सरकारी कार्यालय में नौकरी मांगने हमारे मित्र  पहुंचा तो अधिकारी ने पूछा - क्या किया है ?
मित्र ने कहा - एम. ए.
अधिकारी बोला - किस में ?
मित्र ने गर्व में कहा - हिंदी में 
अधिकारी ने नाक सिकोड़ी  और बोला - अच्छा .. हिंदी में एम. ए. हो ? बड़े बेशर्म हो अभी तक ज़िंदा हो , तुमसे अच्छा तो वो स्कूल का लड़का ही अच्छा था  जो ज़रा सी हिंदी बोलने के कारण इतना अपमानित हुआ कि उसने आत्म हत्या कर ली अरे इस देश के बारे में सोचो नौकरी मांगने आए हो , कहीं खाई या कुआं खोजो
मित्र  ने कहा - हिंदुस्तान में रहते हुए हिन्दी का विरोध, हिंदी के प्रति इतना प्रतिशोध ? 
अधिकारी ने कहा -  यह हिंदुस्तान नहीं,  इंडिया है और हिंदी सुहागिन भारत के माथे की उजड़ी हुईं बिंदिया है । तुम्हारे ये हिंदी के ठेकेदार हर वर्ष हिंदी दिवस तो मनाते है पर रोज होती हिंदी - हत्या को जल्दी भूल जाते हैं।

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है लेकिन राष्ट्र बोलने से कतराता है। जुबान से " A B C D "  जिस  confidence  से फूटती है " क ख ग घ " उस आत्म विश्वास से क्यों नहीं निकलता है। मां - बाप भी चौड़े हो कर बताते है कि उनके   बच्चे अंग्रेज़ी में बोलते है । ये क्यों नहीं समझते कि जो अपनापन " मां " में है वह अपनापन " Mom " में नहीं है।

हिंदी का विस्तार तब तक नहीं हो सकता, जब तक इसमें विचारों और अन्य संस्कृतियों का समावेश न किया जाए।  विश्व की चौथी सबसे बड़ी  भाषा होने के बावजूद इसके प्रसार की दिशा में कभी कोई संगठित प्रयास ही नहीं किया गया। यही वजह है कि आज हिंदी पर  अंग्रेज़ी दां लोग हावी हो रहे हैं । हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। हमारी भाषा हमारी सांस्कृतिक पहचान को परिभाषित करती है।  हिंदी की महत्ता इससे भी आती है कि यह हमे स्वयं से जोड़ती है।  
बता दें देश में करीब 77 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते हैं। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा आज़ाद भारत की मुख्य भाषा के रूप में हिंदी को पहचान दी गई थी। साल 1952 में पहली बार हिंदी दिवस का आयोजन हुए था। तब से ये सिलसिला लगातार बना हुआ है।गांधी जी ने हिंदी भाषा को जनमानस की भाषा भी कहा है।  हिंदी का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है।


Monday 7 September 2020

विश्व साक्षरता दिवस : शिक्षा का प्रचार - प्रसार की जिम्मेवारी सभी की

पूरा विश्व 8 सितम्बर को हर वर्ष साक्षरता दिवस मनाता है। विश्व में शिक्षा के महत्व को दर्शाने और निरक्षरता को समाप्त करने के उद्देश्य से 17 नवम्बर 1965 को यह निर्णय  यूनेस्को द्वारा लिया गया था। पहला अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस 1966 को मनाया गया था।
भारत में साक्षरता दर 74.04% है जहां पुरुषों की साक्षरता दर 82.14% है वहीं महिलाओं में इसका प्रतिशत केवल 64.46 है। आशा है आने वाले 20 सालों में 99. 50% हो जाएगा।
साक्षरता के क्षेत्र में विश्व में भारत का 131 वां स्थान है। भारत में अभी भी 60 लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते। भारत में सबसे ज्यादा निरक्षर लोग रहते हैं। भारत में 28 करोड़ बच्चे पढ़ नहीं सकते। केरल में सबसे ज्यादा साक्षरता प्रतिशत 93.91 है।
सभी के लिए शिक्षा एक विकसित , सभ्य समाज की महत्वपूर्ण विशेषता है। इसलिए हम ये समझते हैं कि शिक्षा है क्या ? जीवन की सुसंस्कृत और सुचारू रूप से चलाने के लिए शिक्षा अति आवश्यक है। शिक्षा मानव को एक अच्छा इंसान बनाती है। शिक्षा में ज्ञान , उचित आचरण , तकनीकी दक्षता , शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट है। अतः शिक्षा , कौशलोंव्यापार या व्यवसाय एवं मानसिक , नैतिक और सौंदर्य विषयक के उत्कर्ष पर केन्द्रित है। समाज की एक पीढ़ी अपने ज्ञान को दूसरी पीढ़ी में स्थांतरित करने का प्रयास ही शिक्षा है। अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्वपूर्ण भमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति को निरंतरता को बनाए रखती है। शिक्षा के द्वारा ही बच्चे समाज के आधारभूत नियमों व्यवस्थाओं एवं मूल्य को सीखते है।
साक्षरता और शिक्षा का वास्तविक अर्थ क्या है ? क्या इसका अर्थ यह है कि हम उनलोगों को शिक्षित और साक्षर माने जो पढ़ लिख सकते हैं और संख्याओं को समझ सकते है ? क्या हम ऐसे व्यक्ति को शिक्षित मान सकते हैं । क्या हम ऐसे व्यक्ति को शिक्षित मान सकते है जिसने विद्यालय और महाविद्यालय स्तर पर विभिन्न विषयों और पाठ्यक्रमों का अध्ययन किया है। यदि आप अपनी शिक्षा का विश्व के साथ व्यवहार करते समय या अपने व्यावसायिक जीवन उपयोग करने में असमर्थ है तो आपकी शिक्षा का कोई अर्थ है ?
शिक्षा का आधुनिक और विश्वसनीय पैमाना यह होना चाहिए कि शिक्षित व्यक्ति कितनी अच्छी तरह से और कितनी तेजी से बदलते विश्व परिदृश्य के साथ अपने आपको समायोजित करता है। सच्चे अर्थ में शिक्षा का सीधा संबंध आत्मबोध से होता है।
साक्षरता दिवस पर सभी को संकल्प ज़रूर तीन काम करना चाहिए :
1. कम से कम एक जरूरतमंद बच्चे को ज़रूर पढ़ाएं।
2. बच्चों के लिए किताबों का संग्रह करें और घरों में छोटा पुस्तकालय बनाएं।
3. ऑफिस में " पुस्तक क्लब " ज़रूर बनाएं।

इसके साथ एक नई शुरुआत करते हैं। साक्षरता दिवस पर प्रण करते हैं कि शिक्षा का प्रचार -  प्रसार करेंगे। ज्यादा से ज्यादा बच्चे जो गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा पाते  उनके पढ़ाई का खर्च उठाएंगे। सरकार पर शिक्षा के लिए बजट बढ़ाने के लिए दवाब बनाएंगे। शिक्षा की प्राप्ति को संभव बनाना अर्थात बालकों से लेकर प्रौढ़ तक के यथोचित शैक्षणिक परिवेश प्रदान करना हम सभी की जिम्मेवारी होनी चाहिए।  हमारी यही छोटी छोटी कोशिशें कई बार बड़ा आकार लेने में सक्षम होती है। इससे देश की तस्वीर बदल जाएगी। 

चित्र : गूगल

Thursday 3 September 2020

शिक्षक दिवस: युग बदला और बदल गया गुरु - शिष्य का संबंध

हमारे समाज और देश में शिक्षकों के योगदान को सम्मान देने के लिए हर वर्ष 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
जीवन में सफल होने के लिए शिक्षा सबसे ज्यादा ज़रूरी है।  शिक्षक देश के भविष्य और युवाओं के जीवन को बनाने और उसे आकार देने के लिए सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कहते हैं कि किसी भी पेशे की तुलना अध्यापन से नहीं की जा सकती। ये दुनिया के सबसे नेक कार्य है। इस साल की शिक्षक दिवस मैं अपनी मां श्यामा सिन्हा को समर्पित करता हूं। 

मेरी मां श्यामा सिन्हा जो पिछले महीने इस दुनिया से चली गईं , को शिक्षा से काफी लगाव था। उन्होंने उस समय बी ए और बी एड किया था जिस समय कम  महिलाएं ही उच्च शिक्षा के लिए जाती थीं। उन्होंने 36 साल  पटना के राजकीय कन्या उच्च विद्यालय में अध्यापन को दिया था।  वह भी उन दिनों में जब निजी विद्यालय दो चार ही होते थे।  अमीर गरीब सभी छात्र छात्राएं सरकारी विद्यालयों में ही पढ़ा करते थे। उनके द्वारा पढ़ाई गई न जाने कितनी छात्राएं आज डाक्टर, इंजिनियर,  अध्यापिका, या ऑफिसर बनी होंगी। वे अध्यापन के अलावा सामाजिक कार्य भी  किया करती थीं। उन्होंने बहुत से लड़कियों की शादियां कराई। बहुत लोगों को आश्रय दिया।  एक घटना मुझे आज भी याद है। एक व्यक्ति , जो  रेस्टोरेंट चलाता था लेकिन लंबी बीमारी की वजह से उसे  रेस्टोरेंट बंद करना पड़ा था मेरी मां के पास अपनी पत्नी और छ बच्चों के साथ आया और मेरे घर के सामने खाली  पड़ी जमीन पर ढाबा खोलने के लिए अनुमति मांगी।  वहीं पास में असामाजिक तत्वों द्वारा खोली हुई चाय की दूकान वाले  नहीं चाहते  थे कि वहां ढाबा खुले। उन्होंने विरोध किया। मां ने प्रशासन की मदद से उस चाय वाले को वहां से हटा कर उस व्यक्ति की ढाबा खुलवा दी जिसका एहसान उसकी संतानें आज भी मानती है। तभी तो ज्यादातर शिक्षक आज़ादी की लड़ाई में शामिल थे क्योकि शिक्षक निडर होते हैं और किसी के सामने नहीं झुकते।

उन दिनों ( सत्तर के दशक में ) शिक्षक दिवस बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता था।  उन दिनों शिक्षक दिवस के दिन पढ़ाई नहीं होती थी बल्कि उत्सव और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। छात्राएं अपनी शिक्षिका को ढेर सारे उपहार दिया करती थीं। गुरु - शिष्य परंपरा को कायम रखने के लिए संकल्प लिया जाता था। मै मां के साथ  बचपन में उनके विद्यालय इस दिन ज़रूर जाया करता था इसलिए अभी भी मेरे मस्तिष्क पटल पर है।  
युग बदल गया और बदल गया गुरु - शिष्य का संबंध।  जब शिक्षा एक व्यवसाय बन कर रह गई है तो ऐसे में समय के साथ छात्रों और शिक्षकों के आपसी संबंध भी बदले हैं। आज शिक्षा में शिक्षक की भूमिका अस्वीकार कर E - Learning  जैसी बात हो रही है लेकिन मेरा मानना है आमने सामने के शिक्षण में जो आपसी विचारों का आदान प्रदान होता है वह दूरस्थ शिक्षा में संभव नहीं हो पाता। इसमें विचारों का एक तरफा बहाव है जो छात्रों का सम्पूर्ण विकास नहीं कर पाता है। शिक्षकों में भी समाज के दूसरे वर्ग की तरह कमाने की इच्छा बढ़ गई है। आज छात्र - छात्राओं और शिक्षकों के में  भले ही मतभेद हो लेकिन शिक्षकों को वह सम्मान हमेशा देना चाहिए जिसके वह हकदार हैं। शिक्षक दिवस के बहाने ही सही उनकी कृतज्ञता स्वीकार कर के यह संकल्प लेना चाहिए कि हमेशा उनका आदर करेंगे। 
 






Monday 31 August 2020

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 - अपेक्षा के अनुरूप या जुमला

बहुप्रतीक्षित और  बहुचर्चित राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई। आखिरी बार यह 1986 में तय किया गया था। हालांकि 1992 में थोड़े संशोधन किए गए थे। बदलती ज़रूरतों के अनुसार शिक्षा नीति में बदलाव की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी मगर अब तक 1986 में बनी नीति के अनुसार ही शिक्षा व्यवस्था का संचालित किया जा रहा था। यह शिक्षा नीति बदलते समय की कसौटी पर अनुपयोगी साबित हो रही थी जिसका लक्ष्य कुछ इंजिनियर,डॉक्टर, ऑफिसर, और कर्मचारी तैयार करना भर था।   2014 की चुनावी रैलियों में बीजेपी ने देश की शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा नीति में बदलाव की जरूरत का मुद्दा बनाया था। बीजेपी की सरकार बनने के बाद मोदी सरकार ने 2016 से ही नई शिक्षा नीति लाने की तैयारियां शुरू कर दी थी और इसके लिए टी एस आर सुब्रह्मण्यम कमेटी का गठन भी हुए था लेकिन सरकार को वह पसंद नहीं आया था।
इसके बाद सरकार ने वरिष्ठ शिक्षाविद, चांसलर और इसरो के पूर्व अध्यक्ष कस्तूरी रंगण की अध्यक्षता में एक नौ सदस्य  वाली कमेटी का गठन किया गया। व्यापक मंथन और हजारों सुझावों को समेट कर बनी नई  राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अपने ढंग से समीक्षा हो रही है। विद्वान और शिक्षाविद इसकी विशेषताओं और कमियों की बात कर रहे हैं। लेकिन अच्छी बात यह है कि इस नीति की संकुचित दृष्टि से नहीं देखा जा रहा है।
सरकार द्वारा यह कहा जा रहा है कि यह नीति 21वीं सदी में नए भारत के निर्माण का आधार स्तम्भ है। नई शिक्षा नीति को भविष्य की नीति के तौर पर सरकार द्वारा प्रसारित किया जा रहा है। नई शिक्षा नीति ने कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं जिसकी प्रतीक्षा लंबे समय से की जा रही थी। ऐसे प्रावधानों की सूची में सबसे ऊपर आता है " separation of functions या separation of powers".

देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली पूरी तरह से एक व्यक्ति अथवा विभाग केंद्रित व्यवस्था है। इसमें सरकार ( शिक्षा विभाग ) ही विद्यालय को वित्त प्रदान करती है। ऐसा होना किसी भी क्षेत्र में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के लिए हानिकारक है। इस व्यवस्था में पक्षपात अवश्यंभावी हो जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में इसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। ऐसे तमाम नियम और कानून है जो निजी स्कूलों के प्रति कड़ा रुख अपनाते हैं जबकि सरकारी स्कूलों के प्रति उनका रवैया सहयोगात्मक रहता है। नई शिक्षा नीति में नियामक ( regulator ) और सेवा प्रदाता ( service provider ) के इस घाल मेल को दूर करने का प्रयास करते हुए  उन्हें अलग अलग करने की बात की गई है। इसके लिए status school standard authority (SSAAS)   बनाने का प्रावधान किया गया है।
नई नीति का दूसरा ज़रूरी बात है उसकी स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने की बात। छात्रों के विद्यालय में दाखिल होने की दर 98% के वैश्विक स्वीकृत मानकों के आस पास ही है लेकिन National achievement survey और अन्य सर्वेक्षण की पुष्टि करते है कि 8 वीं कक्षा का छात्र तीसरी कक्षा के स्तर के गणित के प्रश्नों के हल करने में सक्षम नहीं है। पांचवी कक्षा का छात्र तीसरी कक्षा की हिंदी को पढ़ने में सक्षम नहीं है। देर से ही सही सरकार ने  कक्षाओं के आधार पर सीखने के स्तर को निर्धारित करने का फैसला किया है।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोई भी देश अपनी शिक्षा व्यवस्था के अनुरूप अपने राष्ट्रीय मूल्यों के साथ अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है और भविष्य का निर्माण करता है। देश की नई शिक्षा नीति में इस तथ्य पर खास तौर पर गंभीरता के साथ ध्यान दिया गया है। इसी को ध्यान में रखकर प्रधान मंत्री ने कहा था कि बदलते समय देश में ऐसे युवा तैयार होंगे जो राष्ट्र निर्माण में अपनी सकारात्मक भूमिका निभा पाएंगे। 
नई शिक्षा नीति में भाषा, सभ्यता, संस्कृति एवं सामाजिक मूल्यों को समुचित महत्व मिला है। सरकार का दावा है कि नई शिक्षा नीति बहुमुखी व्यक्तित्व का निर्माण करने वाली है। नई नीति का स्वरूप भारतीय है। इसमें भारतीय ज्ञान के साथ साथ भारतीय आवश्यकताओं और विद्यार्थियों की कौशल ( skill ) विकसित करेगी। देश के अंदर आत्मनिर्भर और शसक्त भारत बनाने की बात हो रही है। ऐसे समय में यह नई शिक्षा नीति कारगर सिद्ध होगी। भारतीयों भाषाओं को  महत्व देना महत्वपूर्ण निर्णय है। स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के पाठ्यक्रमों को कम करके सामान्य ज्ञान पर अधिक जोर दिया गया है।
नई शिक्षा नीति learning output  के साथ सम्पूर्ण विकास की बात करती है। childhood care education को लेकर भारत सरकार की प्राथमिकता शिक्षा की बुनियादी बदलाव को शसक्त बनाने की है। छठी कक्षा से ही vocational skill को पकड़ने का प्रावधान असल में उस बड़े लक्ष्य को पकड़ने के लिए है जिसके जरिए चीन और दक्षिण कोरिया जैसे मुल्कों ने दुनिया में अपनी आर्थिक हैसियत को कम समय में हासिल किया है। भारत की नई नीति चीन और कोरियाई मॉडल की तरह ही कौशल उन्नयन को सुनिश्चित करती है। नई नीति शिक्षा को मातृ भाषा और प्रादेशिक भाषाओं में देने की वकालत करती है। मौजूदा नीति केवल रटने वाली है और परीक्षा पास करने की अनुसरण करती है जबकि नई नीति जिज्ञासा केंद्रित होगी।

लेकिन ऐसा नहीं है सभी इससे खुश है। कई बिंदुओं को लेकर इसका विरोध हो रहा है। कुछ लोगों का कहना है कि भारत का शिक्षा जगत निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा जबकि भारत सरकार सम्मिलित रूप से शिक्षा के क्षेत्र में जी डी पी का 6% खर्च करने की बात कर रही है। लोगों का आरोप है 12वीं के बाद हुनरमंद बच्चों के स्थानीय स्तर पर नियोजन को लेकर है।दावा किया जा रहा है कि गरीब और वंचित तबके के बच्चे दिहाड़ी मजदूर में झोंक दिए जाएंगे। नई नीति में आरक्षण को लेकर भी सवाल किए जा रहे हैं।

मातृ भाषा के संबंध में कई लोग  सवाल उठा रहे हैं कि क्या जब बच्चा प्राथमिक कक्षाओं को पास करके आगे बढ़ेगा और उन्हें आगे की कक्षाओं में हिंदी और अंग्रेज़ी माध्यम में विषयों को पढ़ाया जाने लगेगा वे उसे सही ढंग से समझ पाएंगे या उच्च कक्षाओं में वे अंग्रेज़ी माध्यम के क्षात्रों से प्रतियोगिता कर पाएंगे ? इसके अलावा एक सवाल यह भी उठता है कि क्या स्थानीय या मातृ भाषा माध्यम में पर्याप्त  और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षण सामग्री उपलब्ध होंगे।  कुछ छात्रों का मानना है कि सरकार मौजूदा नीति को खत्म कर अमेरिकी शिक्षा पद्धति की तरफ बढ़ रही है जहां पर शिक्षा एक   और व्यवसाय है। 
शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने का फॉर्मूला क्या होगा ?  अध्यापकों की अनुपस्थिति कैसे सुनिश्चित कराई जा सकेगी। छात्रों की पसंद के स्कूलों में पढ़ने की इच्छा का सम्मान कब होगा ? महंगे निजी विद्यालयों की समस्या का समाधान कैसे और कब होगा।  ऐसे कई प्रश्न अभी अनुत्तरित है जिसका जवाब सरकार को तलाशना होगा।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लोगों के अपेक्षा के अनुरूप है या जुमला है,  ये आने वाला समय बताएगा।
 

Thursday 6 August 2020

मंदिर निर्माण से जागी उम्मीद राष्ट्र राम राज्य की ओर !!!

आख़िरकार अयोध्या में राम मंदिर का भुमि पूजन हो गया और जल्द ही मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा। इस मंदिर की प्रतीक्षा लगभग चार सौ वर्षों से भी ज्यादा से है। इस मंदिर के लिए न जाने कितने युद्ध हुए और लाखों ने अपने बलिदान दिए। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण सिर्फ मंदिर निर्माण नहीं है बल्कि भारत की संस्कृति का निर्माण है। यह एक राष्ट्र का मंदिर है जो भारतीयता के उत्कर्ष को इंगित करता है।
राम केवल हिन्दुओं के प्रतीक नहीं है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि कुछ लोग राम के प्रति उस प्रकार के आदर भाव नहीं रखते लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कोई सत्य को पहचानने से इंकार कर दे तो सत्य असत्य तो नहीं हो सकता। सच तो यह है कि इस राष्ट्र को राम के प्रति नमन करना ही होगा तभी यह राष्ट्र भारत वर्ष कहलाएगा। इंडोनेशिया जो मुस्लिम बहुल राष्ट्र है राम का आदर और सम्मान करता है तब भारतीय राम को एक स्वर में नमन क्यों नहीं कर सकते ?
राम राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय स्वाभिमान, राष्ट्रीय आदर्शों और श्रेष्ठ मानव मूल्यों के प्रतीक हैं। उनपर समस्त राष्ट्र को गौरव होना चाहिए। जो राम को राष्ट्रीय गौरव नहीं मानते उन्हें सच्चा भारतीय नहीं कहा जा सकता चाहे वह किसी भी धर्म का हो।
राम का सम्पूर्ण जीवन हमारे स्वयं के जीवन को गहराई से देखने में मदद करता है। रा का अर्थ है " प्रकाश "  और म का अर्थ है " मै " ।  अर्थात हमारे जीवन का प्रकाश। अयोध्या का अर्थ है जिस पर विजय  प्राप्त नहीं किया जा सकता। 
राम केवल राजा होते, सदाचारी होते, धर्म प्रवर्तक होते तो शायद इतिहास में इतने लंबे अंतराल को पार कर उनकी स्मृति भी अन्य राजाओं और महाराजाओं की तरह क्षीण हो चुकी होती। मात्र इतिहास बनकर रह गए होते लेकिन  राम इतिहास नहीं है वे वर्तमान है। प्रभु राम तो पुरषोत्तम हैं। उनका प्रबंध कौशल, न्यायप्रियता, जनकल्याण तुलसीदास जी की इन चौपाइयों से झलकती है -  नहीं कोई दरिद्र दुखी न दीना , नहीं कोई अबुध न लक्षण हीना...........
दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज काहू नहीं व्यापा.......

मंदिर निर्माण के साथ साथ लोगों से अपेक्षा की जाती है कि इतनी प्रतीक्षा, युद्ध, और बलिदान के बाद लोगों को प्रभु राम की रीतियों, नीतियों से सीख कर कलयुग में राम राज लाएं।  मात्र जय श्री राम का नारा नहीं बल्कि राम के बताए रास्ते पर चलने और रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने की जरूरत है।  तभी निजी तौर के साथ सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर प्रगति का मार्ग प्रशस्त होगा।  राम मंदिर निर्माण की सदियों पुरानी प्रतीक्षा पूरी होना त्रेता युग के राम की कलयुग में एक विजय है।

Sunday 2 August 2020

मित्रता बड़ा अनमोल रतन, कब उसे तोल सकता है धन? - दिनकर #FriendshipDay2020

वैसे तो हर दिन दोस्त्तो के लिए होता है लेकिन पूरे विश्व में आज के दिन दोस्त्तो और दोस्त्ती के लिए समर्पित कििया जाता है। ऐसे लोग अपने जीवन में मित्रों को महत्व देते हैं।
मित्र शब्द अपने आप में व्यापक आनंदमय और गंभीर है। मित्रता धन की तरह हैं जिसे आसानी से कमा तो सकते हैं परन्तु निरंतर सुरक्षित रखना कठिन है। सच्चा दोस्त कभी भी अपने मित्र को बुरे समय में, कठिनाई और परेशानी के वक़्त अकेले नहीं होने देते। सच्चे दोस्त को उचित समझ, संतोष और विश्वास की जरूरत है। सच्चा दोस्त कभी शोषण नहीं करता बल्कि एक दूसरे को जीवन में सही काम और मदद करने के लिए प्रेरित करता है।
सुकरात के शब्द है " मित्रता करने में शीघ्रता नहीं करो परन्तु जो मित्रता करो तो अंत तक निभाओ।"  मित्रता में व्यवहार और प्रतिमान होना चाहिए। नितिकारों ने सच्चे मित्र के कई लक्षण बताएं हैं। जैसे मित्र अपने साथी को गलत कम करने से रोकता है उसे हितकर कार्यों को अंजाम देने के लिए प्रेरित करता है उसकी गुप्त बातें किसी को नहीं बताता। इतिहास सच्चे मित्रों से भरा पड़ा है।  जैसे राम और सुग्रीव की मित्रता, कृष्ण और सुदामा की मित्रता, कृष्ण और अर्जुन की मित्रता इत्यादि।
लेकिन व्यक्ति के साथ मित्रता करना ऐसे है जैसे कि पानी पर रेखा खींचना। ऐसी मित्रता निरर्थक और क्षण भंगुर होती है। अज्ञानी और स्वार्थी की मित्रता खतरनाक होती है। स्वार्थी व्यक्ति की मित्रता छाया की भांति है। प्रकाश में छाया साथ चलता है किन्तु अंधकार होते ही गायब हो जाता है। मूर्ख और स्वार्थी मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा।


Friday 31 July 2020

मुंशी प्रेमचंद को सच्ची श्रद्धांजली

आज करोना काल में दुनिया जितनी विचारवान है मेरी जानकारी में पहले कभी नहीं थी। राजनैतिक,सामाजिक एवं आर्थिक सबकुछ इस करोना ने बदल दिया है।
वर्तमान समय हमारे सामने बहुत सी  समस्याएं लेकर आई है। सारी दुनिया के लेखकों, कवियों को आगे आना चाहिए क्योंकि सभी लोग एक दूसरे की समस्याओं से परिचित हैं। कहानी और कविताओं के जरिए लोगों में हिम्मत, आत्मविश्वास एवं नई चेतनाओं को जगाने की जरूरत है। आज लेखक एवं कवि की जिम्मेदारी बढ़ गई है क्योंकि लेखक और कवियों ने हमेशा अपने कलम से समाज में चेतना को जगाया है। इसलिए आज विज्ञान और राजनीति से मायूस दुनिया की नज़रें लेखक और कवि की तरफ है।

आज मुंशी प्रेमचंद की जयंती है।  ईदगाह, शतरंज के खिलाड़ी, नमक का दारोगा, कर्मभूमि जैसे उपन्यास लिखने वाले प्रेमचंद जी आज २१ वीं शताब्दी में भी लोगों के दिल में बसते हैं।  प्रेमचंद, दिनकर जैसे लोगों ने अपने कलम से समाज को बदल दिया। वर्तमान परिस्थिति में लोगों में स्फूर्ति,साहस, विश्वास को जगाना ही प्रेमचंद जी को सच्ची श्रद्धांजली होगी।

Tuesday 28 July 2020

वक़्त है भारत खुद को महाशक्ति के रूप में सोचे

वक़्त है भारत खुद को महाशक्ति की तरह सोचे।
-------------+-----------+----------+-----------------
मै अपने देश के प्रति समर्पित हूं किसी सरकार के प्रति मेरी निष्ठा नहीं बंधी है। सरकार किसी दल की हो उसके काम पर प्रशंसा और आलोचना की जानी चाहिए। सरकार की गलत निर्णय एवं नीतियों का विरोध भी होना चाहिए। लेकिन अच्छी नीति का  विरोध नहीं होना चाहिए।

प्रधान मंत्री मोदी ने अनेक साहसिक निर्णय लिया है जैसे जम्मू काश्मीर एवं लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाना, आर्टिकल ३७० हटाना, पाकिस्तान एवं मयनमार में सर्जिकल स्ट्राइक करना, सी ए ए  लगाना इत्यादि। लेकिन चीन के मामले में नरेंद्र  मोदी  का वह साहस नहीं दिख रहा है जिसकी जनता को अपेक्षा थी। भारत उसकी कूटनीति और आर्थिक ताकत को लेकर आशंकित है जिसकी वजह से टकराव के बजाय समझौते की पहल कर रहा है। प्रतीकात्मक रूप से कुछ चाइनीज ऐप्स को प्रतिबंधित कर सरकार ने अपनी इज्जत बचाई है। भाजपा ही नहीं  अब तक की सारी सरकारों का चीन के प्रति ऐसा ही रुख रहा है। चीन संजुक्त राष्ट्र संघ में काश्मीर का मुद्दा उठाता रहा है। चीन परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह एन एस जी में भारत का रास्ता रोक हुए है। लेकिन भारत  की सरकारें  कभी किसी बहुपक्षीय मंच पर चीन को लेकर सवाल नहीं उठाए। चीन में मुसलमानों की स्थिति को लेकर भारत सवाल उठा सकता है। इससे भारत को  मुस्लिम देशों का समर्थन मिल सकता है।
लेकिन मालूम नहीं क्यों भारत सरकार ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती जिससे चीन नाराज़ हो जाए। ऐसा प्रतीत होता है जैसे दलाई लामा की राजनीतिक गतिविधियां बंद करा दी गई है। प्रधान मंत्री मोदी द्वारा दलाई लामा की जन्मदिन के अवसर पर बधाई संदेश का ट्विटर आदि पर  नहीं दिखना  आश्चर्य की बात है। बाजपेई सरकार ने  भी तिब्बत को चीन का हिस्सा माना था।  गलवान घाटी वाली घटना के बाद व्हाट्सएप पर "  बॉयकॉट चीन " के नारों  से भर गया था।  लेकिन कुछ  ही हफ्ते में सारे नारे गायब हो गए।  कहीं ऐसा तो नहीं  भाजपा के कार्यकर्ता को ऐसा करने से  रोका गया हो।  
क्या हमे चीन से खौफ है।  वक़्त  आ गया है भारत खुद को महाशक्ति की तरह सोचे। गलवान घाटी के हादसे ने भी यही साबित किया है कि भले ही आज का भारत  १९६२ जैसा नहीं है पर यह सच है कि चीन की चुनौतियों से पूरी तरह से निपटने मै उम्मीद के रूप में कामयाब नहीं है।  इस स्थिति को बदलने की आवश्यकता है।  हमे अपने देश की अर्थतंत्र को  मजबूत करना होगा।  आज अधिकतर देश सेना से ज्यादा आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में लगे हुए हैं। हमे हर हाल में आत्मनिर्भर बनना होगा। हमे चीन और अमेरिका  दोनों पर आर्थिक निर्भरता कम करनी होगी। हमे अपनी परंपरागत उद्योग धंधों को फिर से खड़ा करना होगा। हमे ऐसा माहौल बनाना होगा जिससे प्रतिभाओं का पलायन नहीं हो। भारत के लिए यह सुअवसर है कि अपनी अंदरुनी ढांचे और कौशल को  दुरुस्त करे और महाशक्ति बने। 

चीन भारत  को युद्ध में ऊलझा कर उसी तरह महाशक्ति बनने में अवरोध खड़े कर रहा है जिस प्रकार सन् १९५०-६० के दशक में अमेरका ने चीन को युद्ध में उलझाए  रखा था। अंततः चीन मजबूर होकर अमेरिका का बाज़ार बन गया था।  अब चीन भारत को अपना बाज़ार बनाकर पूर्व की अमेरिकी नीति की पुनरावृत्ति करना चाह रहा है। इससे भारत को बचना होगा।  

Saturday 18 July 2020

पर्यावरण को जन आन्दोलन बनाना ज़रूरी

कहीं आग लगती है तो मुहल्ले के सभी लोग दौड़ते है। कोई बालटियों में पानी लेकर दौड़ता है तो कोई धूल मिट्टी फेंकता है।सभी लोग कुछ न कुछ करते हैं जिससे आग पर जल्द से जल्द क़ाबू की जाए।ऐसा तो नहीं होता कि सभी हाँथों को बाँध कर फ़ायर ब्रिगेड की इंतज़ार करते हैं।
इसी प्रकार पर्यावरण को बचाने के लिए हम सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों के ही भरोसे कैसे रह सकते हैं। जलवायु बदल रही है तो इसमें हम क्या करें,  हमने थोड़े ही न तापमान बढ़ाया है। ये सब तो सरकारों का काम है। पूरे दूनिया में तापमान बढ़ रहा है मेरे सिर्फ़ अकेले से क्या होगा ? ऐसे सोच से बचना चाहिए। स्वार्थपूर्ण प्रवृति वाले ये बोल अक्सर सुनने को मिलता है लेकिन यह नुक़सानदेह है। एक एक व्यक्ति को पर्यावरण बचाने के लिए आगे आना चाहिए। हमें यह समझना ज़रूरी है कि सब कुछ सरकारें नहीं कर सकतीं हमारी भी ज़िम्मेवारी बनती है।
बारिश की बूँदों को संजोकर रखना, नदी, समुद्र में पौलिथिन, प्लास्टिक को नहीं फेंकना, सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करना, पेड़ों को लगाना, सिंगल यूज़ प्लास्टिक को इस्तेमाल नहीं करना इत्यादि काम प्रत्येक व्यक्ति का है। गाँव ख़ाली हो रहे हैं और शहरों में रहने की जगह नहीं है। यह असंतुलन हमलोग ख़ुद बढ़ा रहे हैं। अतः सभी को असंतुलन से पैदा ऊँच नीच का ज्ञान आवश्यक है। प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक, आदि समस्याओं का संरक्षण तभी संभव होगा जब पर्यावरण सम्बन्धी जनचेतना होगी। अशुद्ध वातावरण से मानव का विनाश अवश्यमभावी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि शीघ्र ही यदि प्रकृति का संतुलन क़ायम न किया गया तो हमें औक्सीजन गैस के सिलिंडर साथ लेकर जीवन के लिए भटकना होगा। मानव को जितनी औक्सीजन की आवश्यकता होती है उसका लगभग आधा भाग सूर्य से प्राप्त होता है। किंतु प्रकृति के असंतुलन के फलस्वरूप हमें वह लाभ नहीं मिल पा रहा है। गाड़ियों और अन्य प्रकार के ध्वनि प्रदूषण से दिल की रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। रासायनिक खाद व अन्य रासायनिक तत्वों के पानी में घुलमिल जाने से जल हानिकारक होता जा रहा है। व्यक्ति के चारों ओर जो कुछ भी है पर्यावरण के अंतर्गत है। इस पर्यावरण ने सारी सृष्टि को सदियों से बचाए रखा है। यदि हम स्वयं  को या समस्त सृष्टि को बचाए रखना चाहते हैं तो पर्यावरण को सरकार के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए। भारत सरकार ने क्लायीमेट  चेंज की चुनौतियों को प्राथमिकता दी है। पिछले पाँच साल में भारत ने 38 मिलियन कार्बन उत्सर्जन कम किया है। सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का अभियान चलाया गया है। फिर भी अभी सरकार के सामने बहुत से पर्यावरण सम्बन्धी चुनौतियाँ हैं जिसे करना बाक़ी है। बरहाल जो काम सरकारों का है वह करती रहेगी लेकिन यह धरती हमारी है इसे बचाना हमारी ज़िम्मेवारी है। ज़रूरी है कि हम भी अपनी सामुदायिक व व्यक्तिगत भूमिका का आँकलन करें और उन्हें अपनी आदत बनाए। हमें पूरी ईमानदारी से पर्यावरण के सुधार में जुट जाना चाहिए जिससे क़ुदरत के घरौंदे बच जाए। पर्यावरण के लिए मूलमंत्र एक ही है “ क़ुदरत से जितना और जैसे लें उसे कम से कम उतना और वैसा लौटाएँ “।
चित्र : सौजन्य गूगल

Wednesday 15 July 2020

अगला प्रधान मंत्री कौन ?

मुझे नितिन गड़करी से मिलने का अवसर फ़िक्की ( FICCI ) के एक कार्यक्रम के दौरान मिला था। उनके द्वारा दिए गए भाषण से बहुत प्रभावित हुआ था। भाषण के बाद वहाँ लगाए गए विभिन्न स्टालों का मुआयना के वक़्त मैं भी उनके साथ था। जिस प्रकार वह आइ॰आइ॰टी॰ मुंबई और दूसरे स्टाल पर उनके उत्पादों पर चर्चा करते हुए सुझाव दे रहे थे मैं हैरान था। आम तौर पर लोगों पर राजनीतिज्ञ की अवधारणा ग़लत बनी हुई है लेकिन गड़करी एक समझदार, जानकार और सुलझे हुए व्यक्ति हैं। उनके पास ऐसे कई योजनाएँ हैं जो कार्यान्वित हो जाए तो देश से ग़रीबी, बेरोज़गारी दूर हो जाएगी।
केंद्रीय मंत्री के तौर पर नितिन गड़करी सड़क परिवहन मंत्रालय एवं MSME मंत्रालय संभाल रहे हैं।देश में सड़क बनाने वाले मंत्री से भी जाने जाते हैं। छोटे और मध्यम उद्योग दोनो सम्भालते हैं।लक्ष्य निर्धारित करते हैं फिर अफ़सरों के साथ मिलकर निर्धारित समय में कार्यान्वित करते हैं।  वह अपनी बातों को सीधा,सरल और आँकड़ों में लोगों को समझते हैं। उन्होंने MSME पर अपना ध्यान केंद्रित करने का कारण बताया। उन्होंने बताया कि MSME से देश में 28 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि होती है तथा 49 प्रतिशत का निर्यात होता है। इससे 11 करोड़ रोज़गार का सृजन होता है। उन्होंने अपने कार्यकाल में सड़कों की जाल बिछा दी। देश की सबसे पहली बनी मुंबई पुणे एक्सप्रेस हाईवे गड़करी की देन है। उनका लक्ष्य था 40 कि॰मी॰ प्रतिदिन सड़क बनाने का जो आज 32 कि॰मी॰ तक पहुँच गया है। उन्होंने हमेशा इस बात पर बल दिया है कि ग्रामीण क्षेत्र एवं वनीय क्षेत्र में कुटीर उद्योग उद्योग लगे और उन उत्पादों को निर्यात हो। इसलिए उनका प्रयास रहा है कि सड़के उन्ही क्षेत्र में बने जिससे आवागमन की अच्छी सुविधा मिल सके। इसका उदाहरण नयी निर्मणधिन दिल्ली मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग है।
उनके पास कमाल के योजनाएँ होतीं हैं जो हैरान करतीं हैं।उन्होंने वैकल्पिक ईंधन बायोडीज़ल को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया जिससे ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम हो। बिजली से चलने वाली गाड़ियों को देश में अनिवार्य करना इनकी प्राथमिकता है। उनका भारत में बिजली से चलने वाली गाड़ियों के निर्माण का हब बनाने की योजना है। गंगा नदी में मालवाहक जहाज़ का चलाना उन्होंने शुरू की जिससे समय और ईंधन की बचत होती है। 
नरेंद्र मोदी वर्ष 2024 तक प्रधान मंत्री रहेंगे इसमें कोई शक नहीं। लेकिन 2024 के चुनाव के बाद उनका प्रधान मंत्री बने रहना मुश्किल हो सकता है जिसका कारण ढलती उम्र होगी। उसके बाद भाजपा का नेतृत्व कौन करेगा यह बहुत बड़ा सवाल भाजपा और संघ के सामने होगा। भाजपा के पास दो विकल्प होंगे नितिन गड़करी और अमित शाह। दोनो की उम्र कम और अपनी विशिष्टता है। आज अमित शाह की लोकप्रियता ज़्यादा हो सकती है लेकिन यह ज़्यादा दिनों तक रहेगी इसमें शक है।
इस बात से शायद ही किसी का मतभेद हो कि गड़करी के व्यक्तित्व के गुणों में विशिष्ट उदारता के गुण की तरफ़ लोगों का आकर्षण रहा है। गड़करी और शाह ने शुरू से ही राजनैतिक जीवन संघ में ही बिताया। इसके बावजूद गड़करी की छवि एक उदार नेता की है। गड़करी को कभी भी जुमले देते नहीं सुना। जबकि आज सरेआम कोई बयान देकर उसे झूठलाने की राजनैतिक शैली भारतीय राजनीति में हद दर्जे तक परवान बढ़ चुकी है। अंत में मैं यह कह सकता हूँ कि नितिन गड़करी की तरह जानकार और सूझ बुझ वाले नेता भारतीय राजनीति में कम हैं।

Saturday 11 July 2020

जनसंख्या वृद्धि चुनौती भी अवसर भी

विश्व जनसंख्या दिवस पर 
पूरे विश्व में बढ़ती आबादी को देखते हुए 11 जुलाई 1989 से जनसंख्या को नियंत्रित करने के उद्देश्य से “ विश्व जनसंख्या दिवस “ मनाने की शुरुआत हुई। इस दिन बढ़ती जनसंख्या से होने वाले परिणामों पर प्रकाश डाला जाता है। 
आज विश्व की कुल आबादी सात अरब से ज़्यादा है जिनमे सबसे ज़्यादा चीन और दूसरे स्थान पर भारत है। बढ़ती जनसंख्या इतनी बड़ी समस्या है जिसका अनुमान लगाना मुश्किल है। किसी देश की जनसंख्या जितनी ज़्यादा होगी उस देश की प्राकृतिक संसाधनों और श्रोतों की ज़्यादा ज़रूरत होगी। अबाध रूप से बढ़ती जनसंख्या और उस गति से समाफ़्त होती प्राकृतिक सम्पदाएँ और संसाधन हमारे विनाश के सूचक हैं। जनसंख्या बढ़ने से शहरीकरण के प्रयत्नों के फलस्वरूप वनों एवं वनस्पति क्षेत्रों की संख्या में कमी आ रही है।इस शहरीकरण की बढ़ने न देना और बढ़ती जनसंख्या को रोकना भी आवश्यक है अन्यथा हमारा पर्यावरण संतुलन एक दिन बुरी तरह से चरमरा जाएगा।
अधिकांश देशों में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के चलते ग़रीबी बेकारी बढ़ने के साथ अन्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। हालाँकि देश की संसाधनों में भी बढ़ोतरी होती है। लेकिन जनसंख्या वृद्धि दर की तुलना में वह अपेक्षाकृत नहीं बढ़ पाती। इससे कुछ समय बाद असंतुलन की स्थिति पैदा होती है। आज सर्वविदित है कि भारत में जनसंख्या एक भयानक रूप ले चुकी है जिससे विभिन्न धार्मिक जनसंख्या अनुपात निरंतर असंतुलित हो रहा है। चीन ने इस समस्या को भाँप लिया था। इस लिए कई दशक पहले उसने एक बच्चे से अधिक पैदा करने पर कई तरह के दंड लगा दिए थे जिससे बहुत हद तक नियंत्रित करने में सफल रहा ।
सात अरब की आबादी वाले भारत विश्व में 1.3 अरब जनसंख्या के साथ दूसरे स्थान पर आता है और देश की तमाम समस्याओं के साथ जनसंख्या भी एक गम्भीर समस्या है।
दिनोंदिन तेज़ी से बढ़ती हुई जनसंख्या हमारे व्यक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय जीवन के लिए गम्भीर समस्या बनती जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है यदि इसपर नियंत्रण नहीं किया गया तो हमारी विकास की योजनाएँ धरी रह जाएँगी। व्यक्ति का जीवन स्तर भी उँचा नहीं उठ पाएगा।अभी भी हमारे यहाँ बहुत लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता। अगर मिल भी जाता है तो उसमें पौष्टिकता नहीं रहता। अभी भी हमें विदेशों से अन्न मंगाना पड़ता है जिसका कारण है तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या।

इस बढ़ती जनसंख्या के कई कारण है जैसे मृत्यु दर के मुक़ाबले जन्म दर की अधिकता, परिवार नियोजन की कमी, धार्मिक रूढ़िवादिता, कम उम्र में शादी, ग़रीबी, शिक्षा की कमी इत्यादि।
इसका दुष्परिणाम  देश पर पड़ता है जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर दवाब, ग़रीबी में बढ़ोतरी, पलायन की मजबूरी, अमीर ग़रीब का अंतर इत्यादि।
ऐसा नहीं है कि इसका समाधान नहीं है। इसका समाधान है जैसे परिवार नियोजन, अधिक उम्र में शादी, महिलाओं का सशक्तिकरण, प्राथमिक स्वास्थ्य में सुधार, शिक्षा में सुधार, जागरूकता फैलाकर इत्यादि।
लेकिन इन सब समस्याओं के बावजूद भारत में यही बढ़ती जनसंख्या को अवसर के रूप में भी देखा जा सकता है। कुछ दशक पहले तक जो लोग आबादी को समस्या मानते रहे हैं आज वे अपनी सोच को बदल रहे हैं। हमारे देश की बड़ी आबादी हमारा बड़ा संसाधन बन चुकी है।दूनिया में भारतीय आबादी की हिस्सेदारी अट्ठारह फ़ीसदी है। वह बड़ी उत्पादक है तो बड़े उपभोक्ता के रूप में भी घरेलू खपत को बढ़ा रही है। इस आबादी के बूते अधिकांश देशों की अर्थव्यव्स्था कुलाँचे  भर रही है। यह 91 फ़ीसद आबादी 59 साल से कम उम्र की है। जहाँ दूनिया के अधिकांश देश बीमार और अपेक्षाकृत अधिक बुज़ुर्ग आबादी के बोझ से दबे हैं वहीं हमारे पास युवा और कार्यशील मानव संसाधन का ज़ख़ीरा है। एक रिपोर्ट के अनुसार 10 से 24 आयु वर्ग के भारतीय आबादी में 28 फ़ीसद है। यह देश की असली सम्पदा हैं। इसके बूते भारत आर्थिक कुलाँचे भर सकेगा।ज़रूरत सिर्फ़ इन युवाओं की बेहतर शिक्षा, स्वस्थ में निवेश करने की और उनके अधिकारों को संरक्षित किए जाने की है। यह युवा आबादी ही भविष्य की आविष्कारक, सृजनकर्ता, निर्माता और नेता हैं। लेकिन वे भविष्य तभी बदल सकते हैं जब उनके पास हूनर होगा, कौशल होगा, वे स्वस्थ होंगे, निर्णय ले सकेंगे और जीवन में अपनी रुचि की आगे बढ़ा सकेंगे।
हर चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है। ज़रूरत है राह दीखाने वाले की , एक कुशल नेतृत्व की।

अपराध का राजनीति करण या राजनीति का अपराधी करण

राजनीति का अपराधिकरण या अपराध का रजनीतिकरण
कानपुर में पिछले हफ़्ते आठ पुलिसकर्मी  को बेरहमी से हत्या करने वाले विकास दूबे पुलिस इनकाउंटर में मारा गया। पिछले दो दिनों में उसके कई साथियों को भी पुलिस द्वारा मार दिया गया या पकड़ लिया गया। उसकी दीदादिलेरी इस सीमा तक पहुँच गयी थी कि गिरफ़्तारी के लिए आ रही पुलिस दल को उसने पूरी तैयारी से घेर कर उनपर हमला किया जिसमें आठ पुलिसकर्मियों की घटनास्थल पर मौत हो गई और कई घायल होकर अस्पताल में है। जघन्यतम अपराधों के दसियों मामले दर्ज होने के बावजूद विकास दूबे का नाम पुलिस ने कानपुर के शीर्ष दस वांछित अपराधियों की सूची में नहीं डाला गया था। वर्ष 2001 में एक थाने में ही एक नेता की हत्या करने के बावजूद वह बरी हो गया था।क्योंकि उस थाने में मौजूद सभी पुलिसकर्मी गवाही में मुकर गए थे। विकास दूबे का इतना रसूक था कि कानपुर जिले में लोग उसके ख़िलाफ़ बोलने में डरते थे। वहाँ के थाने के पुलिसकर्मी उसके पास या तो मर्ज़ी से या मजबूरी में उसके पास चाय पीने आते थे और उसके आदेशों का पालन करते थे। उसकी सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ उठना बैठना था। हमारे नेता जनता से कम दबंगों के ज़्यादा क़रीब होते हैं। यही नेता इन्हें कारावास से निकलवाने में मदद करते हैं। ये नेता एक साधारण व्यक्ति को गैंगस्टर बनाते हैं। पुलिस-राजनीति-अपराध की पैदाईश है अपराधी। पुलिसकर्मियों को मारने वालों को मार दिया गया लेकिन उसे संरक्षण देने वाले कब  पकड़े जाएँगे यह बहुत बड़ा सवाल है।
आज समाज में पुलिस की छवि बनी है उसके लिए पुलिस ख़ुद ज़िम्मेवार है। आज आम आदमी जितना अपराधियों से डर लगता है उतना ही डर पुलिस से भी है। पुलिस जनता की सहयोगी होने के अपनी दायित्व को भुला दिया है। पुलिस को जैन सेवक बनना चाहिए। पुलिसकर्मी ये भूल जाते हैं कि उनका कर्तव्य सामान्य जन की सुरक्षा प्रदान करना है न कि नेताओं का महिमामंडन करना। पुलिस को आम आदमी की सुरक्षा के प्रति गहरा सम्मान होना चाहिए। पुलिस की प्रतिबद्धता किसी व्यक्ति अथवा राजनीति दलों के प्रति नहीं हो सकती।
जन सुरक्षा  के लिए बनी पुलिस ऐसा लगता है कि जैसे उसे जन से कोई लगाव नहीं है बल्कि वे नेताओं और दबंगों की सुरक्षा में अपना वक़्त देते हैं। नेता पुलिस का प्रयोग अपने तरीक़े से करते हैं। ये नेता पुलिस व उसके विभिन्न संगठन अपने स्वार्थ के लिए तोड़ मरोड़ करते हैं। पुलिस को कमज़ोर कर नेताओं ने गुंडों एवं दबंगों की शक्ति का विकास किया। उन्हें माननीय बनाने में सहयोग किया। इसलिए कहा जा सकता है राजनीतिक सत्ता का चरित्र नहीं बदला तो नौकरशाही या पुलिस कैसे बदलेगी ?
पुलिस सुधार आज़ादी के बाद से ही करने की आवश्यकता थी। एक मज़बूत समाज अपनी पुलिस की इज़्ज़त करता है उसे सहयोग देता है वहीं एक कमज़ोर समाज अपनी पुलिस को अविश्वास से देखता है और प्रायः उसे अपने विरोध में खड़ा पाता है। अधिनायक प्रवृति का परिणाम है राजनीति का अपराधिकरण या अपराध का राजनीतिकरण जिसके कारण पुलिस व उसके सहयोगी विभागों में प्रभुत्व अनावश्यक रूप से बढ़ रहा है। यह स्पष्ट है कि आज अपराध को राजनीतिक संरक्षण पाने में कठिनाई नहीं होती और दूसरी ओर अपराध करने की स्वयं पुलिस की बढ़ती जा रही है क्योंकि संवेदनशीलता समाप्त होती जा रही है और उसकी क्रूरता से बेशर्मी बढ़ रही है। तभी हिंसा का विस्तार हो रहा है क्योंकि उसमें असामाजिक तत्वों के अतिरिक्त शासन का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
लोकतंत्र में जनता का वोट ही सब कुछ है। सत्ताधारी द्वारा पुलिस प्रमुख यानि डी॰ जी॰ बुलाए जाते हैं और उनसे कहा जाता है “ ऐसे काम नहीं चलेगा डी॰जी॰साहेब हमें जनता के पास वोट माँगने जाना पड़ेगा। कैसे करेंगे? क्या करेंगे? आप जाने और आपका काम। यही बात डी॰जी॰ अपने आइ॰जी॰ और डी॰आइ॰जी॰ को कहता है । फिर आइ॰जी॰ और डी॰आइ॰जी॰ यही बात अपने एस॰एस॰पी॰ और एस॰पी॰ को पुलिसीया अन्दाज़ में कहता हैं फिर एस॰एस॰पी॰ और एस॰पी॰ थानाध्यक्षों को कहता है और अंत में थानाध्यक्ष करता है तो ठीक नहीं तो लाइन हाज़िर ।
क़ानून एवं व्यवस्था की स्थिति आज इस हालत में पहुँच गयी है कि धीरे धीरे क़ानून ग़ायब होता जा रहा है। बस व्यवस्था बनी हुई है जिसे बचाना मजबूरी है। अभियुक्तों को ज़मानत या अग्रिम ज़मानत देर सवेर मिल ही जाती है और ट्रायल तो अभियुक्तों की मर्ज़ी से चलता है। प्रक्रिया की जाल में क़ानून इतना उलझ जाता है कि उससे निकलकर न्याय हासिल करने में दशकों लग जाते हैं। जब मामला लम्बा खिंचता है तो अक्सर न्याय अभियुक्तों के पक्ष में जाने का अंदेशा रहता है। अभियुक्त लोगों को गोली मारता है, फिरौती लेता है, ज़मीन हड़पता है इससे इसकी सम्पत्ति इतनी बढ़ जाती है जिससे इन्हें लगने लगता है कि दूनिया इनकी मुट्ठी में है।प्रायः ये हड़पी हुई सम्पत्ति के बदौलत सरपंच/मुखिया,पार्षद,विधायक, सांसद यहाँ तक कि मंत्री भी बन जाते हैं। किसी क़ानूनी प्रक्रिया के दाँव पेंच के के चलते 18-20 वर्षों तक मुक़दमा लम्बित रहता है। सारी परिस्थितियाँ जब हर तरह से अनुकूल हो जातीं हैं तो वह बाइज़्ज़त बरी हो जाता है और फिर माननीय भी बन जाता है।गवाह डर और लालच के कारण अदालत में मुकर जाते हैं। न्यायालय को साक्ष्य चाहिए।

पुलिस सुधार बहुत ज़रूरी है। लेकिन जबतक न्यायिक सुधार प्रशासनिक सुधार और चुनावी सुधार नहीं होते तब तक क़ानून एवं व्यवस्था में कोई सुधार नहीं होने वाला। 
क़ानून एवं व्यवस्था के मामले में समग्रता से अत्यंत गहन विचार की आवश्यकता है। सारी समस्या का समाधान मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति में ही निहित है।-न्यायशास्त्र की सदियों पुरानी परिभाषा को बदलना अत्यंत आवश्यक है।

Sunday 5 July 2020

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोच्च। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर

भारतीय संस्कृति में गुरु का पद सर्वोच्च माना गया है।शास्त्रों में गुरु को ब्रह्म, विष्णु एवं महेश के तुल्य कहा गया है। बल्कि कई लोगों ने इनसे भी अधिक महत्व दिया है। कबीर कहते हैं कि भगवान और गुरु दोनो साथ मिले तो पहले गुरु के चरणों में समर्पित हो जाना चाहिए।परंतु गुरु ऐसा नहीं मानते। प्रथम स्तर पर गुरु बालक को शिक्षा देकर इस योग्य बनाता है कि वह अपने कर्म क्षेत्र में सफल हो सके। द्वितीय स्तर पर गुरु अपने शिष्य के अंतर्मन में व्याप्त अंधकार और विकारों को नष्ट कर प्रकाश की अनुभूति कराता है। यहाँ अंधकार से मेरा तात्पर्य अज्ञान और अविद्या से है तथा प्रकाश का तात्पर्य ज्ञान से है।

 गुरु केवल व्यक्ति नहीं है बल्कि एक तत्व है और वह तत्व किसी भी अवस्था में या रूप में हो सकता है। व्यावहारिक भाषा में हम कह सकते हैं कि गुरु तब तक हैं जब तक कोई स्वार्थ या प्रलोभन न जुड़ा हो।
गुरु का वास्तविक अर्थ जीवन में गुरुता यानि उसे गहराई प्रदान करने वाले व्यक्ति से होता है। सच्चा गुरु वही है जो अपने शिष्य को जीवन में सच्ची राह पर चलने की प्रेरित करे। सभी शास्त्र  हमें शिक्षा देते हैं कि हमें एक गुरु की खोज करनी चाहिए। गुरु शब्द का अर्थ है भारी या जिसमें गुरुता हो।जिसको अधिक ज्ञान हो, वह ज्ञान से भारी हो। इसी विशेषता के आधार पर किसी को योग्य गुरु मानना चाहिए और किसी व्यक्ति को यह नहीं सोचना चाहिए कि मैं सबकुछ जानता हूँ। मुझे कौन शिक्षा दे सकता है ?
प्राचीन काल में बालक को प्रारम्भ से ही गुरुकुल में भेजने की व्यवस्था थी। वहाँ उसे पढ़ाई के साथ तुच्छ सेवक के समान कार्य करना होता था। वह बालक महान राजा या ब्राह्मण का पुत्र क्यों न हो इससे कोई अंतर नहीं पड़ता था। जब तक वह गुरुकुल में रहता था वह तत्काल गुरु का नगण्य सेवक ही रहता था। यदि गुरु अपने शिष्य से छोटे से छोटे काम करने को कहते उसे करने लिए  शिष्य हमेशा तैयार रहते थे। महाभारत, रामायण में गुरुकुल एवं गुरु का विशेष उल्लेख किया गया है। भारतीय संस्कृति में गुरु - शिष्य के सम्बंध को अत्यंत पावन माना गया है। गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए प्राचीन शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु साक्षात परब्रह्म का स्वरूप है। इसलिए हमें ईश्वर से पहले गुरु की वंदना करनी चाहिए।
          गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वर
          गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे    नमः।
जीवन में प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। गुरु वही है जिसे देखकर मन प्रणाम करे जिसके समीप बैठने से हमारे दुर्गुण दूर होते हैं। गुरु के सान्निध्य से जीवन की दिशा और दशा दोनो बदल जाती है। अपनी विलक्षण प्रतिभा और ओजस्वी वाणी के द्वारा भारत की संस्कृति का परचम सम्पूर्ण विश्व में लहराने वाले स्वामी विवेकानंद को जब गुरु रामकृष्ण परमहंस का वरदहस्त मिला तब वह नरेंद्र नाथ से स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। गुरु द्रोणाचार्य की शिक्षा, प्रेरणा और आशीर्वाद ने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में प्रतिष्ठित किया। गोस्वामी तुलसीदास “ हनुमान चालीसा “ में हनुमान जी से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि गुरुदेव की तरह मुझ पर कृपा करें “ जय जय हनुमान गोसाई, कृपा करो गुरुदेव की नाई “

गुरु शिष्य को अंगुली पकड़ कर नहीं चलाता बल्कि उसके मार्ग को प्रकाशित करता है। शिष्य को स्वयं ही उस मार्ग पर चलना होता है। सारे संसार में यह गुरुत्व प्राप्त है। वह प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रत्येक दिन तथा प्रत्येक देश में प्राप्त होता है। केवल शिष्य को खोजी होना चाहिए। उसके अंतःकरन में वह ललक विद्यमान होनी चाहिए कि उसे गुरु मिले। बिना गुरु के संसार रूपी सागर से सम्भव नहीं चाहे वह ब्रह्मा हो अथवा शंकर ही क्यों न हो। श्री राम और श्री कृष्ण साक्षात ईश्वर ईश्वर माने गए हैं किंतु जब वे अवतार लेकर इस धरती पर आए तब वह भी गुरु का ही वरण करते हैं।
वास्तव में जिसके समक्ष जा कर हमारे हृदय में आस्था, विश्वास,तथा प्रेम का उदय हो जाए वस्तुतः वही हमारा गुरु है। वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों में निरंतर गिरावट आती जा रही है। गुरु- शिष्य के पवित्र सम्बन्धों पर पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है। समाज में आवश्यकता है ऐसे गुरुओं की जो दया, क्षमा, सदाचार इत्यादि मानवीय मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए धैर्य, विवेक और त्याग जैसे गुणों से शिष्य को अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले चले।
सदगुरु की तलाश शिष्य को ही नहीं होती बल्कि गुरु भी अपने ज्ञान की धरोहर को सुरक्षित हाँथों में सौंपकर संतुष्ट होकर परमानंद की अनुभूति करता है। गुरु ऐसे शिष्य को मात्र एक बीज देता है और शिष्य भूमि बनाकर उस बीज को अंकुरित करता है। इस प्रकार सच्चा गुरु शिष्य को सही मार्ग निर्देशित करके उसके जीवन मार्ग को प्रशस्त करता है।

Tuesday 30 June 2020

भारत चीन विवाद में दलाई लामा खामोश क्यों ?

प्रशांत सिन्हा तिब्बत के निर्वासित प्रधान मंत्री श्री लोबसांग सांगे के साथ
भारत-चीन सीमा पर तनाव है। भारत और चीन के सैनिक आमने सामने आने वाले हैं। दोनो देशों की सरकारें अपने अपने सैनिकों को युद्ध की तैयारियाँ करने के लिए कहा है। चीन की सेना भारत की सीमा के अंदर आने के बाद बातचीत के बावजूद वापस नहीं जा रही है। चीन को भारत द्वारा बनाए गए अपनी ही सीमा के अंदर डोकलाम में बने सड़क से ऐतराज़ है। डोकलाम के पास चीन, भूटान, और सिक्किम की सीमाएँ मिलती हैं। इसलिए चीन इस स्थान को अपने लिए महत्वपूर्ण मानता है। लेकिन चीन भूल गया है कि आज का भारत 1962 वाला भारत नहीं है। भारत अपनी ज़मीन का एक इंच हिस्सा भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। 
भारत का साथ दूसरे देश भी दे रहे हैं किंतु हैरानी की बात है कि चीन की रवैए पर तिब्बत के आध्यात्मिक नेता श्री दलाई लामा ने कोई भी वक्तव्य नहीं दिया। देश के हर हिस्से में चीन का विरोध हो रहा है लेकिन दलाई लामा एवं भारत में बड़ी संख्या में रहने वाले तिब्बती समुदाय के लोग न चीन का विरोध कर रहे हैं और न कुछ बोल रहे हैं।
मुझे पूरी उम्मीद थी कि तिब्बती समुदाय के लोग भारतियों के साथ मिलकर विरोध करेंगे। लाखों तिब्बती पिछले साठ से भी अधिक वर्षों से भारत में रहते आ रहे हैं। क़रीब चार साल पहले मेरी मुलाक़ात तिब्बत के निर्वासित सरकार के प्रधान मंत्री लोबसांग साँगे से दिल्ली के गांधी शान्ति प्रतिष्ठान में एक कार्यक्रम के दौरान हुई। वहाँ उन्होंने कहा था कि तिब्बत की मुक्ति न केवल तिब्बत के हित में है बल्कि भारत और दूनिया के हित में भी है। तिब्बत के प्रति दूनिया भर के नेताओं से समर्थन भी मिल रहा है। साँगे मानते हैं कि तिब्बत से हज़ारों मील दूर होने के बावजूद तिब्बती संस्कृति, परम्पराएँ और और विरासत आज भी क़ायम है तो इसके पीछे भारत का बहुत बड़ा योगदान है।दलाई लामा समेत तिब्बती समुदाय के लाखों लोगों को भारत ने जिस तरह अपने यहाँ शरण, सुरक्षा और सम्मान दिया है वह अतुलनीय है। भारत में रह रहे अधिकतर तिब्बती तिब्बत की आज़ादी के संघर्ष से जुड़ रहे हैं। उन्होंने हम भारतीयों से “ मुक्त तिब्बत “ के आंदोलन को और तेज़ करने का आग्रह किया था। आज जब भारत चीन के बीच सीमा विवाद पर टकराव हो रहा है तो दलाई लामा चुप क्यों हैं ? इस मसले के बीच तिब्बत का मसला भी आता है। दलाई लामा को अंतराष्ट्रीय मंच पर भारत के पक्ष में और चीन की विस्तारवादी नीतियों को दूनिया के सामने रखना चाहिए था। शान्ति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा को सारी दूनिया सम्मान की नज़र से देखती है पर उनके नहीं बोलने से निराशा हुई।
ज्ञात रहे 1959 से दलाई लामा एवं उनके साथ भारी संख्या में तिब्बती भारत में रह रहे हैं। चीन को भारत में दलाई लामा का शरण मिलना अच्छा नहीं लगा था। भारत चीन मैत्री में दरार आने का एक कारण यह भी रहा है। दलाई लामा ने चीन द्वारा अपनी मृत्यु कराने की शंका के कारण बड़ी संख्या में अपने अनुयायियों के साथ भारत में शरण ले लिया था। तिब्बती समुदाय के लोग भारत के दिल्ली, देहरादून, धर्मशाला, और सिक्किम में लाखों की संख्या में फैले हुए हैं। जब चीन १ अक्टूबर को अपना राष्ट्रीय दिवस मनाता है तब ये तिब्बती लोग चीन के दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हैं । तो आख़िर क्या कारण है कि आज इन चीनी हरकतों का विरोध इन्होंने नहीं किया ? दलाई लामा द्वारा दिए गए गए बयान कि “ चीन से आज़ादी नहीं स्वायत्ता चाहते हैं “ के कारण विरोध नहीं किया जा रहा है या कहीं इसलिए ख़ामोशी तो नहीं कि दलाई लामा की उम्र बढ़ रही है ऐसे में बहुत से तिब्बतियों को डर है कि चीन की सरकार उनकी जगह अपनी पसंदीदा व्यक्ति को नियुक्त कर देगी। 
ख़ुद को महाशक्ति की तरह पेश करता चीन छोटी छोटी बातों से डरता है। चीन में रहने वाले 60 लाख से ज़्यादा तिब्बतियों में ज़्यादातर अब भी दलाई लामा का बहुत सम्मान करते हैं। दलाई लामा को दूनिया के दूसरे देशों से भी समर्थन मिलता है। फिर ऐसी क्या राजनीतिक मजबूरियाँ हो सकती हैं ? अगर उनका बयान आता और भारत  के साथ दूसरे देशों में बसे तिब्बतियों द्वारा भारत के पक्ष में चीन का विरोध होता तो सम्भवतः चीन पर ज़्यादा दवाब पड़ता।

Monday 29 June 2020

Coal block auction: Vision of Atmnirbhar ?

In line with the vision of  "Atmnirbhar Bharat " the launch of the auction process for commercial mining of 41 coal mines is certainly historic and it will not only make India self-reliant in the energy  sector but will also create lakhs of jobs and massive revenue for states by creating huge capital investments.

The virtual auction process of 41 coal blocks for commercial coal mining expecting to attract Rs.33,000 crore investments over 5-7 years and technology from Indian and global miners and are likely to ceate about 2.8 lakhs jobs with an annual revenue of Rs.20,000 crores for the governments.

India proposes to reduce its dependence on coal import as the coal import bill is around 1.7 lakh crore. Against a domestic production of 730 million tonnes, India imported 240 million tonnes of coal, mainly for the Steel plants. India has the fourth largest reserves in the world. India is the second largest producer and importer of coal in the world.

We really need to increase our domestic production even more as even though we are moving towards renewable sources of energy - solar, wind, Hydel, Neuclear etc. as coal is used for gas, fertilizer making etc.
The blocks are spread over five states have total geological mines of 26,979 million tonnes per annum
Here we are emphasizing on the use of better technology so that the empact on the environment is minimum as the Climate change is one of the greatest challenges before the world. Also mines lead to the displacement of people. So, we have to ensure that if because of these mining activities people are supposed to be relocated then they must be resettled properly and well compensated. This will certainly help India accelerate it's journey of becoming an inclusive self reliant, technologically advanced, prosperous and a very strong country or a True  " Atmnirbhar Bharat " 


Monday 15 June 2020

मानसिक अवसाद ( ) से मुक्त होने के उपाय - स्वयं ही समाधान

बॉलीवुड कलाकार सुशांत सिंह राजपूत ने कथित रूप से अपने जीवन का अंत कर लिया। इतनी छोटी उम्र में बड़ी कामयाबी पाने वाला कलाकार किसी समस्या के दवाब में आकर इस प्रकार का कदम लेगा ये किसी को समझ में नहीं आ रहा है। उन्हें चाहने वाले सदमे में में है। निराश होकर जीवन का अंत करने की घटना आजकल अक्सर सुनने को मिलता है। समस्याओं से आज़ादी पाने का यह कोई मुकम्मल समाधान नहीं है। समस्याओं से समाधान यदि हम चाहते हैं तो उससे डरने या किसी दवाब में आने की बजाय उसे सकारात्मक ढंग से सोच विचार करें। उन समस्याओं से लडने का स्वयं में साहस पैदा करें। विचार हमेशा अच्छे होना चाहिए क्योंकि अक्सर देखने में आता है कि बुरे विचारों से घिर कर मनुष्य असहाय होकर अवसाद की स्थिति में पहुंचकर आत्महत्या कर लेता है।जीवन में परिवर्तन का क्रम चलता रहता है। अगर एक जैसी परिस्थितियां बार बार हो रही है तो कभी यह नहीं समझना चाहिए कि अब जीवन में सब कुछ समाप्त हो गया है और मेरे लिए कुछ नहीं बचा है। संघर्ष करने वाले व्यक्ति को एक बार पुनः उसी जोश व उत्साह के साथ नए सिरे से प्रयास में जुट जाना चाहिए।
समस्याओं का समाधान हमारे अपनों में ही मिल जाते हैं इसलिए ज़रूरी है अपने दोस्तों, परिवारवालों के साथ मिलकर चर्चा करें। अकेला बैठने से बचें, गाने सुने, किताबें पढ़ें। अपने शौक को ज़िंदा रखें। चिंता नहीं चिंतन करें क्योंकि चिंता चिता से भी बुरी होती है। समाज में सभी को एक दूसरे के प्रति संवदनशील होकर इस समस्या से लड़ना होगा। सभी को एक दूसरे का ख्याल रखने की जरूरत है। कभी भी किसी समस्या से परेशान होकर हताश होने लगे या टूटने लगे तो उसी समय से अपने आप पर ध्यान देने या अपनी देखभाल स्वयं करने की शुरुआत कर दें।किसी रचनात्मक कार्य से जुड़ जाएं जो आपके लिए मलहम का काम करें। स्वामी विवकानन्द के अनुसार जीवन एक युद्ध के समान है जिसमें योद्धा की तरह व्यक्ति को हर पल विषम परिस्थितियों में मुकाबला करने के लिए तैयार रहना पड़ता है।उसे विफलता के अंधेरे को भगाकर दृढ़ता का दीपक जलाना पड़ता है।
आज विश्व में विपत्ति आयी हुई है। भारत इससे अछूता नहीं है। एक तरफ करोना तो दूसरी तरफ तूफान, भूकंप के झटके और आर्थिक मंदी। व्यवसाय बंद हो रहे हैं, नौकरियां जा रही हैं। ये समस्याएं मानसिक अवसाद की और ले जा रही है। इससे संभालना ज़रूरी है। आत्महत्या कर अपने जीवन को बर्बाद करना उचित नहीं। किसानों द्वारा आत्महत्या या बाराबंकी की उत्तर प्रदेश में एक ही परिवार के पांच लोगों की आत्महत्या सोचने पर विवश करती है।ये मामले और और अधिक बढ़ने कि आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
रोम के महान दार्शनिक सेनेका कहते हैं कि कठिन रास्ते भी हमे ऊंचाइयों तक ले जाते हैं। अनिश्चितताएं हमारी शत्रु नहीं है। कुछ स्थायी नहीं होता बताता है कि कोई भी जीवन की असीमित संभावनाओं को जान नहीं सकते। कभी आप अनिश्चितताओं की तरफ बढ़ते हैं तो कभी वह आपको ढूंढ लेती है। यही जीवन है। हर रात के बाद सवेरा आता है। और यह भी सत्य है कि रात जितनी काली और भयावह होगी सुबह उतनी ही प्रकाशमान और सुहावने होंगी।



 

Tuesday 9 June 2020

गर्भवती हथिनी की हत्या: मानवता को शर्मसार

केरल के साइलेंट वैली में घटी घटना मन को विचलित कर दिया। एक हथिनी जो भूखी और गर्भिणी थी इंसानों की बस्ती में पहुँच गयी शायद यह सोच कर कि उसकी क्षुधा शांत हो जाएगी। लेकिन शायद उसे यह नहीं मालूम था कि इंसान हैवान होते जा रहे हैं। किसी ने अनानास में पटाखे भरकर खिला दिया। हथिनीऔर उसके गर्व में पल रहे बच्चों ने प्राण त्याग दिया। यह मात्र हत्या नहीं हत्याएँ थीं। हत्या पशु, माँ, शिशु, विश्वास, और इंसानियत की हुई।

इसके ठीक  दो दिनों के बाद बिलासपुर ( हिमाचल प्रदेश ) में एक गाय के साथ ऐसी ही घटना घटी। किसी ने गर्भिणी गाय को विस्फोटक से घायल कर दिया। लेकिन वक़्त पर उपचार होने से गाय और बछड़े दोनो को बचा लिया गया।
यह तो हैवानियत की दृढ़ हो गयी। मानव की मानवता कहाँ खोती जा रही है। पशु पक्षी का उत्पीड़न जिस प्रकार से किया जा रहा है उसे देखकर हृदय दुखित होता है। पशुओं पर होने वाले अत्याचार सारे मानव जाति पर कलंक है।
एक तरफ़ मानव अमानवीय कार्य में लगे हैं तो दूसरी तरफ़ जानवर मनुष्य को जीवन का एक बड़ा संदेश दे जाते हैं । अभी हाल में एक वीडीयो आया था जिसमें मगरमच्छ एक मादा हिरण  को पकड़ लेता है। कुछ देर दबोचने के बाद मगरमच्छ को एहसास होता है कि मादा हिरण गर्भवती है तो उसने अपने जबड़े खोलकर उस मादा हिरण को आज़ाद कर देता है।
इसी प्रकार दक्षिण अफ़्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क की घटना है। एक शेरनी अपने बच्चे को लेकर जा रही थी और एक वाइल्ड लाइफ़ फ़ोटोग्राफ़र तस्वीर के लिए उसका पीछा कर रहा था। कड़ी धूप में चलते चलते शेरनी थक रही थी।
अचानक एक हाथी मामला भाँप कर उसने शेरनी की मदद करनी चाही। हाथी ने जैसे ही अपनी सूँड़ नीचे झुका कर पालना जैसा बनाया शेरनी का बच्चा उस पर जा बैठा।तीनों आगे की ओर निकल लिए।

मानव पूरे प्राणी जगत में सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है। प्रकृति ने मानव को अन्य जीवों के अपेक्षा एक विलक्षण वस्तु ‘ मस्तिष्क ‘ प्रदान किया है जिसका उसने दुरुपयोग किया। उसने अपने जैविक और भौतिक वाद के चक्कर में पड़कर और स्वार्थ के कारण सम्पूर्ण प्रकृति, पर्यावरण एवं जीव जंतु को क्षत-विक्षत कर दिया। पशुओं के प्रति होती आयी मानवीय क्रूरता आज कोई नई बात नहीं है। नि:संदेह इस घटना ने पशुओं के प्रति अमानवीय व्यवहार पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। महावीर ने जीवों पर अत्याचार होते देखा तो उनकी रह काँप उठी और उन्होंने समझाया कि जीव हत्या मत करो क्योंकि उन्हें भी वैसी ही पीड़ा होती है जैसी तुम्हें।
हमारी संस्कृति का एक ‘ मूल मंत्र ‘ अहिंसा परमो धर्म ‘ भी मानव की बलि चढ़ गया। यह मंत्र केवल हमारे लिए नहीं था, बल्कि सम्पूर्ण विश्व और चल-अचल जगत सभी के जीवन को ख़ुशहाली का धोत्तक है। प्राकृतिक जीवन, वन एवं जीव जंतु मानव जीवन को एक निश्चित दिशा प्रदान करते हैं। मानव का असंतुष्ट लोभ प्राकृतिक  संकलनों -संसाधनों जीव जंतुओं को तीव्रता से नष्ट करता जा रहा है। इंसानों ने सम्पूर्ण धरती पर जंगलों को ख़त्म कर दिया है।हाथियों को बड़े पौधों के बीज को एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रसारित करने में सहायक माना जाता है। यानि इनकी उपस्थिति से पर्यावरण में बड़े वृक्षों की संख्या बढ़ती है।  जिस जंगल में बाघ,चीता, भेड़िया जैसे होंगे वहाँ पर शाकाहारी पशुओं का संतुलन बना रहेगा और हरे भरे पेड़-पौधे की सुरक्षा भी रहेगी। वनस्पति अधिक मात्रा में उगेगी और इस तरह सामान्य पर्यावरण बना रहेगा। इस प्रकार प्राकृतिक संतुलन भी बना रहेगा। हमें अपनी मानवता को भी बचाना है क्योंकि जब मानवता ख़त्म हो जाती है तो इंसान भी ख़त्म हो जाता है। हमारा आपका अस्तित्व ही नष्ट न हो जाए, इसलिए मानवीय बने रहने में भलाई है।किसी का जीवन छीन लेना ज़िंदगी नहीं है बल्कि किसी को जीवन देना ज़िंदगी है।
इस चुनौती का सामना करने के लिए हमें तुरंत प्रभावी क़दम उठाने होंगे अन्यथा आगे आने वाले समय में जानवर के साथ प्राकृतिक संतुलन आदि सभी लुफ़्त हो जाएँगे और चारों ओर त्राहि त्राहि मच जाएगी।

Friday 5 June 2020

लोगों में पर्यावरण चेतना ज़रूरी ( विश्व पर्यावरण दिवस २०२०)

वर्ष 2020 का विश्व पर्यावरण दिवस पिछले सभी वर्षों से भिन्न है क्योंकि पूरी दुनिया करोना वायरस की सामना कर रही है जिसकी वजह से विश्व के लगभग सभी देशों में लॉकडाउन है। सड़कों पर गाड़ियाँ नहीं चल रही हैं, रेल और हवाई जहाज़ों का आवागमन ठप्प है, फ़ैक्टरीयाँ बंद हैं ।इस महामारी से जान और माल का तो काफ़ी नुक़सान हुआ लेकिन पर्यावरण पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा। वायु प्रदूषण में काफ़ी कमी आयी है। शहर जो गैस चेम्बर बन गए थे वहाँ के हवा में सुधार हुआ है। हवा में कार्बन डायआक्सायड की काफ़ी कमी आयी है। वायु प्रदूषण की तरह जल प्रदूषण में भी सुधार हुआ है। नदियाँ स्वच्छ एवं निर्मल हो गयी हैं। गंगा के जल में 500 प्रतिशत टी डी एस कम हुई है और ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ी है जिससे गंगा का पानी वर्षों बाद पीने योग्य हो गया है।आसमान नीला और रात्रि में अनगिनत तारे दिखने लगे हैं। ओज़ोन परत जिसके लिए पूरा विश्व चिंतित था उसमें भी सुधार आया है।इस बदलाव से पूरा विश्व अचंभित है। आज देश “ विश्व पर्यावरण दिवस “ मना रहा है । इस अवसर पर फिर से गहन चिंतन की आवश्यकता है किस हद तक इंसानों ने प्राकृतिक संतुलन को हानि पहुँचाया है। 
कोई भी देश अपने स्तर पर प्रकृति की रक्षा का कार्य सम्पन्न नहीं कर सकता है।कभी कभी लोग अपने छोटे से काम के लिए पर्यावरण से छेड़ छाड़ कर बैठते हैं जो कालांतर में उसके व्यक्तिगत जीवन के लिए समस्याएँ पैदा करती हैं। अतः लोगों को अनेक असंतुलनों से पैदा ऊँच नीच का ज्ञान देना आवश्यक है। प्राकृतिक,सामाजिक,सांस्कृतिक और आर्थिक आदि का संरक्षण तभी सम्भव होगा जब पर्यावरण सम्बंधी जन चेतना होगी। 
प्रकृति के दोहन से मानव लाभान्वित हो सकता है किंतु उसका विनाश अपने विनाश को निमंत्रण देने जैसा होगा। प्राचीन काल से इंसान की सेवा करती आयी इस प्रकृति में संतुलन बनाए रखने से ही इसका लाभ हम सभी को आगे भी मिलता रहेगा। शुद्ध पर्यावरण ने सदियों से सारी सृष्टि को बचा कर रखा है। आज भी हमारा जीवन इसी पर्यावरण की ही देन है। यदि भविष्य में हम इसे ऐसा ही बनाए रखेंगे तभी हमारी अस्तित्व की आशा की जा सकती है। इस प्रकार पर्यावरण का प्रभाव भूत, वर्तमान, और भविष्य तीनों कालों में समान रूप से जुड़ा है। प्राकृतिक संतुलन के इस अभियान राष्ट्रीय अभियान के रूप में प्रत्येक व्यक्ति और सामाजिक समूहों द्वारा अपनाने की ज़रूरत है। इससे वास्तविक जीवन से पर्यावरण का सदैव सह सम्बंध स्थापित करते हुए इस समस्या के समाधान में हम महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकें।

हमें अपने आस पास जो कुछ भी दिखायी देता है अथवा जिन तत्वों का नित्य जीवन में हम अनुभव करते हैं जैसे भूमि,जल, वायु, जीव-जंतु और पेड़ पौधे। ये सभी सम्मिलित रूप से पर्यावरण की रचना करते हैं। भूमि, जल,वायु, और पेड़ पौधे का भी प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है इसलिए ये भी पर्यावरण के अंग हैं। व्यक्ति जिस परिवेश में जन्म लेता है फलता फूलता है और जिस वातावरण में उसका पालन पोषण होता है उस वातावरण की जानकारी मनुष्य के विकास के लिए अति आवश्यक है। व्यक्ति के चारों ओर आस पास जो कुछ भी है पर्यावरण के अंतर्गत है। इस पर्यावरण सारी सृष्टि को सदियों से बचा कर रखा है। यदि हमें स्वयं को या समस्त सृष्टि को बचाए रखना है तो पर्यावरण को एकदम से नष्ट नहीं करना चाहिए। वातावरण का भूत, वर्तमान और भविष्य से गहरा सम्बंध है। यदि इस सम्बंध में गम्भीरता से विचार नहीं किया जाए तो संसार का वर्तमान और भविष्य एकदम नष्ट हो जाएगा जिसके लिए हमारी आने वाली पीढ़ी कभी माफ़ नहीं करेगी।

 संसार के सभी समुदाय प्रकृति, पर्यावरण और प्रदूषण के विषय में पिछले कुछ दशकों से गम्भीरता से विचार कर रहे हैं और जन साधारण के लिए तरह तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं। इस विषय में जन साधारण की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण और सार्थक होगी।

Thursday 4 June 2020

लोक शक्ति से ही संभव होगी सम्पूर्ण क्रांति

मेरे पिताजी अक्सर जयप्रकाश आंदोलन की चर्चा अपने मित्रों से करते थे और मैं उनके पास बैठ कर उनकी बातें सुना करता था। मेरा विद्यालय जयप्रकाश बाबू के घर के ठीक सामने था। मैं हमेशा उन्हें धूप में किताबें पढ़ते हुए देखा करता था। शिक्षकगण भी उनके विषय में चर्चा किया करते थे। 
जयप्रकाश बाबू के घर पर देश विदेश के गणमान्य लोगों का आना जाना लगा रहता था। इससे अनजाने में ही जयप्रकाश बाबू में लगाव हो गया। उनके विषय में कहीं भी चर्चा होती थी मैं ध्यान से सुना करता था। उनके व्यक्तित्व और उनके द्वारा दिए गए नारा “ सम्पूर्ण क्रांति “ से मैं बहुत प्रभावित हुआ। मैं राजनीति में नहीं हूँ लेकिन अछूता भी नहीं हूँ क्योंकि पटना या बिहार की राजनीति का तापमान हमेशा ऊँचा रहता है। बिहार में राजनीतिक जागरूकता देश के दूसरे राज्यों से ज़्यादा है।ये सभी को मालूम है जयप्रकाश बाबू चिंतक भी थे और सामाजिक आंदोलन के ऐसे पुरोधा भी थे कि इन्दिरा गांधी की सत्ता हिली ही नहीं वे ख़ुद भी हार गयीं। यह कोई मामूली घटना नहीं थी। जयप्रकाश बाबू को विश्व के कोने कोने के लोग जानते थे।अपनी अपनी तरह से विचारकों ने उनका मूल्याँकन भी किया था। भारत में स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर सम्पूर्ण आंदोलन तक का जेपी का योगदान जगज़ाहिर है।

राजनीति एवं सत्ता दोनो अलग अलग है ये मैंने जयप्रकाश बाबू को थोड़ा जानने के बाद जाना। अधिकांश लोग राजनीति और सत्ता को एक मानते हैं। लोग राजनीति में आते हैं और सत्ता दौड़ में शामिल हो जाते हैं। जयप्रकाश नारायण ने इस नियम को तोड़ा। वे अपनी ज़िंदगी के आख़िरी क्षण तक राजनीति में रहें लेकिन सत्ता को ठुकराया। वे चाहते तो सत्ता के शिखर तक आसानी से पहुँच जाते। भारत के राजनीतिक आकाश पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण ध्रुवतारे की तरह बने रहेंगे। 
लोगों ने पूरे मन से उन्हें “लोकनायक” की उपाधि दी। वह ऐतिहासिक क्षण थी - 5 जून 1975 । जगह - पटना का गांधी मैदान । यह मैदान अनेक घटनाओं का जीता जागता गवाह है। पूरे बिहार से लोग विधान सभा भंग करने की माँग को लेकर पटना में जुटे थे। जेपी उस जुलूस की अगुवाई कर रहे थे। दस लाख से भी ज़्यादा लोगों की जुलूस थी। उस भीड़ से गांधी मैदान छोटा पड़ गया था। गांधी मैदान की सभा में उनके सिर पर लोगों ने “लोक नायक “ का ताज रख दिया जो हमेशा लगा रहा। यहाँ पर जयप्रकाश नारायण ने भी लोगों से अपील की। उन्होंने कहा था “ दोस्तों , ये संघर्ष सीमित उद्देश्यों के लिए नहीं हो रहा है। इसके उद्देश्य दूरगामी है। भारतीय लोकतंत्र को वास्तविक और सूधृढ़ बनाना और जनता का सच्चा राज क़ायम करना है। एक नैतिक, सांस्कृतिक, तथा शैक्षणिक क्रांति करना, नया बिहार बनाना और नया भारत बनाना है। यह सम्पूर्ण क्रांति है - टोटल रेवलूशन ( total revolution ) उसके बाद यह नारा निकला 
 “सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है ।

सम्पूर्ण क्रांति का अर्थ प्रत्येक दिशा में सतत विकाश ही समग्र क्रांति है।आचार परिवर्तन, विचार परिवर्तन, व्यवस्था परिवर्तन, एवं शिक्षा में परिवर्तन कर के उन्हें जीवनपयोगि बनाने की आवश्यकता है। ग्राम स्तर से राष्ट्र स्तर तक जनसमिति एवं छात्र समिति बना कर छात्र जन-समस्याओं का निराकरण करते हुए तथा स्वच्छ छवि वाले जनप्रतिनिधियों को भेजना सुनिश्चित करना होगा।जन विरुद्ध कार्य करने पर प्रतिनिधि वापसी का अधिकार का उपयोग करते हुए उन्हें पदच्युत करना ताकि जनजीवन उन्नत एवं सरस बनाया जा सके।जयप्रकाश जी ने सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन में अंतर्जातिय विवाह और जनेउ तोड़ने का कार्यक्रम अपनाया था। इसके साथ ही उन्होंने जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में काम करने के लिए लोगों को युवकों एवं युवतियों को संगठित करना शुरू कर दिया था।साथ ही बिना तिलक दहेज के सादगी के साथ शादी विवाह का कार्यक्रम भी शुरू कर दिया था।
जयप्रकाश नारायण की दृष्टि में सम्पूर्ण क्रांति का अर्थ : सम्पूर्ण क्रांति का मतलब समाज में परिवर्तन हो - सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक,और नैतिक परिवर्तन।सामाजिक परिवर्तन ऐसा हो कि सामाजिक कुरीतियाँ दूर हो। इसमें से नया समाज निकले जिसमें सभी सुखी हों।अमीर ग़रीब का जो आकाश पाताल का भेद है वह नहीं रहे। शोषण न हो इंसाफ़ हो।आर्थिक परिवर्तन ऐसा हो कि जो सबसे नीचे के लोग हैं जो सबसे ग़रीब हैं - चाहे वे किसी जाति या धर्म के हों ऊपर उठे।सांस्कृतिक परिवर्तन है - समाज में त्याग, बलिदान,प्रेम, अहिंसा, भाई चारा आदि सदगुणों का विकास करना।

जयप्रकाश शुरू से ही युवा हृदय सम्राट के रूप में विख्यात थे। नौजवानों की उनके ऊपर अटूट आस्था थी। इसी आस्था और प्यार के चलते अपने जीवन के चौथेपन में भी करोड़ों युवक, किशोरों का नेतृतव कर सके।आज के युवकों को लोक नायक जयप्रकाश की सम्पूर्ण क्रांति “ को समझने की आवश्यकता है ।