भारत के त्योहारों की विशेषता यह है कि यह सामाजिक एवं पारिवारिक एकता के अनुपम आदर्श है। इसी भाव के साथ प्राचीन काल से पर्व मनाते चले आ रहे हैं।
विशेषकर छठ पर्व परिवार और समाज के एकीकरण का त्योहार है । हमारे परिवार में भी छठ पर्व धूमधाम से मनाया जाता था। मेरी मां ने पच्चीस से भी ज्यादा वर्षों तक छठ व्रत करती रही थी लेकिन गठिया जैसी बीमारी ने उन्हें आगे के वर्षों में व्रत रखने से वंचित कर दिया था।
मां का कहना था कि यह पर्व जीवन को खुशहाल व रिश्तों को मजबूत बनाने में अटूट कड़ी की भूमिका निभाता है। हमारे ददिहाल और ननिहाल दोनों तरफ के परिवार मिलजुल कर यह त्योहार मनाते थे ।
मां छठ के एक हफ्ते पहले से तैयारियां शुरू कर देती थीं। पापा के साथ व्रत से संबंधित सारी खरीदारियों खुद करती थीं। नहाय खाए के दिन गंगा नदी जा कर पानी और मिट्टी लाती और उस कमरे को उनसे साफ करतीं । छठ के पहले दिन नहाय खाय में चावल दाल और लौकी की सब्जी मिट्टी की चूल्हे पर बनता था। उस खाना को प्रसाद के रुप में ग्रहण करना होता है । छठ पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। मां कमरे में जमीन पर सोया करती थीं। व्रत से संबंधित सारे काम नहाने धोने के बाद ही करना होता है।
परिवार की महिलाएं प्रसाद बनाती थीं एवं पुरुष मंडी से फल सब्जियां लाते थे। छठ का दूसरा दिन खरना का होता है। उस दिन खीर पूरी प्रसाद के रूप में चांद को देखने के बाद मिलता है। खर्णा वाले दिन हमारे मित्र एवं रिश्तेदार दूर दूर से प्रसाद खाने आते थे। कुल मिला कर यूं कहें कि माहौल उत्साह और उल्लास का होता था।जीवन को नई ताजगी मिलती थी जिससे जीने का हौसला दुगुना हो जाता था।
तीसरे दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य देने के बाद खाना पीना होता था। सभी भाई बहन के साथ हंसी मज़ाक होता था। पापा अपने भाइयों के साथ त्यौहार का आनंद लेते थे। उस रात मात्र दो तीन घंटे सोने के बाद सुबह के अर्घ्य की तैयारी शुरू होती थी। सुबह वाले अर्घ्य के बाद ठेकुआ प्रसाद में मिलता था। इसके साथ चार दिनों तक चलने वाले पवित्र , ऊर्जावान और उल्लास वाला त्योहार समाप्त होता था।
आज मां हमारे बीच नहीं है लेकिन छठ जितने तन्मयता से करती थी उसे शायद ही कोई भूल पाएगा।
बीते पलों को याद कर रहा हूं मां,
कुछ लिखने में दिल लगा रहा हूं
मगर सच तो यह है
दिल नहीं लग रहा है तुम्हारे बिना मां !!
So close to our heart Choti ma n Chhath Puja both 🙏🙏
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