Thursday, 24 December 2020

किसान - बंजर भूमि में बोता है आशाओं का बीज


एक ख्वाहिश,
एक सपना,
एक भूख,
एक मातृ प्रेम।
इन सब का मिला जुला रूप
किसान।
बंजर भूमि में बोता है
आशाओं का बीज।
दीमक - कांटों से बचाने को 
लाता है दवा उधार में।
उधार का पानी, उधार की खाद,
उधार की बिजली, देनदार की वसूली।
मेहनत का मूल्य 
शून्य .......।
चिड़ियों की चहकने से, उल्लू के जगने तक
लहलहाती मां का सपना लिऐ 
अनवरत कार्मशील।
प्रस्फुटन बीजों का नये उगते पत्ते।
मौसम की प्रताड़ना को निरंतर सहते हुए 
करता है मां का श्रंगार।
बीवी, बच्चों को भरपेट भोजन 
खिलाने की उम्मीद।
विवशता कर्ज़ चुकाने की ।
घर पहुंचते लिपट गए बच्चे
समझ गए दर्द किसान पिता का
बापू --
हमारा पेट रोटी नहीं मांगता।
हम धरती के , धरती हमारी मां।
चुकाते रहेंगे कर्ज़ 
अपनी मां का।
           प्रशान्त सिन्हा

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