Thursday, 6 August 2020

मंदिर निर्माण से जागी उम्मीद राष्ट्र राम राज्य की ओर !!!

आख़िरकार अयोध्या में राम मंदिर का भुमि पूजन हो गया और जल्द ही मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा। इस मंदिर की प्रतीक्षा लगभग चार सौ वर्षों से भी ज्यादा से है। इस मंदिर के लिए न जाने कितने युद्ध हुए और लाखों ने अपने बलिदान दिए। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण सिर्फ मंदिर निर्माण नहीं है बल्कि भारत की संस्कृति का निर्माण है। यह एक राष्ट्र का मंदिर है जो भारतीयता के उत्कर्ष को इंगित करता है।
राम केवल हिन्दुओं के प्रतीक नहीं है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि कुछ लोग राम के प्रति उस प्रकार के आदर भाव नहीं रखते लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कोई सत्य को पहचानने से इंकार कर दे तो सत्य असत्य तो नहीं हो सकता। सच तो यह है कि इस राष्ट्र को राम के प्रति नमन करना ही होगा तभी यह राष्ट्र भारत वर्ष कहलाएगा। इंडोनेशिया जो मुस्लिम बहुल राष्ट्र है राम का आदर और सम्मान करता है तब भारतीय राम को एक स्वर में नमन क्यों नहीं कर सकते ?
राम राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय स्वाभिमान, राष्ट्रीय आदर्शों और श्रेष्ठ मानव मूल्यों के प्रतीक हैं। उनपर समस्त राष्ट्र को गौरव होना चाहिए। जो राम को राष्ट्रीय गौरव नहीं मानते उन्हें सच्चा भारतीय नहीं कहा जा सकता चाहे वह किसी भी धर्म का हो।
राम का सम्पूर्ण जीवन हमारे स्वयं के जीवन को गहराई से देखने में मदद करता है। रा का अर्थ है " प्रकाश "  और म का अर्थ है " मै " ।  अर्थात हमारे जीवन का प्रकाश। अयोध्या का अर्थ है जिस पर विजय  प्राप्त नहीं किया जा सकता। 
राम केवल राजा होते, सदाचारी होते, धर्म प्रवर्तक होते तो शायद इतिहास में इतने लंबे अंतराल को पार कर उनकी स्मृति भी अन्य राजाओं और महाराजाओं की तरह क्षीण हो चुकी होती। मात्र इतिहास बनकर रह गए होते लेकिन  राम इतिहास नहीं है वे वर्तमान है। प्रभु राम तो पुरषोत्तम हैं। उनका प्रबंध कौशल, न्यायप्रियता, जनकल्याण तुलसीदास जी की इन चौपाइयों से झलकती है -  नहीं कोई दरिद्र दुखी न दीना , नहीं कोई अबुध न लक्षण हीना...........
दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज काहू नहीं व्यापा.......

मंदिर निर्माण के साथ साथ लोगों से अपेक्षा की जाती है कि इतनी प्रतीक्षा, युद्ध, और बलिदान के बाद लोगों को प्रभु राम की रीतियों, नीतियों से सीख कर कलयुग में राम राज लाएं।  मात्र जय श्री राम का नारा नहीं बल्कि राम के बताए रास्ते पर चलने और रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने की जरूरत है।  तभी निजी तौर के साथ सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर प्रगति का मार्ग प्रशस्त होगा।  राम मंदिर निर्माण की सदियों पुरानी प्रतीक्षा पूरी होना त्रेता युग के राम की कलयुग में एक विजय है।

3 comments:

  1. एक शाश्वत सत्य के साथ सार्थक विवेचना।
    बधाई

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  2. बहुत अच्छा और रोचक लगा .. ऐसे ही लिखते रहा करे !

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