मित्र शब्द अपने आप में व्यापक आनंदमय और गंभीर है। मित्रता धन की तरह हैं जिसे आसानी से कमा तो सकते हैं परन्तु निरंतर सुरक्षित रखना कठिन है। सच्चा दोस्त कभी भी अपने मित्र को बुरे समय में, कठिनाई और परेशानी के वक़्त अकेले नहीं होने देते। सच्चे दोस्त को उचित समझ, संतोष और विश्वास की जरूरत है। सच्चा दोस्त कभी शोषण नहीं करता बल्कि एक दूसरे को जीवन में सही काम और मदद करने के लिए प्रेरित करता है।
सुकरात के शब्द है " मित्रता करने में शीघ्रता नहीं करो परन्तु जो मित्रता करो तो अंत तक निभाओ।" मित्रता में व्यवहार और प्रतिमान होना चाहिए। नितिकारों ने सच्चे मित्र के कई लक्षण बताएं हैं। जैसे मित्र अपने साथी को गलत कम करने से रोकता है उसे हितकर कार्यों को अंजाम देने के लिए प्रेरित करता है उसकी गुप्त बातें किसी को नहीं बताता। इतिहास सच्चे मित्रों से भरा पड़ा है। जैसे राम और सुग्रीव की मित्रता, कृष्ण और सुदामा की मित्रता, कृष्ण और अर्जुन की मित्रता इत्यादि।
लेकिन व्यक्ति के साथ मित्रता करना ऐसे है जैसे कि पानी पर रेखा खींचना। ऐसी मित्रता निरर्थक और क्षण भंगुर होती है। अज्ञानी और स्वार्थी की मित्रता खतरनाक होती है। स्वार्थी व्यक्ति की मित्रता छाया की भांति है। प्रकाश में छाया साथ चलता है किन्तु अंधकार होते ही गायब हो जाता है। मूर्ख और स्वार्थी मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा।
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