Wednesday, 6 May 2020

मजदूर संकट --: चुनौतियां के बीच संभावनाएं

मज़दूर संकट -चुनौतियाँ के बीच संभावनाएं

करोना महामारी के बाद पलायन लाज़मी था। पहले भी जब कही भी महामारी फैली है पलायन हुआ है। लेकिन लॉकडाउन  के कारण ये पलायन पहले से भिन्न है। वर्तमान में अनिश्चित्ता बनी हुई है। अर्थव्यवस्था की हालत भी ठीक नहीं है।इस कारण सभी को मज़दूरों पर सोचने के लिए विवश किया।
ये मज़दूर कौन हैं। पहले यह समझ लें।
आम दृष्टि में मज़दूर शारीरिक श्रम करने वाले माने जाते हैं।जबकि मौजूदा विश्व के संदर्भ में यह अर्थ अधूरा है।न केवल शारीरिक श्रम करने वाले मज़दूर होते हैं बल्कि वह सभी लोग मज़दूर हैं जो काम के एवज़ में वेतन पाते हैं।लेकिन आम तौर पर लोग यह मानते हैं कि जो मिल या खेतों में काम करते हैं वही मज़दूर होते हैं। 
ग़रीब राज्य से काम की तलाश में ये मज़दूर हज़ारों मील दूसरे राज्य में जाते हैं और अपने हूनर से उस उस राज्य के विकास में अपनी भूमिका निभाते हैं।लेकिन कभी भी इन मज़दूरों के विषय में गम्भीरता से नहीं सोचा गया।आज करोना वायरस ने सब उधेड़ कर रख दिया है।शारीरिक श्रम करने वाले मज़दूरों के लिए कौन है ? मज़दूर भूखे प्यासे हज़ारों मील पैदल यात्रा कर गाँव जाने के लिए मजबूर हैं क्योंकि उनकी बचत और रोज़गार दोनो चले गए।
प्रवासी मज़दूर एक बार गाँव पहुँच गए तो शायद करोना का क़हर ख़त्म होने के बाद वापस शहर का रूख न करें।क़रीब पाँच करोड़ से ज़्यादा प्रवासी मज़दूर गाँव वापस जा चुके हैं।अब समस्या यह होगी कि जहाँ वे लौट कर गए हैं वहाँ तो रोज़गार है नहीं। अब सारा बोझ कृषि पर जाएगा। इसलिए स्थायी समाधान निकालना बहुत आवश्यक है। इसका समाधान यही है कि ग्रामीण इलाक़ों में कृषि आधारित छोटे छोटे उद्योग लगाए जाएँ । ग़रीब राज्यों में लौट रहे प्रवासी मज़दूरों के  हुनर से बदलने होंगे गाँवों की सामाजिक,आर्थिक,और राजनीति जीवन।सरकार को संवेदनशील होना पड़ेगा।लौट रहे प्रवासी मज़दूर अपने हूनर से गाँव की तस्वीर बदल सकते हैं यदि सरकार संवेदनशील हों।निर्माण श्रमिक अब राज मिस्त्री का काम करेंगे,प्लम्बिंग,मोबाइल मरम्मत,बिजली मरम्मत दर्ज़ी एवं नाई,सलून आदि अनेक तरह के शहरी हूनर से लैस ये प्रवासी हूनरमंद गाँवों की तस्वीर बदल सकते हैं।युवा पीढ़ी शहर गाँव में आ कर जाति और धर्म की संकीर्णता से ऊपर उठकर सामाजिक तानाबाना भी बदलेंगे और समाज समावेशी होगा।घरेलू कामकाजी महिलाओं की स्वरोज़गार के हूनर भी सामने आएँगे।ज़रूरत है कि सरकारी ख़ज़ाने द्वारा बैंकों से उन्हें सहायता दी जाए।केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को दूरदर्शिता पूर्ण योजना बनाकर अमल करना चाहिए।आने वाले समय में रचनात्मकता और मानवीय संवेदना का कोई विकल्प नहीं है।सरकार को भी मज़दूरों के कौशल पर ध्यान देना होगा और रोज़गार के नए नए अवसर तलाशने होंगे।
एक और महत्वपूर्ण बात ये है कि मज़दूरों के लिए आज तक जो भी योजनाएँ बनी हैं वे तीन तरह की हैं - पेन्शन, मेडिकल बीमा मृत्यु या विकलांगताकी स्थिति में मुआवज़ा।लॉकडाउन या आर्थिक मंदी जैसे संकट की स्थिति का मुक़ाबला करने के लिए एक भी योजना नहीं है।सरकार को जल्द कोई योजना बनाना चाहिए।
संकट संभलने का अवसर देता है। “जब जागे तभी सवेरा “।यह अवसर है सम्भलने का।सभी को मज़दूरों के विषय में सोचने की ज़रूरत है।ये मज़दूर समाज को कुछ देते ही है लेते कुछ भी नहीं है।मज़दूरों के लिए संवेदनशील संगठन को बाहर से आने वाले मज़दूरों के हूनर का प्रोफ़ाइल बनाकर उनके लिए पुनर्वास कार्य योजना तैयार करना चाहिए।
* तस्वीर गूगल

1 comment:

  1. सबसे ज्यादा बिहार के मजदूर बाहर काम करते हैं और वापस भी आ रहे हैं.
    लेकिन बिहार सरकार के पास इच्छा शक्ति और पुनर्वास का प्लान के कमी के कारण यहाँ कुछ भी नहीं हो सकता.
    यहाँ सिर्फ राजनीति और पुनर्वास के नाम पर लूटपाट हो सकती है.

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