करोना वायरस के इस वैश्विक संकट के दौर में जब दुनिया एक अदृश्य दुश्मन से लड़ रही है। ऐसे में देशवासियों की सुरक्षा के लिए के स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी, सफ़ाईकर्मी और मीडिया कर्मी प्रथम पंक्ति में मुकाबला कर ही रहे है, पर देश में कुछ और भी लोग है जो इस मुश्किल घड़ी में बिना शोर किये देश सेवा में कृत संकल्पित है और सजग प्रहरी के रूप में अपनी सेवाओं के माध्यम से 130 करोड़ देशवासियों की सेवा कर रहा है। ये कोई और नही आपके बैंककर्मी है। जो लगातार जनता के साथ सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करते हुए बैंकिंग सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं।
करोना महामारी को ध्यान में रखते हुए जनता को पूर्ण सहयोग कर रहे हैं जिससे उन्हें बैंकिंग सेवाओं सम्बंधित किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हो।
इस वैश्विक महामारी के संकट भरे दौर में बैंक कर्मी अपनी सेवा के माध्यम से करोड़ो लोगों का दिल जीत रहे है। संकट के इस दौर में सबसे निचले तबके के लोगों को सरकार की ओर से जन धन खातों से मिली राहत को समय पर बैंक कर्मी उनतक पहुंचा रहे है। साथ ही वरीय नागरिकों, पेंशनर और अन्य लोगों को पैसे सही समय पर मिले इसके लिए प्रयत्नशील है।
बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध कराना विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में हमेशा से चुनौती रही है।सरकारी बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण अंग के रूप कार्य कर रही है। बैंक ग्रामीण भारत और शहरी भारत के आर्थिक स्थिति के अंतर को कम करने का प्रयास कर रही है।जिस गाँव में स्थिति बहुत ख़राब होती है वहाँ भी इनका प्रयास अच्छी से अच्छी सेवा देना होता है। इसके अतिरिक्त सरकारी अनुदान और सामाजिक सुरक्षा लाभ को लाभार्थी के खाते में प्रत्यक्ष रूप से पहुँचाया जाता है जिससे वह अपने ही गाँव में भुगतान प्राप्त कर सके।किसानों को कम दर पर ऋण उपलब्ध कराते हैं जिससे किसान साहूकार के शोषण से दूर रहें। सरकार इसके लिए दायित्वों और समझदारी के साथ पूरा करने का दवाब भी डालती है।
बावजूद इतनी कर्मठता के सरकार किसी की भी आए लेकिन बैंककर्मियों के प्रति सहानुभूति नहीं होती। नेताओं के शह पर बड़े बड़े उद्योगपति जानबूझकर बैंक की रक़म नहीं चुकाते जिससे एन पी ए खातों से काफ़ी नुक़सान होता है। सरकारों की ज़िम्मेदारी बनती है कि ऐसे लोगों पर रिपोर्ट दर्ज कर उनसे वसूली की कारवाई करे लेकिन इसके उलट बैंककर्मी पर ही कारवाई होती है। कर्मचारियों पर काम के अत्याधिक बोझ होने से स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।
विमुद्रीकरण अभियान ( Demonitization ) में बैंककर्मीयों की अहम भूमिका थी जिन्होंने रात दिन एक कर के देश और देशवासियों की सेवा की थी। ये अलग बात है कि कुछ खादीधारियों के कारण भ्रष्टचार मुक्त सुविधा के इस महा अभियान में भी उन्हें बदनामी हाथ लगी। जनधन खाते खुलवाने में लम्बी लगी क़तारें को उन्होंने बख़ूबी सम्भाला। जो आज सरकार के लिए जरूरतमंद लोगों तक सहायता राशि सीधे पहुंचाने में सहायक सिद्ध हुई है।
आए दिन लोग बैंककर्मी की शिकायत करते हैं। जिससे उनके काम पड़ असर पड़ता है। जाली नोट मिलने से उन्हें अपने पास से भुगतान करना पड़ता है जिससे उन्हें नुक़सान होता है। कभी कभी ग्राहक कम नोट देकर चले जाते हैं इसका भी भुगतान उन्हे ही करना पड़ता है।
एक जमाने में बैंक कर्मी की तूती बोलती थी। बैंक की नौकरी सम्मानजनक मानी जाती थी। लेकिन कुछ वर्षों से हाशिए पर चले गए। बैंकिंग उद्योग का वर्तमान परिवेश दिनों दिन चुनौती पूर्ण होता जा रहा है। देश की अर्थवयवस्था में मंदी आने से गुणवत्ता की चुनौतियां बनी हुई है।बैंकों का विलय हो चुका है जिसका परिणाम कुछ वर्षों बाद ही मालूम पड़ेगा।
इस चुनौतीपूर्ण परिवेश में ये ग्राहक सेवा को उन्नत स्तर पर के जाने की कोशिश कर रहे हैं। बैंक को इस संकट में सिर्फ़ उनके वेंडर ही मदद करते हैं।
माइक्रोकाउंट्स की पूरी टीम नोट गिनने की मशीन और नोट सॉर्टिंग मशीन की देखरेख में लगे रहते हैं जिससे बैंक का काम नहीं रुके। इसी प्रकार ए टी एम वेंडर भी सेवाएँ दे रहें हैं।
सरकार बैंक कर्मियों व अधिकारियों की मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करें। ग्राहकों को भी सहयोग करना चाहिए। बैंक के उच्च अधिकारियों को भी अपने शाखाओं को वह सारी टेक्नोलॉजी मुहैया कराना चाहिए जिससे उनका काम आसान हो।
प्रधान मंत्री के 5 Trillion economy के सपनों को साकार करने में हमारे बैंककर्मी का economy soldiers के रूप में बहुत बड़ी भूमिका होगी।
Salute to bankers !!
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