Friday, 31 July 2020

मुंशी प्रेमचंद को सच्ची श्रद्धांजली

आज करोना काल में दुनिया जितनी विचारवान है मेरी जानकारी में पहले कभी नहीं थी। राजनैतिक,सामाजिक एवं आर्थिक सबकुछ इस करोना ने बदल दिया है।
वर्तमान समय हमारे सामने बहुत सी  समस्याएं लेकर आई है। सारी दुनिया के लेखकों, कवियों को आगे आना चाहिए क्योंकि सभी लोग एक दूसरे की समस्याओं से परिचित हैं। कहानी और कविताओं के जरिए लोगों में हिम्मत, आत्मविश्वास एवं नई चेतनाओं को जगाने की जरूरत है। आज लेखक एवं कवि की जिम्मेदारी बढ़ गई है क्योंकि लेखक और कवियों ने हमेशा अपने कलम से समाज में चेतना को जगाया है। इसलिए आज विज्ञान और राजनीति से मायूस दुनिया की नज़रें लेखक और कवि की तरफ है।

आज मुंशी प्रेमचंद की जयंती है।  ईदगाह, शतरंज के खिलाड़ी, नमक का दारोगा, कर्मभूमि जैसे उपन्यास लिखने वाले प्रेमचंद जी आज २१ वीं शताब्दी में भी लोगों के दिल में बसते हैं।  प्रेमचंद, दिनकर जैसे लोगों ने अपने कलम से समाज को बदल दिया। वर्तमान परिस्थिति में लोगों में स्फूर्ति,साहस, विश्वास को जगाना ही प्रेमचंद जी को सच्ची श्रद्धांजली होगी।

Tuesday, 28 July 2020

वक़्त है भारत खुद को महाशक्ति के रूप में सोचे

वक़्त है भारत खुद को महाशक्ति की तरह सोचे।
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मै अपने देश के प्रति समर्पित हूं किसी सरकार के प्रति मेरी निष्ठा नहीं बंधी है। सरकार किसी दल की हो उसके काम पर प्रशंसा और आलोचना की जानी चाहिए। सरकार की गलत निर्णय एवं नीतियों का विरोध भी होना चाहिए। लेकिन अच्छी नीति का  विरोध नहीं होना चाहिए।

प्रधान मंत्री मोदी ने अनेक साहसिक निर्णय लिया है जैसे जम्मू काश्मीर एवं लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाना, आर्टिकल ३७० हटाना, पाकिस्तान एवं मयनमार में सर्जिकल स्ट्राइक करना, सी ए ए  लगाना इत्यादि। लेकिन चीन के मामले में नरेंद्र  मोदी  का वह साहस नहीं दिख रहा है जिसकी जनता को अपेक्षा थी। भारत उसकी कूटनीति और आर्थिक ताकत को लेकर आशंकित है जिसकी वजह से टकराव के बजाय समझौते की पहल कर रहा है। प्रतीकात्मक रूप से कुछ चाइनीज ऐप्स को प्रतिबंधित कर सरकार ने अपनी इज्जत बचाई है। भाजपा ही नहीं  अब तक की सारी सरकारों का चीन के प्रति ऐसा ही रुख रहा है। चीन संजुक्त राष्ट्र संघ में काश्मीर का मुद्दा उठाता रहा है। चीन परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह एन एस जी में भारत का रास्ता रोक हुए है। लेकिन भारत  की सरकारें  कभी किसी बहुपक्षीय मंच पर चीन को लेकर सवाल नहीं उठाए। चीन में मुसलमानों की स्थिति को लेकर भारत सवाल उठा सकता है। इससे भारत को  मुस्लिम देशों का समर्थन मिल सकता है।
लेकिन मालूम नहीं क्यों भारत सरकार ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती जिससे चीन नाराज़ हो जाए। ऐसा प्रतीत होता है जैसे दलाई लामा की राजनीतिक गतिविधियां बंद करा दी गई है। प्रधान मंत्री मोदी द्वारा दलाई लामा की जन्मदिन के अवसर पर बधाई संदेश का ट्विटर आदि पर  नहीं दिखना  आश्चर्य की बात है। बाजपेई सरकार ने  भी तिब्बत को चीन का हिस्सा माना था।  गलवान घाटी वाली घटना के बाद व्हाट्सएप पर "  बॉयकॉट चीन " के नारों  से भर गया था।  लेकिन कुछ  ही हफ्ते में सारे नारे गायब हो गए।  कहीं ऐसा तो नहीं  भाजपा के कार्यकर्ता को ऐसा करने से  रोका गया हो।  
क्या हमे चीन से खौफ है।  वक़्त  आ गया है भारत खुद को महाशक्ति की तरह सोचे। गलवान घाटी के हादसे ने भी यही साबित किया है कि भले ही आज का भारत  १९६२ जैसा नहीं है पर यह सच है कि चीन की चुनौतियों से पूरी तरह से निपटने मै उम्मीद के रूप में कामयाब नहीं है।  इस स्थिति को बदलने की आवश्यकता है।  हमे अपने देश की अर्थतंत्र को  मजबूत करना होगा।  आज अधिकतर देश सेना से ज्यादा आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में लगे हुए हैं। हमे हर हाल में आत्मनिर्भर बनना होगा। हमे चीन और अमेरिका  दोनों पर आर्थिक निर्भरता कम करनी होगी। हमे अपनी परंपरागत उद्योग धंधों को फिर से खड़ा करना होगा। हमे ऐसा माहौल बनाना होगा जिससे प्रतिभाओं का पलायन नहीं हो। भारत के लिए यह सुअवसर है कि अपनी अंदरुनी ढांचे और कौशल को  दुरुस्त करे और महाशक्ति बने। 

चीन भारत  को युद्ध में ऊलझा कर उसी तरह महाशक्ति बनने में अवरोध खड़े कर रहा है जिस प्रकार सन् १९५०-६० के दशक में अमेरका ने चीन को युद्ध में उलझाए  रखा था। अंततः चीन मजबूर होकर अमेरिका का बाज़ार बन गया था।  अब चीन भारत को अपना बाज़ार बनाकर पूर्व की अमेरिकी नीति की पुनरावृत्ति करना चाह रहा है। इससे भारत को बचना होगा।  

Saturday, 18 July 2020

पर्यावरण को जन आन्दोलन बनाना ज़रूरी

कहीं आग लगती है तो मुहल्ले के सभी लोग दौड़ते है। कोई बालटियों में पानी लेकर दौड़ता है तो कोई धूल मिट्टी फेंकता है।सभी लोग कुछ न कुछ करते हैं जिससे आग पर जल्द से जल्द क़ाबू की जाए।ऐसा तो नहीं होता कि सभी हाँथों को बाँध कर फ़ायर ब्रिगेड की इंतज़ार करते हैं।
इसी प्रकार पर्यावरण को बचाने के लिए हम सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों के ही भरोसे कैसे रह सकते हैं। जलवायु बदल रही है तो इसमें हम क्या करें,  हमने थोड़े ही न तापमान बढ़ाया है। ये सब तो सरकारों का काम है। पूरे दूनिया में तापमान बढ़ रहा है मेरे सिर्फ़ अकेले से क्या होगा ? ऐसे सोच से बचना चाहिए। स्वार्थपूर्ण प्रवृति वाले ये बोल अक्सर सुनने को मिलता है लेकिन यह नुक़सानदेह है। एक एक व्यक्ति को पर्यावरण बचाने के लिए आगे आना चाहिए। हमें यह समझना ज़रूरी है कि सब कुछ सरकारें नहीं कर सकतीं हमारी भी ज़िम्मेवारी बनती है।
बारिश की बूँदों को संजोकर रखना, नदी, समुद्र में पौलिथिन, प्लास्टिक को नहीं फेंकना, सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करना, पेड़ों को लगाना, सिंगल यूज़ प्लास्टिक को इस्तेमाल नहीं करना इत्यादि काम प्रत्येक व्यक्ति का है। गाँव ख़ाली हो रहे हैं और शहरों में रहने की जगह नहीं है। यह असंतुलन हमलोग ख़ुद बढ़ा रहे हैं। अतः सभी को असंतुलन से पैदा ऊँच नीच का ज्ञान आवश्यक है। प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक, आदि समस्याओं का संरक्षण तभी संभव होगा जब पर्यावरण सम्बन्धी जनचेतना होगी। अशुद्ध वातावरण से मानव का विनाश अवश्यमभावी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि शीघ्र ही यदि प्रकृति का संतुलन क़ायम न किया गया तो हमें औक्सीजन गैस के सिलिंडर साथ लेकर जीवन के लिए भटकना होगा। मानव को जितनी औक्सीजन की आवश्यकता होती है उसका लगभग आधा भाग सूर्य से प्राप्त होता है। किंतु प्रकृति के असंतुलन के फलस्वरूप हमें वह लाभ नहीं मिल पा रहा है। गाड़ियों और अन्य प्रकार के ध्वनि प्रदूषण से दिल की रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। रासायनिक खाद व अन्य रासायनिक तत्वों के पानी में घुलमिल जाने से जल हानिकारक होता जा रहा है। व्यक्ति के चारों ओर जो कुछ भी है पर्यावरण के अंतर्गत है। इस पर्यावरण ने सारी सृष्टि को सदियों से बचाए रखा है। यदि हम स्वयं  को या समस्त सृष्टि को बचाए रखना चाहते हैं तो पर्यावरण को सरकार के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए। भारत सरकार ने क्लायीमेट  चेंज की चुनौतियों को प्राथमिकता दी है। पिछले पाँच साल में भारत ने 38 मिलियन कार्बन उत्सर्जन कम किया है। सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का अभियान चलाया गया है। फिर भी अभी सरकार के सामने बहुत से पर्यावरण सम्बन्धी चुनौतियाँ हैं जिसे करना बाक़ी है। बरहाल जो काम सरकारों का है वह करती रहेगी लेकिन यह धरती हमारी है इसे बचाना हमारी ज़िम्मेवारी है। ज़रूरी है कि हम भी अपनी सामुदायिक व व्यक्तिगत भूमिका का आँकलन करें और उन्हें अपनी आदत बनाए। हमें पूरी ईमानदारी से पर्यावरण के सुधार में जुट जाना चाहिए जिससे क़ुदरत के घरौंदे बच जाए। पर्यावरण के लिए मूलमंत्र एक ही है “ क़ुदरत से जितना और जैसे लें उसे कम से कम उतना और वैसा लौटाएँ “।
चित्र : सौजन्य गूगल

Wednesday, 15 July 2020

अगला प्रधान मंत्री कौन ?

मुझे नितिन गड़करी से मिलने का अवसर फ़िक्की ( FICCI ) के एक कार्यक्रम के दौरान मिला था। उनके द्वारा दिए गए भाषण से बहुत प्रभावित हुआ था। भाषण के बाद वहाँ लगाए गए विभिन्न स्टालों का मुआयना के वक़्त मैं भी उनके साथ था। जिस प्रकार वह आइ॰आइ॰टी॰ मुंबई और दूसरे स्टाल पर उनके उत्पादों पर चर्चा करते हुए सुझाव दे रहे थे मैं हैरान था। आम तौर पर लोगों पर राजनीतिज्ञ की अवधारणा ग़लत बनी हुई है लेकिन गड़करी एक समझदार, जानकार और सुलझे हुए व्यक्ति हैं। उनके पास ऐसे कई योजनाएँ हैं जो कार्यान्वित हो जाए तो देश से ग़रीबी, बेरोज़गारी दूर हो जाएगी।
केंद्रीय मंत्री के तौर पर नितिन गड़करी सड़क परिवहन मंत्रालय एवं MSME मंत्रालय संभाल रहे हैं।देश में सड़क बनाने वाले मंत्री से भी जाने जाते हैं। छोटे और मध्यम उद्योग दोनो सम्भालते हैं।लक्ष्य निर्धारित करते हैं फिर अफ़सरों के साथ मिलकर निर्धारित समय में कार्यान्वित करते हैं।  वह अपनी बातों को सीधा,सरल और आँकड़ों में लोगों को समझते हैं। उन्होंने MSME पर अपना ध्यान केंद्रित करने का कारण बताया। उन्होंने बताया कि MSME से देश में 28 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि होती है तथा 49 प्रतिशत का निर्यात होता है। इससे 11 करोड़ रोज़गार का सृजन होता है। उन्होंने अपने कार्यकाल में सड़कों की जाल बिछा दी। देश की सबसे पहली बनी मुंबई पुणे एक्सप्रेस हाईवे गड़करी की देन है। उनका लक्ष्य था 40 कि॰मी॰ प्रतिदिन सड़क बनाने का जो आज 32 कि॰मी॰ तक पहुँच गया है। उन्होंने हमेशा इस बात पर बल दिया है कि ग्रामीण क्षेत्र एवं वनीय क्षेत्र में कुटीर उद्योग उद्योग लगे और उन उत्पादों को निर्यात हो। इसलिए उनका प्रयास रहा है कि सड़के उन्ही क्षेत्र में बने जिससे आवागमन की अच्छी सुविधा मिल सके। इसका उदाहरण नयी निर्मणधिन दिल्ली मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग है।
उनके पास कमाल के योजनाएँ होतीं हैं जो हैरान करतीं हैं।उन्होंने वैकल्पिक ईंधन बायोडीज़ल को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया जिससे ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम हो। बिजली से चलने वाली गाड़ियों को देश में अनिवार्य करना इनकी प्राथमिकता है। उनका भारत में बिजली से चलने वाली गाड़ियों के निर्माण का हब बनाने की योजना है। गंगा नदी में मालवाहक जहाज़ का चलाना उन्होंने शुरू की जिससे समय और ईंधन की बचत होती है। 
नरेंद्र मोदी वर्ष 2024 तक प्रधान मंत्री रहेंगे इसमें कोई शक नहीं। लेकिन 2024 के चुनाव के बाद उनका प्रधान मंत्री बने रहना मुश्किल हो सकता है जिसका कारण ढलती उम्र होगी। उसके बाद भाजपा का नेतृत्व कौन करेगा यह बहुत बड़ा सवाल भाजपा और संघ के सामने होगा। भाजपा के पास दो विकल्प होंगे नितिन गड़करी और अमित शाह। दोनो की उम्र कम और अपनी विशिष्टता है। आज अमित शाह की लोकप्रियता ज़्यादा हो सकती है लेकिन यह ज़्यादा दिनों तक रहेगी इसमें शक है।
इस बात से शायद ही किसी का मतभेद हो कि गड़करी के व्यक्तित्व के गुणों में विशिष्ट उदारता के गुण की तरफ़ लोगों का आकर्षण रहा है। गड़करी और शाह ने शुरू से ही राजनैतिक जीवन संघ में ही बिताया। इसके बावजूद गड़करी की छवि एक उदार नेता की है। गड़करी को कभी भी जुमले देते नहीं सुना। जबकि आज सरेआम कोई बयान देकर उसे झूठलाने की राजनैतिक शैली भारतीय राजनीति में हद दर्जे तक परवान बढ़ चुकी है। अंत में मैं यह कह सकता हूँ कि नितिन गड़करी की तरह जानकार और सूझ बुझ वाले नेता भारतीय राजनीति में कम हैं।

Saturday, 11 July 2020

जनसंख्या वृद्धि चुनौती भी अवसर भी

विश्व जनसंख्या दिवस पर 
पूरे विश्व में बढ़ती आबादी को देखते हुए 11 जुलाई 1989 से जनसंख्या को नियंत्रित करने के उद्देश्य से “ विश्व जनसंख्या दिवस “ मनाने की शुरुआत हुई। इस दिन बढ़ती जनसंख्या से होने वाले परिणामों पर प्रकाश डाला जाता है। 
आज विश्व की कुल आबादी सात अरब से ज़्यादा है जिनमे सबसे ज़्यादा चीन और दूसरे स्थान पर भारत है। बढ़ती जनसंख्या इतनी बड़ी समस्या है जिसका अनुमान लगाना मुश्किल है। किसी देश की जनसंख्या जितनी ज़्यादा होगी उस देश की प्राकृतिक संसाधनों और श्रोतों की ज़्यादा ज़रूरत होगी। अबाध रूप से बढ़ती जनसंख्या और उस गति से समाफ़्त होती प्राकृतिक सम्पदाएँ और संसाधन हमारे विनाश के सूचक हैं। जनसंख्या बढ़ने से शहरीकरण के प्रयत्नों के फलस्वरूप वनों एवं वनस्पति क्षेत्रों की संख्या में कमी आ रही है।इस शहरीकरण की बढ़ने न देना और बढ़ती जनसंख्या को रोकना भी आवश्यक है अन्यथा हमारा पर्यावरण संतुलन एक दिन बुरी तरह से चरमरा जाएगा।
अधिकांश देशों में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के चलते ग़रीबी बेकारी बढ़ने के साथ अन्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। हालाँकि देश की संसाधनों में भी बढ़ोतरी होती है। लेकिन जनसंख्या वृद्धि दर की तुलना में वह अपेक्षाकृत नहीं बढ़ पाती। इससे कुछ समय बाद असंतुलन की स्थिति पैदा होती है। आज सर्वविदित है कि भारत में जनसंख्या एक भयानक रूप ले चुकी है जिससे विभिन्न धार्मिक जनसंख्या अनुपात निरंतर असंतुलित हो रहा है। चीन ने इस समस्या को भाँप लिया था। इस लिए कई दशक पहले उसने एक बच्चे से अधिक पैदा करने पर कई तरह के दंड लगा दिए थे जिससे बहुत हद तक नियंत्रित करने में सफल रहा ।
सात अरब की आबादी वाले भारत विश्व में 1.3 अरब जनसंख्या के साथ दूसरे स्थान पर आता है और देश की तमाम समस्याओं के साथ जनसंख्या भी एक गम्भीर समस्या है।
दिनोंदिन तेज़ी से बढ़ती हुई जनसंख्या हमारे व्यक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय जीवन के लिए गम्भीर समस्या बनती जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है यदि इसपर नियंत्रण नहीं किया गया तो हमारी विकास की योजनाएँ धरी रह जाएँगी। व्यक्ति का जीवन स्तर भी उँचा नहीं उठ पाएगा।अभी भी हमारे यहाँ बहुत लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता। अगर मिल भी जाता है तो उसमें पौष्टिकता नहीं रहता। अभी भी हमें विदेशों से अन्न मंगाना पड़ता है जिसका कारण है तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या।

इस बढ़ती जनसंख्या के कई कारण है जैसे मृत्यु दर के मुक़ाबले जन्म दर की अधिकता, परिवार नियोजन की कमी, धार्मिक रूढ़िवादिता, कम उम्र में शादी, ग़रीबी, शिक्षा की कमी इत्यादि।
इसका दुष्परिणाम  देश पर पड़ता है जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर दवाब, ग़रीबी में बढ़ोतरी, पलायन की मजबूरी, अमीर ग़रीब का अंतर इत्यादि।
ऐसा नहीं है कि इसका समाधान नहीं है। इसका समाधान है जैसे परिवार नियोजन, अधिक उम्र में शादी, महिलाओं का सशक्तिकरण, प्राथमिक स्वास्थ्य में सुधार, शिक्षा में सुधार, जागरूकता फैलाकर इत्यादि।
लेकिन इन सब समस्याओं के बावजूद भारत में यही बढ़ती जनसंख्या को अवसर के रूप में भी देखा जा सकता है। कुछ दशक पहले तक जो लोग आबादी को समस्या मानते रहे हैं आज वे अपनी सोच को बदल रहे हैं। हमारे देश की बड़ी आबादी हमारा बड़ा संसाधन बन चुकी है।दूनिया में भारतीय आबादी की हिस्सेदारी अट्ठारह फ़ीसदी है। वह बड़ी उत्पादक है तो बड़े उपभोक्ता के रूप में भी घरेलू खपत को बढ़ा रही है। इस आबादी के बूते अधिकांश देशों की अर्थव्यव्स्था कुलाँचे  भर रही है। यह 91 फ़ीसद आबादी 59 साल से कम उम्र की है। जहाँ दूनिया के अधिकांश देश बीमार और अपेक्षाकृत अधिक बुज़ुर्ग आबादी के बोझ से दबे हैं वहीं हमारे पास युवा और कार्यशील मानव संसाधन का ज़ख़ीरा है। एक रिपोर्ट के अनुसार 10 से 24 आयु वर्ग के भारतीय आबादी में 28 फ़ीसद है। यह देश की असली सम्पदा हैं। इसके बूते भारत आर्थिक कुलाँचे भर सकेगा।ज़रूरत सिर्फ़ इन युवाओं की बेहतर शिक्षा, स्वस्थ में निवेश करने की और उनके अधिकारों को संरक्षित किए जाने की है। यह युवा आबादी ही भविष्य की आविष्कारक, सृजनकर्ता, निर्माता और नेता हैं। लेकिन वे भविष्य तभी बदल सकते हैं जब उनके पास हूनर होगा, कौशल होगा, वे स्वस्थ होंगे, निर्णय ले सकेंगे और जीवन में अपनी रुचि की आगे बढ़ा सकेंगे।
हर चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है। ज़रूरत है राह दीखाने वाले की , एक कुशल नेतृत्व की।

अपराध का राजनीति करण या राजनीति का अपराधी करण

राजनीति का अपराधिकरण या अपराध का रजनीतिकरण
कानपुर में पिछले हफ़्ते आठ पुलिसकर्मी  को बेरहमी से हत्या करने वाले विकास दूबे पुलिस इनकाउंटर में मारा गया। पिछले दो दिनों में उसके कई साथियों को भी पुलिस द्वारा मार दिया गया या पकड़ लिया गया। उसकी दीदादिलेरी इस सीमा तक पहुँच गयी थी कि गिरफ़्तारी के लिए आ रही पुलिस दल को उसने पूरी तैयारी से घेर कर उनपर हमला किया जिसमें आठ पुलिसकर्मियों की घटनास्थल पर मौत हो गई और कई घायल होकर अस्पताल में है। जघन्यतम अपराधों के दसियों मामले दर्ज होने के बावजूद विकास दूबे का नाम पुलिस ने कानपुर के शीर्ष दस वांछित अपराधियों की सूची में नहीं डाला गया था। वर्ष 2001 में एक थाने में ही एक नेता की हत्या करने के बावजूद वह बरी हो गया था।क्योंकि उस थाने में मौजूद सभी पुलिसकर्मी गवाही में मुकर गए थे। विकास दूबे का इतना रसूक था कि कानपुर जिले में लोग उसके ख़िलाफ़ बोलने में डरते थे। वहाँ के थाने के पुलिसकर्मी उसके पास या तो मर्ज़ी से या मजबूरी में उसके पास चाय पीने आते थे और उसके आदेशों का पालन करते थे। उसकी सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ उठना बैठना था। हमारे नेता जनता से कम दबंगों के ज़्यादा क़रीब होते हैं। यही नेता इन्हें कारावास से निकलवाने में मदद करते हैं। ये नेता एक साधारण व्यक्ति को गैंगस्टर बनाते हैं। पुलिस-राजनीति-अपराध की पैदाईश है अपराधी। पुलिसकर्मियों को मारने वालों को मार दिया गया लेकिन उसे संरक्षण देने वाले कब  पकड़े जाएँगे यह बहुत बड़ा सवाल है।
आज समाज में पुलिस की छवि बनी है उसके लिए पुलिस ख़ुद ज़िम्मेवार है। आज आम आदमी जितना अपराधियों से डर लगता है उतना ही डर पुलिस से भी है। पुलिस जनता की सहयोगी होने के अपनी दायित्व को भुला दिया है। पुलिस को जैन सेवक बनना चाहिए। पुलिसकर्मी ये भूल जाते हैं कि उनका कर्तव्य सामान्य जन की सुरक्षा प्रदान करना है न कि नेताओं का महिमामंडन करना। पुलिस को आम आदमी की सुरक्षा के प्रति गहरा सम्मान होना चाहिए। पुलिस की प्रतिबद्धता किसी व्यक्ति अथवा राजनीति दलों के प्रति नहीं हो सकती।
जन सुरक्षा  के लिए बनी पुलिस ऐसा लगता है कि जैसे उसे जन से कोई लगाव नहीं है बल्कि वे नेताओं और दबंगों की सुरक्षा में अपना वक़्त देते हैं। नेता पुलिस का प्रयोग अपने तरीक़े से करते हैं। ये नेता पुलिस व उसके विभिन्न संगठन अपने स्वार्थ के लिए तोड़ मरोड़ करते हैं। पुलिस को कमज़ोर कर नेताओं ने गुंडों एवं दबंगों की शक्ति का विकास किया। उन्हें माननीय बनाने में सहयोग किया। इसलिए कहा जा सकता है राजनीतिक सत्ता का चरित्र नहीं बदला तो नौकरशाही या पुलिस कैसे बदलेगी ?
पुलिस सुधार आज़ादी के बाद से ही करने की आवश्यकता थी। एक मज़बूत समाज अपनी पुलिस की इज़्ज़त करता है उसे सहयोग देता है वहीं एक कमज़ोर समाज अपनी पुलिस को अविश्वास से देखता है और प्रायः उसे अपने विरोध में खड़ा पाता है। अधिनायक प्रवृति का परिणाम है राजनीति का अपराधिकरण या अपराध का राजनीतिकरण जिसके कारण पुलिस व उसके सहयोगी विभागों में प्रभुत्व अनावश्यक रूप से बढ़ रहा है। यह स्पष्ट है कि आज अपराध को राजनीतिक संरक्षण पाने में कठिनाई नहीं होती और दूसरी ओर अपराध करने की स्वयं पुलिस की बढ़ती जा रही है क्योंकि संवेदनशीलता समाप्त होती जा रही है और उसकी क्रूरता से बेशर्मी बढ़ रही है। तभी हिंसा का विस्तार हो रहा है क्योंकि उसमें असामाजिक तत्वों के अतिरिक्त शासन का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
लोकतंत्र में जनता का वोट ही सब कुछ है। सत्ताधारी द्वारा पुलिस प्रमुख यानि डी॰ जी॰ बुलाए जाते हैं और उनसे कहा जाता है “ ऐसे काम नहीं चलेगा डी॰जी॰साहेब हमें जनता के पास वोट माँगने जाना पड़ेगा। कैसे करेंगे? क्या करेंगे? आप जाने और आपका काम। यही बात डी॰जी॰ अपने आइ॰जी॰ और डी॰आइ॰जी॰ को कहता है । फिर आइ॰जी॰ और डी॰आइ॰जी॰ यही बात अपने एस॰एस॰पी॰ और एस॰पी॰ को पुलिसीया अन्दाज़ में कहता हैं फिर एस॰एस॰पी॰ और एस॰पी॰ थानाध्यक्षों को कहता है और अंत में थानाध्यक्ष करता है तो ठीक नहीं तो लाइन हाज़िर ।
क़ानून एवं व्यवस्था की स्थिति आज इस हालत में पहुँच गयी है कि धीरे धीरे क़ानून ग़ायब होता जा रहा है। बस व्यवस्था बनी हुई है जिसे बचाना मजबूरी है। अभियुक्तों को ज़मानत या अग्रिम ज़मानत देर सवेर मिल ही जाती है और ट्रायल तो अभियुक्तों की मर्ज़ी से चलता है। प्रक्रिया की जाल में क़ानून इतना उलझ जाता है कि उससे निकलकर न्याय हासिल करने में दशकों लग जाते हैं। जब मामला लम्बा खिंचता है तो अक्सर न्याय अभियुक्तों के पक्ष में जाने का अंदेशा रहता है। अभियुक्त लोगों को गोली मारता है, फिरौती लेता है, ज़मीन हड़पता है इससे इसकी सम्पत्ति इतनी बढ़ जाती है जिससे इन्हें लगने लगता है कि दूनिया इनकी मुट्ठी में है।प्रायः ये हड़पी हुई सम्पत्ति के बदौलत सरपंच/मुखिया,पार्षद,विधायक, सांसद यहाँ तक कि मंत्री भी बन जाते हैं। किसी क़ानूनी प्रक्रिया के दाँव पेंच के के चलते 18-20 वर्षों तक मुक़दमा लम्बित रहता है। सारी परिस्थितियाँ जब हर तरह से अनुकूल हो जातीं हैं तो वह बाइज़्ज़त बरी हो जाता है और फिर माननीय भी बन जाता है।गवाह डर और लालच के कारण अदालत में मुकर जाते हैं। न्यायालय को साक्ष्य चाहिए।

पुलिस सुधार बहुत ज़रूरी है। लेकिन जबतक न्यायिक सुधार प्रशासनिक सुधार और चुनावी सुधार नहीं होते तब तक क़ानून एवं व्यवस्था में कोई सुधार नहीं होने वाला। 
क़ानून एवं व्यवस्था के मामले में समग्रता से अत्यंत गहन विचार की आवश्यकता है। सारी समस्या का समाधान मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति में ही निहित है।-न्यायशास्त्र की सदियों पुरानी परिभाषा को बदलना अत्यंत आवश्यक है।

Sunday, 5 July 2020

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोच्च। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर

भारतीय संस्कृति में गुरु का पद सर्वोच्च माना गया है।शास्त्रों में गुरु को ब्रह्म, विष्णु एवं महेश के तुल्य कहा गया है। बल्कि कई लोगों ने इनसे भी अधिक महत्व दिया है। कबीर कहते हैं कि भगवान और गुरु दोनो साथ मिले तो पहले गुरु के चरणों में समर्पित हो जाना चाहिए।परंतु गुरु ऐसा नहीं मानते। प्रथम स्तर पर गुरु बालक को शिक्षा देकर इस योग्य बनाता है कि वह अपने कर्म क्षेत्र में सफल हो सके। द्वितीय स्तर पर गुरु अपने शिष्य के अंतर्मन में व्याप्त अंधकार और विकारों को नष्ट कर प्रकाश की अनुभूति कराता है। यहाँ अंधकार से मेरा तात्पर्य अज्ञान और अविद्या से है तथा प्रकाश का तात्पर्य ज्ञान से है।

 गुरु केवल व्यक्ति नहीं है बल्कि एक तत्व है और वह तत्व किसी भी अवस्था में या रूप में हो सकता है। व्यावहारिक भाषा में हम कह सकते हैं कि गुरु तब तक हैं जब तक कोई स्वार्थ या प्रलोभन न जुड़ा हो।
गुरु का वास्तविक अर्थ जीवन में गुरुता यानि उसे गहराई प्रदान करने वाले व्यक्ति से होता है। सच्चा गुरु वही है जो अपने शिष्य को जीवन में सच्ची राह पर चलने की प्रेरित करे। सभी शास्त्र  हमें शिक्षा देते हैं कि हमें एक गुरु की खोज करनी चाहिए। गुरु शब्द का अर्थ है भारी या जिसमें गुरुता हो।जिसको अधिक ज्ञान हो, वह ज्ञान से भारी हो। इसी विशेषता के आधार पर किसी को योग्य गुरु मानना चाहिए और किसी व्यक्ति को यह नहीं सोचना चाहिए कि मैं सबकुछ जानता हूँ। मुझे कौन शिक्षा दे सकता है ?
प्राचीन काल में बालक को प्रारम्भ से ही गुरुकुल में भेजने की व्यवस्था थी। वहाँ उसे पढ़ाई के साथ तुच्छ सेवक के समान कार्य करना होता था। वह बालक महान राजा या ब्राह्मण का पुत्र क्यों न हो इससे कोई अंतर नहीं पड़ता था। जब तक वह गुरुकुल में रहता था वह तत्काल गुरु का नगण्य सेवक ही रहता था। यदि गुरु अपने शिष्य से छोटे से छोटे काम करने को कहते उसे करने लिए  शिष्य हमेशा तैयार रहते थे। महाभारत, रामायण में गुरुकुल एवं गुरु का विशेष उल्लेख किया गया है। भारतीय संस्कृति में गुरु - शिष्य के सम्बंध को अत्यंत पावन माना गया है। गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए प्राचीन शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु साक्षात परब्रह्म का स्वरूप है। इसलिए हमें ईश्वर से पहले गुरु की वंदना करनी चाहिए।
          गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वर
          गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे    नमः।
जीवन में प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। गुरु वही है जिसे देखकर मन प्रणाम करे जिसके समीप बैठने से हमारे दुर्गुण दूर होते हैं। गुरु के सान्निध्य से जीवन की दिशा और दशा दोनो बदल जाती है। अपनी विलक्षण प्रतिभा और ओजस्वी वाणी के द्वारा भारत की संस्कृति का परचम सम्पूर्ण विश्व में लहराने वाले स्वामी विवेकानंद को जब गुरु रामकृष्ण परमहंस का वरदहस्त मिला तब वह नरेंद्र नाथ से स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। गुरु द्रोणाचार्य की शिक्षा, प्रेरणा और आशीर्वाद ने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में प्रतिष्ठित किया। गोस्वामी तुलसीदास “ हनुमान चालीसा “ में हनुमान जी से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि गुरुदेव की तरह मुझ पर कृपा करें “ जय जय हनुमान गोसाई, कृपा करो गुरुदेव की नाई “

गुरु शिष्य को अंगुली पकड़ कर नहीं चलाता बल्कि उसके मार्ग को प्रकाशित करता है। शिष्य को स्वयं ही उस मार्ग पर चलना होता है। सारे संसार में यह गुरुत्व प्राप्त है। वह प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रत्येक दिन तथा प्रत्येक देश में प्राप्त होता है। केवल शिष्य को खोजी होना चाहिए। उसके अंतःकरन में वह ललक विद्यमान होनी चाहिए कि उसे गुरु मिले। बिना गुरु के संसार रूपी सागर से सम्भव नहीं चाहे वह ब्रह्मा हो अथवा शंकर ही क्यों न हो। श्री राम और श्री कृष्ण साक्षात ईश्वर ईश्वर माने गए हैं किंतु जब वे अवतार लेकर इस धरती पर आए तब वह भी गुरु का ही वरण करते हैं।
वास्तव में जिसके समक्ष जा कर हमारे हृदय में आस्था, विश्वास,तथा प्रेम का उदय हो जाए वस्तुतः वही हमारा गुरु है। वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों में निरंतर गिरावट आती जा रही है। गुरु- शिष्य के पवित्र सम्बन्धों पर पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है। समाज में आवश्यकता है ऐसे गुरुओं की जो दया, क्षमा, सदाचार इत्यादि मानवीय मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए धैर्य, विवेक और त्याग जैसे गुणों से शिष्य को अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले चले।
सदगुरु की तलाश शिष्य को ही नहीं होती बल्कि गुरु भी अपने ज्ञान की धरोहर को सुरक्षित हाँथों में सौंपकर संतुष्ट होकर परमानंद की अनुभूति करता है। गुरु ऐसे शिष्य को मात्र एक बीज देता है और शिष्य भूमि बनाकर उस बीज को अंकुरित करता है। इस प्रकार सच्चा गुरु शिष्य को सही मार्ग निर्देशित करके उसके जीवन मार्ग को प्रशस्त करता है।