Tuesday, 28 July 2020

वक़्त है भारत खुद को महाशक्ति के रूप में सोचे

वक़्त है भारत खुद को महाशक्ति की तरह सोचे।
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मै अपने देश के प्रति समर्पित हूं किसी सरकार के प्रति मेरी निष्ठा नहीं बंधी है। सरकार किसी दल की हो उसके काम पर प्रशंसा और आलोचना की जानी चाहिए। सरकार की गलत निर्णय एवं नीतियों का विरोध भी होना चाहिए। लेकिन अच्छी नीति का  विरोध नहीं होना चाहिए।

प्रधान मंत्री मोदी ने अनेक साहसिक निर्णय लिया है जैसे जम्मू काश्मीर एवं लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाना, आर्टिकल ३७० हटाना, पाकिस्तान एवं मयनमार में सर्जिकल स्ट्राइक करना, सी ए ए  लगाना इत्यादि। लेकिन चीन के मामले में नरेंद्र  मोदी  का वह साहस नहीं दिख रहा है जिसकी जनता को अपेक्षा थी। भारत उसकी कूटनीति और आर्थिक ताकत को लेकर आशंकित है जिसकी वजह से टकराव के बजाय समझौते की पहल कर रहा है। प्रतीकात्मक रूप से कुछ चाइनीज ऐप्स को प्रतिबंधित कर सरकार ने अपनी इज्जत बचाई है। भाजपा ही नहीं  अब तक की सारी सरकारों का चीन के प्रति ऐसा ही रुख रहा है। चीन संजुक्त राष्ट्र संघ में काश्मीर का मुद्दा उठाता रहा है। चीन परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह एन एस जी में भारत का रास्ता रोक हुए है। लेकिन भारत  की सरकारें  कभी किसी बहुपक्षीय मंच पर चीन को लेकर सवाल नहीं उठाए। चीन में मुसलमानों की स्थिति को लेकर भारत सवाल उठा सकता है। इससे भारत को  मुस्लिम देशों का समर्थन मिल सकता है।
लेकिन मालूम नहीं क्यों भारत सरकार ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती जिससे चीन नाराज़ हो जाए। ऐसा प्रतीत होता है जैसे दलाई लामा की राजनीतिक गतिविधियां बंद करा दी गई है। प्रधान मंत्री मोदी द्वारा दलाई लामा की जन्मदिन के अवसर पर बधाई संदेश का ट्विटर आदि पर  नहीं दिखना  आश्चर्य की बात है। बाजपेई सरकार ने  भी तिब्बत को चीन का हिस्सा माना था।  गलवान घाटी वाली घटना के बाद व्हाट्सएप पर "  बॉयकॉट चीन " के नारों  से भर गया था।  लेकिन कुछ  ही हफ्ते में सारे नारे गायब हो गए।  कहीं ऐसा तो नहीं  भाजपा के कार्यकर्ता को ऐसा करने से  रोका गया हो।  
क्या हमे चीन से खौफ है।  वक़्त  आ गया है भारत खुद को महाशक्ति की तरह सोचे। गलवान घाटी के हादसे ने भी यही साबित किया है कि भले ही आज का भारत  १९६२ जैसा नहीं है पर यह सच है कि चीन की चुनौतियों से पूरी तरह से निपटने मै उम्मीद के रूप में कामयाब नहीं है।  इस स्थिति को बदलने की आवश्यकता है।  हमे अपने देश की अर्थतंत्र को  मजबूत करना होगा।  आज अधिकतर देश सेना से ज्यादा आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में लगे हुए हैं। हमे हर हाल में आत्मनिर्भर बनना होगा। हमे चीन और अमेरिका  दोनों पर आर्थिक निर्भरता कम करनी होगी। हमे अपनी परंपरागत उद्योग धंधों को फिर से खड़ा करना होगा। हमे ऐसा माहौल बनाना होगा जिससे प्रतिभाओं का पलायन नहीं हो। भारत के लिए यह सुअवसर है कि अपनी अंदरुनी ढांचे और कौशल को  दुरुस्त करे और महाशक्ति बने। 

चीन भारत  को युद्ध में ऊलझा कर उसी तरह महाशक्ति बनने में अवरोध खड़े कर रहा है जिस प्रकार सन् १९५०-६० के दशक में अमेरका ने चीन को युद्ध में उलझाए  रखा था। अंततः चीन मजबूर होकर अमेरिका का बाज़ार बन गया था।  अब चीन भारत को अपना बाज़ार बनाकर पूर्व की अमेरिकी नीति की पुनरावृत्ति करना चाह रहा है। इससे भारत को बचना होगा।  

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