Wednesday, 23 September 2020

कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव


एक ख्वाहिश, एक सपना, एक भूख, एक मातृ प्रेम ,
इन सबका मिला जुला रूप है भारत का किसान।

किसान सभी लोगों के लिए खाद्द सामाग्री का उत्पादन करता  हैं इसलिए हम उसे  अन्नदाता भी कहते हैं। भारत हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है। ज़ाहिर है किसानों की दशा अच्छी रहनी चाहिए थी किन्तु ऐसा नहीं है। भारत में किसानों द्वारा आत्महत्या सबसे ज्यादा की  जाती है। हालांकि सभी सरकारें किसानों को कर्ज माफी के लिए समर्थन करती रहीं लेकिन किसानों की आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाने की नहीं सोची गई।  उन्हें आत्मनिर्भर नहीं बनाया गया। आए दिन किसानों द्वारा आंदोलन करना आम बात हो गई थी। 

जबकि कुछ विकसित देशों में किसान शब्द का उपयोग किसी व्यवसाई या पेशेवर के लिए किया जाता है जिसके पास फसल उगाने के लिए ज़मीन और रुचि तो होता ही है पर साथ ही वह लोगों को उसमे काम करने के लिए भी रखता है। भारत में कृषि सुधार के लिए एवं विकसित देशों के साथ खड़े करने के उद्देश्य से मोदी सरकार द्वारा दो महत्व पूर्ण विधेयक कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य ( संवर्धन और सरलीकरण ) विधेयक 2020 और कृषक ( सशक्तिकरण और संरक्षण ) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर विधेयक 2020 को लोक सभा एवं राज्य सभा में पारित कराया गया। यह स्वागत योग्य है।
अब देश में " एक देश एक बाज़ार " होगा जहां कोई भी व्यक्ति को किसी भी राज्य के बाज़ार में बेचने की आज़ादी होगी। व्यापारी पहले एक मंडी में काम करता था अब पूरे देश में करेगा। इसमें किसान को भुगतान तीन दिनों के भीतर हो इसका प्रावधान किया गया है। स्पष्ट है कृषि व्यापार खुल रहा है। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। छोटा व्यापारी या किसान बड़े व्यापारी के साथ कमाएंगे। ये कहा जा सकता है कि किसान मण्डी की जंजीरों से आज़ाद हुआ। बिचौलियों का खात्मा हो गया। कॉर्पोरेट फार्मिंग को बढ़ावा मिलेगा। ये विधेयक सही मायने में किसान को अपने फसल के भंडारण और बिक्री की आज़ादी देगा एवं बिचौलियों के चुंगल से उन्हें मुक्त करेगा। किसान अपनी मर्ज़ी का मालिक होगा। किसानों को उपज बेचने का विकल्प देकर उन्हें सशक्त बनाया गया है। मुझे नहीं लगता कि किसानों को सशक्त बनाने के लिए कभी इतना बड़ा सुधार ( reform ) किया गया था। 

लेकिन किसानों के हितों पर अपनी राजनीति सेंकने वाले कई विपक्षी दलों को बहुत बड़ा आघात लगा। किसानों के बहाने विपक्ष मोदी सरकार को झुकाना चाहती है। इसी कारण कृषि संबंधी विधेयक का विरोध हो रहा है। विरोध जितना किसान नहीं कर रहे हैं उससे ज्यादा विपक्षी दल कर रहे हैं।कांग्रेस तो खुद इस विधेयक को लाना चाहती थी एवं अपने कार्यकाल में ही कानून लाना चाहती थी किन्तु इच्छा शक्ति के अभाव में नहीं कर पाई। बिहार में चुनाव है और दूसरे राज्यों में जल्द होने वाले हैं ऐसे चुनावी माहौल में कांग्रेस को मोदी का  किसान प्रेम और कृषि संबंधित फैसले रास नहीं आ रही है। विपक्ष को किसानों की चिंता नहीं है। उन्हें चिंता है तो सिर्फ वोट बैंक की। क्योंकि किसान बहुत बड़ा वोट बैंक है। किसानों को भ्रमित किया जा रहा है। 

किसान संगठनों का आरोप है कि नए कानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉर्पोरेट घरानों के हांथों में चला जाएगा और उसका नुकसान किसानों को होगा। लेकिन इन किसान संगठनों को किसानों से ज्यादा चिंता है आढ़तियों की। आढ़तियों एवं एजेंटों को करीब 2.5 प्रतिशत का नुकसान होगा। 
लेकिन इन सब के बीच किसानों को समझना होगा कि ये कृषि विधेयक उन्हें बिचौलियों और आढ़तियों की मनमानी से आज़ादी दिलाएंगे और किसानों की आय को दोगुनी करने में सहायक होंगे।
ऐसा लगता है शायद सरकार विधेयकों से जुड़ी जानकारी किसानों तक नहीं पहुंचा पाई। हालाकि प्रधान मंत्री ने खुद आश्वासन दिया कि एमएसपी की व्यवस्था जारी रहेगी। मण्डी की व्यवस्था यथावत रहेगी। लेकिन शायद थोड़ा विलंब हुआ। किसानों के लिए कल्याणकारी और दूरगामी प्रभाव वाले जानकारियां किसानों तक नहीं पहुंचा पाई जिससे पंजाब एवं हरियाणा के किसानों में भ्रम पैदा हो गया। इन विधेयकों से कॉर्पोरेट घरानों को फायदा, कालाबाजारी और किसानों का शोषण जैसी अफवाहें भी उड़ाई जा रही है जिससे किसान विरोध में सड़क पर उतर आएं।सरकार को इन भ्रांतियों की स्पष्टीकरण देना चाहिए और सभी किसानों तक विधेयक से जुड़ी जानकारियां सरल भाषा में पहुंचाना चाहिए।

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