केरल के साइलेंट वैली में घटी घटना मन को विचलित कर दिया। एक हथिनी जो भूखी और गर्भिणी थी इंसानों की बस्ती में पहुँच गयी शायद यह सोच कर कि उसकी क्षुधा शांत हो जाएगी। लेकिन शायद उसे यह नहीं मालूम था कि इंसान हैवान होते जा रहे हैं। किसी ने अनानास में पटाखे भरकर खिला दिया। हथिनीऔर उसके गर्व में पल रहे बच्चों ने प्राण त्याग दिया। यह मात्र हत्या नहीं हत्याएँ थीं। हत्या पशु, माँ, शिशु, विश्वास, और इंसानियत की हुई।
इसके ठीक दो दिनों के बाद बिलासपुर ( हिमाचल प्रदेश ) में एक गाय के साथ ऐसी ही घटना घटी। किसी ने गर्भिणी गाय को विस्फोटक से घायल कर दिया। लेकिन वक़्त पर उपचार होने से गाय और बछड़े दोनो को बचा लिया गया।
यह तो हैवानियत की दृढ़ हो गयी। मानव की मानवता कहाँ खोती जा रही है। पशु पक्षी का उत्पीड़न जिस प्रकार से किया जा रहा है उसे देखकर हृदय दुखित होता है। पशुओं पर होने वाले अत्याचार सारे मानव जाति पर कलंक है।
एक तरफ़ मानव अमानवीय कार्य में लगे हैं तो दूसरी तरफ़ जानवर मनुष्य को जीवन का एक बड़ा संदेश दे जाते हैं । अभी हाल में एक वीडीयो आया था जिसमें मगरमच्छ एक मादा हिरण को पकड़ लेता है। कुछ देर दबोचने के बाद मगरमच्छ को एहसास होता है कि मादा हिरण गर्भवती है तो उसने अपने जबड़े खोलकर उस मादा हिरण को आज़ाद कर देता है।
इसी प्रकार दक्षिण अफ़्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क की घटना है। एक शेरनी अपने बच्चे को लेकर जा रही थी और एक वाइल्ड लाइफ़ फ़ोटोग्राफ़र तस्वीर के लिए उसका पीछा कर रहा था। कड़ी धूप में चलते चलते शेरनी थक रही थी।
अचानक एक हाथी मामला भाँप कर उसने शेरनी की मदद करनी चाही। हाथी ने जैसे ही अपनी सूँड़ नीचे झुका कर पालना जैसा बनाया शेरनी का बच्चा उस पर जा बैठा।तीनों आगे की ओर निकल लिए।
मानव पूरे प्राणी जगत में सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है। प्रकृति ने मानव को अन्य जीवों के अपेक्षा एक विलक्षण वस्तु ‘ मस्तिष्क ‘ प्रदान किया है जिसका उसने दुरुपयोग किया। उसने अपने जैविक और भौतिक वाद के चक्कर में पड़कर और स्वार्थ के कारण सम्पूर्ण प्रकृति, पर्यावरण एवं जीव जंतु को क्षत-विक्षत कर दिया। पशुओं के प्रति होती आयी मानवीय क्रूरता आज कोई नई बात नहीं है। नि:संदेह इस घटना ने पशुओं के प्रति अमानवीय व्यवहार पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। महावीर ने जीवों पर अत्याचार होते देखा तो उनकी रह काँप उठी और उन्होंने समझाया कि जीव हत्या मत करो क्योंकि उन्हें भी वैसी ही पीड़ा होती है जैसी तुम्हें।
हमारी संस्कृति का एक ‘ मूल मंत्र ‘ अहिंसा परमो धर्म ‘ भी मानव की बलि चढ़ गया। यह मंत्र केवल हमारे लिए नहीं था, बल्कि सम्पूर्ण विश्व और चल-अचल जगत सभी के जीवन को ख़ुशहाली का धोत्तक है। प्राकृतिक जीवन, वन एवं जीव जंतु मानव जीवन को एक निश्चित दिशा प्रदान करते हैं। मानव का असंतुष्ट लोभ प्राकृतिक संकलनों -संसाधनों जीव जंतुओं को तीव्रता से नष्ट करता जा रहा है। इंसानों ने सम्पूर्ण धरती पर जंगलों को ख़त्म कर दिया है।हाथियों को बड़े पौधों के बीज को एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रसारित करने में सहायक माना जाता है। यानि इनकी उपस्थिति से पर्यावरण में बड़े वृक्षों की संख्या बढ़ती है। जिस जंगल में बाघ,चीता, भेड़िया जैसे होंगे वहाँ पर शाकाहारी पशुओं का संतुलन बना रहेगा और हरे भरे पेड़-पौधे की सुरक्षा भी रहेगी। वनस्पति अधिक मात्रा में उगेगी और इस तरह सामान्य पर्यावरण बना रहेगा। इस प्रकार प्राकृतिक संतुलन भी बना रहेगा। हमें अपनी मानवता को भी बचाना है क्योंकि जब मानवता ख़त्म हो जाती है तो इंसान भी ख़त्म हो जाता है। हमारा आपका अस्तित्व ही नष्ट न हो जाए, इसलिए मानवीय बने रहने में भलाई है।किसी का जीवन छीन लेना ज़िंदगी नहीं है बल्कि किसी को जीवन देना ज़िंदगी है।
इस चुनौती का सामना करने के लिए हमें तुरंत प्रभावी क़दम उठाने होंगे अन्यथा आगे आने वाले समय में जानवर के साथ प्राकृतिक संतुलन आदि सभी लुफ़्त हो जाएँगे और चारों ओर त्राहि त्राहि मच जाएगी।
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