वर्ष 2020 का विश्व पर्यावरण दिवस पिछले सभी वर्षों से भिन्न है क्योंकि पूरी दुनिया करोना वायरस की सामना कर रही है जिसकी वजह से विश्व के लगभग सभी देशों में लॉकडाउन है। सड़कों पर गाड़ियाँ नहीं चल रही हैं, रेल और हवाई जहाज़ों का आवागमन ठप्प है, फ़ैक्टरीयाँ बंद हैं ।इस महामारी से जान और माल का तो काफ़ी नुक़सान हुआ लेकिन पर्यावरण पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा। वायु प्रदूषण में काफ़ी कमी आयी है। शहर जो गैस चेम्बर बन गए थे वहाँ के हवा में सुधार हुआ है। हवा में कार्बन डायआक्सायड की काफ़ी कमी आयी है। वायु प्रदूषण की तरह जल प्रदूषण में भी सुधार हुआ है। नदियाँ स्वच्छ एवं निर्मल हो गयी हैं। गंगा के जल में 500 प्रतिशत टी डी एस कम हुई है और ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ी है जिससे गंगा का पानी वर्षों बाद पीने योग्य हो गया है।आसमान नीला और रात्रि में अनगिनत तारे दिखने लगे हैं। ओज़ोन परत जिसके लिए पूरा विश्व चिंतित था उसमें भी सुधार आया है।इस बदलाव से पूरा विश्व अचंभित है। आज देश “ विश्व पर्यावरण दिवस “ मना रहा है । इस अवसर पर फिर से गहन चिंतन की आवश्यकता है किस हद तक इंसानों ने प्राकृतिक संतुलन को हानि पहुँचाया है।
कोई भी देश अपने स्तर पर प्रकृति की रक्षा का कार्य सम्पन्न नहीं कर सकता है।कभी कभी लोग अपने छोटे से काम के लिए पर्यावरण से छेड़ छाड़ कर बैठते हैं जो कालांतर में उसके व्यक्तिगत जीवन के लिए समस्याएँ पैदा करती हैं। अतः लोगों को अनेक असंतुलनों से पैदा ऊँच नीच का ज्ञान देना आवश्यक है। प्राकृतिक,सामाजिक,सांस्कृतिक और आर्थिक आदि का संरक्षण तभी सम्भव होगा जब पर्यावरण सम्बंधी जन चेतना होगी।
प्रकृति के दोहन से मानव लाभान्वित हो सकता है किंतु उसका विनाश अपने विनाश को निमंत्रण देने जैसा होगा। प्राचीन काल से इंसान की सेवा करती आयी इस प्रकृति में संतुलन बनाए रखने से ही इसका लाभ हम सभी को आगे भी मिलता रहेगा। शुद्ध पर्यावरण ने सदियों से सारी सृष्टि को बचा कर रखा है। आज भी हमारा जीवन इसी पर्यावरण की ही देन है। यदि भविष्य में हम इसे ऐसा ही बनाए रखेंगे तभी हमारी अस्तित्व की आशा की जा सकती है। इस प्रकार पर्यावरण का प्रभाव भूत, वर्तमान, और भविष्य तीनों कालों में समान रूप से जुड़ा है। प्राकृतिक संतुलन के इस अभियान राष्ट्रीय अभियान के रूप में प्रत्येक व्यक्ति और सामाजिक समूहों द्वारा अपनाने की ज़रूरत है। इससे वास्तविक जीवन से पर्यावरण का सदैव सह सम्बंध स्थापित करते हुए इस समस्या के समाधान में हम महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकें।
हमें अपने आस पास जो कुछ भी दिखायी देता है अथवा जिन तत्वों का नित्य जीवन में हम अनुभव करते हैं जैसे भूमि,जल, वायु, जीव-जंतु और पेड़ पौधे। ये सभी सम्मिलित रूप से पर्यावरण की रचना करते हैं। भूमि, जल,वायु, और पेड़ पौधे का भी प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है इसलिए ये भी पर्यावरण के अंग हैं। व्यक्ति जिस परिवेश में जन्म लेता है फलता फूलता है और जिस वातावरण में उसका पालन पोषण होता है उस वातावरण की जानकारी मनुष्य के विकास के लिए अति आवश्यक है। व्यक्ति के चारों ओर आस पास जो कुछ भी है पर्यावरण के अंतर्गत है। इस पर्यावरण सारी सृष्टि को सदियों से बचा कर रखा है। यदि हमें स्वयं को या समस्त सृष्टि को बचाए रखना है तो पर्यावरण को एकदम से नष्ट नहीं करना चाहिए। वातावरण का भूत, वर्तमान और भविष्य से गहरा सम्बंध है। यदि इस सम्बंध में गम्भीरता से विचार नहीं किया जाए तो संसार का वर्तमान और भविष्य एकदम नष्ट हो जाएगा जिसके लिए हमारी आने वाली पीढ़ी कभी माफ़ नहीं करेगी।
संसार के सभी समुदाय प्रकृति, पर्यावरण और प्रदूषण के विषय में पिछले कुछ दशकों से गम्भीरता से विचार कर रहे हैं और जन साधारण के लिए तरह तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं। इस विषय में जन साधारण की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण और सार्थक होगी।
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