Tuesday, 7 April 2020

करोना और अर्थव्यवस्था

करोना ने पूरे विश्व में उथल पथल मचा दिया।इसकी वजह से लाखों लोगों की मौत का अनुमान है।पूरा विश्व समुदाय परस्पर एक दूसरे के सहयोग कर संभवतः काबू पा लेंगे।
इस महामारी के कारण कई छोटे बड़े देशों ने लॉक डाउन कर दिया है जिससे तेज़ी से दौड़ती हुई अर्थव्यवस्था का पहिया रुक गया। फैक्ट्रिया बंद हो गई,उत्पादन रुक गया।बाज़ार बंद हैं , उपभोक्ता नदारद हैं।फसल कटने को तैयार हैं लेकिन काटने वाला मजदूर नहीं है। आयात निर्यात बंद है। देश विदेश के पर्यटक नदारद हैं एवं होटलों में ताले लगे हैं।
पूरे विश्व में करीब करीब मंदी आ गई। यू एस ए एवं यूरोप के देशों को भी इससे जूझना पड़ रहा है। भारत में भी करोना से राष्ट्रीय संकट आ गई है।एक तरफ स्वास्थ संकट तो दूसरी तरफ आर्थिक संकट।
भारत को आने वाली आर्थिक मंदी से निपटने की चुनौती होगी।बेरोज़गारी की समस्या का सामना करना होगा। यू एस ए जैसे देश में बेरोज़गारी के क्लेम आ रहे हैं।भारत में अनुमान है कि कुल ४६ करोड़ नौकरियां में से करीब १३ करोड़ नौकरियां जाएंगी।
इस संक्रमण पर काबू करने के बाद भारत की सबसे बड़ी चुनौती होगी अर्थव्यवस्था को कैसे ट्रैक पर लाया जाय।
आने वाली आर्थिक मंदी से निपटने के लिए सरकार को पूरा जोर उन उद्योगों को उबारने के इर्द गिर्द केंद्रित होना चाहिए जो बड़े पैमाने पर रोज़गार पैदा करते हैं।मंदी के शिकंजे से बाहर निकलने के लिए प्रत्येक क्षेत्र की मदद के लिए प्रभावी उपाय करने होंगे।कृषि,पर्यटन, वाहन, एवं आभूषण जैसे क्षेत्रों की वृद्धि से लाखों अवसर सृजित होंगे।इससे मांग में व्यापक रूप से इजाफा होगा।
सरकार को विपक्षी दलों के साथ विचार विमर्श कर साहसिक फैसले लेने होंगे।इसके लिए ढांचागत सुधारों के साथ कुछ तत्कालिक कदम उठाने होंगे। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने यही सलाह दी है। हालांकि देश के रिजर्व बैंक ने कुछ रियायतें दी है जैसे लोन की किश्तों पर ३महीने की छूट, सी आर आर में १% की कमी, रिवर्स रेपो रेट में भी कमी की है। बैंकों को अपनी मार्जिन कम करने को कहा है। लेकिन ये नाकाफी है। सरकार को सिस्टम में लिक्वडिती बढ़ाने की जरूरत है।लोगों की जेब में पैसे डालना है होगा तभी मांग बढ़ेगी।सरकार को जीडीपी का न्यूनतम १०% का खर्च करना ही होगा। ज़ाहिर सी बात है समाज का बड़ा हिस्सा बड़ा हिस्सा ऐसे अनिश्चितता के दौड़ में पैसा खर्च करना कम कर देता है। इससे अर्थव्यवस्था के लिए संकट खड़ा हो जाता है। इस कारण पूरी आबादी की आय प्रभावित होती है।इसमें बड़े कारोबारियों से लेकर छोटे किराने की दुकान चलाने वाले व्यापारियों तक सभी शामिल रहते हैं।इससे उत्पादन में कमी आती है और लोगों को नौकरियों से निकालने लगते है।ऐसी स्थिति में किफायत के विरोधाभास का तोड़ना बहुत ज़रूरी होता है।यह तभी हो सकता है जब सरकार अपनी तरफ से ज्यादा पैसा खर्च करे।इस खर्च से लोगों की आय बढ़ेगी और लोग उस पैसे को खर्च करेंगे।
सरकार को कृषि पर ध्यान देना अति आवश्यक है।फसल कटने के लिए तैयार है किन्तु फसल काटने की मशीन उपलब्ध नहीं है। अगर मशीनों की उपलब्धता हो भी जाती है तो उसे चलाने के लिए मजदूर नहीं है।सरकार को इसके लिए जल्दी कोई कदम उठाने होंगे।
इस बीच अच्छी खबर यह है कि इस वर्ष अच्छी फसल होने की उम्मीद है।

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