Monday, 6 April 2020

करोना महामारी प्रकृति की मारी

ईश्वर ने कितनी खूबसूरत दुनिया बनाई है लेकिन इंसान इसे बदसूरत बनाने में लगा हुआ है।विकास के नाम पर विनाश करता जा रहा है।बुलंदियों को छूने एवं प्रतिस्पर्धा की प्रवृत्ति ने विश्व को खतरे में डालता जा रहा है। प्रकृति ने मानव को अन्य जीवों की अपेक्षा एक विलक्षण वस्तु मस्तिष्क प्रदान किया जिसका उसने दुरुपयोग करना शुरू कर दिया।उसने जैविक और भौतिकवाद के चक्कर में पड़ कर उसने प्रकृति को क्षत्ती पहुंचाना शुरू कर दिया।उसका ही परिणाम है करोना वायरस।यह वायरस लैब में तैयार किए जाने की आशंका जताई जा रही है। करोना वायरस एक संक्रामक रोग है।यह एक नए तरह के वायरस की वजह से होता है। 2003 में सार्स अर्थात सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम और 2012 में मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम भी करोना वायरस के प्रकोप का नतीजा था लेकिन इसे वैश्विक महामारी घोषित नहीं किया गया। करोना वायरस चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ और तीन महीने के अंदर 40 देशों में फ़ैल गया।कुछ लोगों का यह भी कहना है चीन में चमगादड़ों में सार्स से सम्बंधित करोना वायरस पाए गए हैं।चीन में लोग चमगादड़ों की शिकार करते हैं। उनके संपर्क में आने से ही  यह बीमारी फैला है।चीन में इस प्रकोप के बाद पूरे देश में वन्य जीवन के व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। विश्व को प्रतिस्पर्धा छोड़ कर एक जुट हो कर परस्पर सहयोग से कार्य करना होगा। चुकी भारत का प्रकृति के साथ जुड़ाव है और प्राकृतिक आरोग्य रक्षण की पद्धति में विश्वास रखता है तो संभवतः यहां मृत्यु दर दूसरे देशों से कम होने की संभावना है ।भारत की भौगोलिक स्थिति के कारण मानवीय हानि चीन यूरोप जैसी नहीं हो पाएगी लेकिन आर्थिक और भौतिक हानि की संभावना ज्यादा है।  #करोना #कोरोना वायरस से जंग
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