सार्वजनिक और निजी यातायात बंद होने से वाहनों से निकलने वाला कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में काम हो गया है।ऐसे में प्रदूषण का स्तर खास कर महानगरों में दिखना शुरू हो गया है। गंगा यमुना का जल स्वच्छ हो गया है।गंगा के स्वच्छ होने का कारण ५००% टी डी एस की कमी बताया जा रहा है। आसमान नीला दिखना शुरू हो गया है। हवा में ताजगी महसूस हो रहा है। अब लोगों को महसूस हो रहा है कि प्रकृति से कितनी छेड़ छाड़ की गई है।हमें प्रकृति से क्षमा मांगना चाहिए।हमने प्रकृति कि मर्म को नहीं समझा।लालच, दंभ, अज्ञानता से विनाश करते गए।
जो करोड़ों खर्च कर के भी नहीं किया जा सका वह एक वायरस एवं लॉक डाउन ने पर्यावरण को स्वच्छ कर दिया।यह कोई चमत्कार नहीं है।यह सिर्फ दर्शाता है कि हमने प्रकृति को बचाने के लिए कुछ नहीं किया। हमने सिर्फ पैसे एवं जुबानी खर्च किए ।
देश में लॉक डाउन के दौरान प्रदूषण की गिरावट एवं नदियों कि स्वच्छता एवं निर्मलता ने लोगों का ध्यान खींचना शुरू किया है। आशा है कि लॉक डाउन की अवधि और बढ़ने से वायु एवं नदियों में प्रदूषण और भी कम हो सकता है। यह एक तथ्य है कि पिछले कई वर्षों से देश के कई अन्य शहरों में वायु एवं नदियों के जल की गुणवत्ता में लगातार गिरावट आती जा रही है। यह एक स्थाई समस्या बन चुकी है। प्रदूषण की जिम्मेदारी किसी एक संस्था या व्यक्ति की नहीं है बल्कि पूरे समाज की है। हम सिर्फ सरकार के भरोसे रहते हैं। अपनी जिम्मेदारी से भागते हैं।
यह सही है कि नदियों कि सफाई एवं प्रदूषण सम्बंधित नीति निर्माण सरकार का काम है। क्योंकि ऐसे विस्तृत और बहुआयामी कार्य को संभालना किसी व्यक्ति या समूह की बात नहीं है। चुकी इसमें गंगा के उदगम से लेकर समुद्र में समाहित होने तक की व्यापक कार्य योजना की जरूरत होती है और केंद्र एवं राज्य सरकारे मिलकर यह कार्यान्वित करते हैं इसलिए किसी व्यक्ति विशेष या समूह यह कार्य नहीं कर सकते। फैक्ट्रियों का नदियों के पास से हस्तांतरण,सीवेज को नदियों मै गिरने से रोकना,फैक्ट्रियों के निकलती धुएं को प्रदूषण रहित कराना इत्यादि सरकार का काम है।लेकिन क्या नागरिकों को अपने देश के प्रति और अपने प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है ? लेकिन नागरिकों में सबकुछ सरकार के भरोसे छोड़ने की मानसिकता बन गई है।
करोना से बीमारी बढ़ रही थी इसलिए सरकार एवं नागरिक तुरंत सचेत हो गए एवं सरकार द्वारा लॉक डाउन जैसे उपाय किए गए और जनता डर से सरकार के सुझाव को मानने पर विवश हुई। किन्तु दूषित पर्यावरण एवं नदियों ने तुरंत सेहत पर असर नहीं डालते इसलिए सरकार एवं नागरिक गंभीरता से नहीं लेते। जबकि इस वजह से कैंसर एवं फ्लोरोसिस जैसी बीमारियां बढ़ रही है। सरकारों को आधे अधूरे उपाय से बचना चाहिए जिससे उनकी इच्छा शक्ति की कमी को प्रकट करे।राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार को यह समझने की सख्त जरूरत है कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए उनकी ओर से बहुत कुछ किया जाना शेष है।सरकार एवं नागरिक को प्रदूषण को रोकने के लिए अपनी सक्रियता बढ़ानी होगी। ये भी सच है कि सरकार की ज्यादा सक्रियता के कारण नागरिक अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटने लगते हैं।ज्यादातर नागरिकों को देश के पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी का तनिक भी एहसास नहीं है ।पर्यावरण बचाओ के नारे तो अनेक लोग लगाते हैं,खास मौकों पर रस्म अदायगी भी करते हैं लेकिन कुछ लोग ही होते हैं जो बिना दिखावे के अपनी जिम्मेदारी निभाते रहते हैं।हर नागरिक को वृक्ष लगाने की आश्यकता है।लोगों को निजी वाहन उतरकर बस एवं मेट्रो का रुख करना होगा।सरकार को भी हर व्यक्ति तक शहर के हर हिस्से में सार्वजनिक परिवहन की सुविधा उपलब्ध करानी होगी।पर्यटकों को पहाड़ों एवं समुद्र किनारे कचड़े नहीं फैलाना चाहिए।प्लास्टिक एवं पॉलीथिन का इस्तेमाल बिलकुल नहीं करना चाहिए।पॉलीथिन और प्लास्टिक समुद्र एवं मिट्ट में जाकर पर्यावरण को विनाश कर रहा है। हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि धरती के पर्यावरण को अब हम प्रदूषित नहीं करेंगे।
वास्तव में यह बुनियादी बात सभी को समझना ही होगा कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार का काम नहीं है इसमें हर व्यक्ति का योगदान चाहिए।
' कुछ सीखाकर ये दौर गुजर जाएगा ,फिर हर इंसान मुस्कुराएगा.........'
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